पिछले महीने 15 मई को जब म्यांमार ने 6 अलग-अलग संगठनों के 22 उग्रवादियों को भारत को सौंपा था तब ऐसा लगा कि भारत को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। परंतु अब एक नए खुलासे में यह बात सामने आ रही है कि चीन ने म्यांमार के किसी एक्शन से पहले ही इन उग्रवादियों के बड़े नेताओं को अंडरग्राउंड कर दिया था यानि भारत के हाथ अभी बड़ी मछ्ली नहीं आई।
हालांकि, चीन पहले भी ऐसा करता आया है और भारत में अस्थिरता फैलाने वाले उग्रवादी संगठनों को वित्तीय और हथियारों से मदद करता आया है। परंतु अब जब भारत और चीन के रिश्तों में दरार पड़ चुकी है तब भारत के अधिकारियों को यह लग रहा है कि चीन उन उग्रवादी नेताओं का इस्तेमाल अब भारत के खिलाफ कर सकता है।
दरअसल, The Federal की रिपोर्ट के अनुसार, यह चीन ही था जिसने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी बड़ी प्रोफ़ाइल वाला उग्रवादी भारत के हाथ न लगे। अगर ऐसा हो जाता तो भारत फिर से 11 वर्ष पहले का इतिहास दोहराता जब बांग्लादेश ने कई बड़े उग्रवादियों को भारत के हाथों में सौंपा था। उस दौरान शेख हसीना की सरकार के आदेश पर बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए ULFA, NDFB और KLO के शीर्ष उग्रवादियों को चुपचाप से उठवा लिया था और भारत को सौंप दिया था।
इस रिपोर्ट में एक पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि म्यांमार को कुछ पता चलता उससे पहले ही चीन ने टॉप उग्रवादियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया था।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पिछले वर्ष दिसंबर में ही National Socialist Council of Nagalim का प्रमुख Phungting Shimrang भारत से भाग निकला था और चीन से मिलिट्री मदद की गुहार लगाई थी। उसने कहा था कि अगर भारत ने अपनी पुरानी गलती से सीख नहीं ली और नागा फिर से चीन चले गए तो भारत को भारी कीमत चुकनी पड़ सकती है।
बता दें कि 1965 में कई नागा विद्रोहियों ने चीन के युन्नान में शरण ली थी और चीन ने उन्हें प्रशिक्षण भी दिया था। उस दौरान NSCN (IM) का जनरल सेक्रेटरी Thuingaleng Muivah उन उग्रवादियों का नेतृत्व कर रहा था।
बता दें कि चीन शुरू से ही भारत के पूर्वोतर राज्यों को अस्थिर करने का प्रयास करता आया है। इन उग्रवादियों को हथियारों की आपूर्ति चीन की कंपनियों द्वारा ही की जाती है। हथियार निर्माण करने वाली आधिकारिक चीनी कंपनियां नियमित रूप से पूर्वोत्तर भारत के आतंकवादी संगठनों को छोटे हथियार (AKs राइफल, लाइट और सब-मशीन गन, ग्रेनेड आदि) बेचती आई हैं। चीन की इसी हरकत की वजह से पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद जीवित है। हालांकि, चीन इससे इंकार करता आया है लेकिन इसके कई साक्ष्य मिले हैं जिससे साबित होता है कि इन उग्रवादियों को मिलने वाले हथियार चीन से मिलते हैं जो म्यांमार तथा बांग्लादेश के रास्ते भारत पहुंचते हैं।
जब भी भारत और चीन के रिश्तों में पड़ी दरार गहरी होती है पूर्वोतर राज्यों के उग्रवादी घटनाओं में बढ़त देखने को मिलती है और इन सभी का कारण चीन होता है। इस बार तो चीन के साथ युद्ध की स्थिति आ चुकी है और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन उग्रवादी नेताओं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ पूरे ज़ोर शोर से करेगा। चीन ने सिर्फ भारत के उग्रवादी संगठनों की मदद नहीं की है, बल्कि म्यांमार के साथ भी यही करता है। म्यांमार के विद्रोहियों को भी इसी तरह से हथियार और प्रशिक्षण से मदद करता है। आज भारत तीनों ओर से युद्ध की स्थिति में घिरा हुआ है। एक तरफ से पाकिस्तान लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है तो वहीं, चीन के साथ गलवान घाटी में हुई झड़प से तनाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वहीं नेपाल ने भी चीन के इशारों पर भारत के क्षेत्रों पर अपना दावा ठोक कर विवाद पैदा कर दिया है। अब पूर्वोतर राज्यों में भी चीन द्वारा शरण दिये गए उन उग्रवादियों के जरीये अस्थिरता पैदा करने की भरपूर कोशिश करेगा। गृह मंत्रालय तो तुरंत इस मामले पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करनी चाहिए।