ब्रिटिश राज की कुछ अजीबो-गरीब मान्यताओं से मुक्त करने के लिए हरियाणा सरकार ने एक विशेष पहल की है। न्यायालयों में केवल अंग्रेज़ी माध्यम में कार्य करने की प्रथा पर लगाम लगाते हुए हरियाणा सरकार ने हाल ही में एक नोटिफ़िकेशन जारी कर ये घोषणा की कि हिन्दी भाषा को हरियाणा के सभी न्यायालयों और ट्रिब्यूनल्स में उपयोग में लाया जाना चाहिए। इसके पीछे का प्रमुख उद्देश्य है ये सुनिश्चित करना कि लोगों को उनकी भाषा में न्याय मिले, और न्यायपालिका को याचिका का सहयोगी बनाएँ।
इस निर्णय से न केवल औपनिवेशिक मानसिकता का नाश होगा, बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं को भी बढ़ावा मिलेगा। पर कोई अच्छा काम हो, और हमारे देश की वामपंथी ब्रिगेड खुश हो, ना बाबा न। इस गैंग ने इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी, लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी एक न सुनी। उन्होंने सीधे-सीधे पूछा कि जब 80 प्रतिशत याचिकाकर्ता अंग्रेज़ी नहीं समझते हैं, तो फिर इस संशोधन में समस्या क्या है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने इस याचिका पर ये भी कहा कि हिन्दी हो या कोई भी क्षेत्रीय भाषा, उसे न्यायालय की दूसरी भाषा के तौर पर उपयोग में लाना कोई बड़ी बात नहीं है। जब विरोधी पक्ष के अधिवक्ता ने ये पूछा कि मल्टीनेशनल कंपनियाँ हिन्दी में कैसे याचिका डालेंगी, तो कोर्ट ने कि हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषा को शामिल करने की बात कही गई है, अंग्रेज़ी को भगाने की नहीं। इसी के साथ उन्होंने हरियाणा सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को अपनी आधिकारिक मंजूरी भी दे दी।
कानूनी तौर पर हरियाणा सरकार का निर्णय बिलकुल उचित है यहाँ तक कि सिविल और क्रिमिनल कोड भी इस बात की अनुमति देती है कि कोई भी राज्य अपने अदालतों में अंग्रेज़ी के अलावा क्षेत्रीय भाषा को शामिल कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने जैसे बताया, देश में 80 प्रतिशत से अधिक याचिकाकर्ताओं का अंग्रेज़ी से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है, और उनके लिए न्याय पाना टेढ़ी खीर हो जाता है।
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के लिए ज़ोर दिया है। जब अमेरिका में पिछले वर्ष वे हाउडी मोदी सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे, तो हाऊडी मोदी के जवाब में उन्होंने हिन्दी में कहा, “भारत में सब बढ़िया हैं”। पर पीएम मोदी यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने यही बात कन्नड़, पंजाबी, गुजराती, तमिल, तेलुगू और बांग्ला में भी कही थी।
यह बात उन लोगों के लिए एक करारा तमाचा समान थी, जो बार बार ये कहते थे कि पीएम नरेंद्र मोदी देश भर पर हिन्दी थोपना चाहते हैं। हरियाणा सरकार ने बस पीएम मोदी के कहे का अनुसरण किया है। केवल हरियाणा क्यों, हम सभी को औपनिवेशिक मानसिकता को त्याग कर अपने देश की भाषाओं को अधिक महत्व देना चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं को कोर्ट में बढ़ावा देने से न्याय की प्रक्रिया केवल और अधिक सरल होगी।