भारत और चीन की नजर शुरू से ही मध्य एशिया के देशों पर रही है। दोनों देश मध्य एशिया के देशों को अपने साथ करना चाहते हैं जिससे उनकी पकड़ एशिया सहित पूरे विश्व पर बढ़े। ऐसे में एक देश बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है और वह है कजाकिस्तान। मध्य एशिया के इस बड़े देश में पिछले वर्ष सत्ता में परिवर्तन हुआ था और इस महीने नई सरकार के एक वर्ष पूरे हुए हैं। अगर जियोपॉलिटिक्स की बात करें तो सत्ता परिवर्तन से एक वर्ष में भारत को मध्य एशिया में चीन पर बढ़त मिल चुकी है। आज कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का सबसे करीबी सहयोगी देश के रूप में सामने आ चुका है और चीन के खिलाफ इस देश में माहौल बन चुका है। अगर भारत को चीन के बढ़ते प्रभाव को मिट्टी में मिलाना है तो कजाकिस्तान ही एक ऐसा दोस्त है जो उसमें भारत की सबसे अधिक मदद कर सकता है।
पिछले वर्ष इसी महीने में कजाकिस्तान के Kassym-Jomart Tokayev ने लोगों का विश्वास जीता और जून 2019 में आम चुनावों में जीत हासिल की और Kazakhstan का दूसरे राष्ट्रपति बने। जब से उन्होंने सत्ता संभाली है तब से भारत और कजाकिस्तान के रिश्तों में एक नई बहार आई है तो वहीं Kazakhstan और चीन के संबंध खराब हुए हैं।
कोरोना के समय में भी भारत ने कजाकिस्तान को मेडिकल सप्लाई तथा अन्य प्रकार की मदद की थी। इस मदद के बाद Kassym-Jomart Tokayev ने भारत को धन्यवाद भी किया था। भारत ने काजिकिस्तान की मदद ऐसे समय में की थी जब भारत से दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध था।
भारत कजाकिस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था। भारत ने इस देश से फरवरी 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित किए गए थे। राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने फरवरी 1992 में भारत का दौरा किया। इसके बाद, उन्होंने 1993, 1996, 2002 और 2009 में भारत का दौरा किया। वह 26 जनवरी, 2009 को नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि थे।
कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार और निवेश भागीदार है। 2018 में देशों के बीच व्यापार का कारोबार 1.2 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया (2015 में, व्यापार का कारोबार 461.6 मिलियन डॉलर था)। 2019 के पहले तीन महीनों में, कजाकिस्तान और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार $ 293.1 मिलियन था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 35.9% अधिक है। इस साल अब तक का द्विपक्षीय व्यापार पहले ही 1.5 बिलियन डॉलर को छू चुका है।
यही नहीं पिछले वर्ष अक्टूबर में पिथौरागढ़ के सैन्य क्षेत्र में चले 14 दिवसीय भारत-कजाकिस्तान संयुक्त सैन्य अभ्यास काजिंद-2019 से इन दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूती मिली। काजिंद -2019 साझा अभ्यास लगातार चौथी बार आयोजित हुआ था। बता दें कि यह बारी-बारी से भारत और कजाकिस्तान में आयोजित होता है।
कजाकिस्तान मध्य एशिया का बहुत महत्वपूर्ण देश है और पारंपरिक रूप से भारत के साथ उसके रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं। अगर भारत मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है तो Kazakhstan एक नैचुरल पार्टनर है। बता दें कि वर्ष 2015 में भी कजाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं। उस दौरान कई मुद्दों ख़ासकर परमाणु ऊर्जा के सवाल पर कज़ाकस्तान से यूरेनियम सप्लाई पर भी बात हुई थी। 7-8 जुलाई, 2015 को पीएम नरेंद्र मोदी की अस्ताना यात्रा के दौरान 5000 टन यूरेनियम की खरीद के लिए एक नए पंचवर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था। कजाकिस्तान ने 2008 में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) देशों के साथ असैनिक परमाणु सहयोग की अनुमति देने के लिए भारत का समर्थन किया था।
कजाकिस्तान सिर्फ परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) ही नहीं बल्कि सक्रिय रूप से अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), तथा सयुंक राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थाई सदस्यता बनाने का समर्थक देश रहा है|
वहीं अगर हम कजाकिस्तान के साथ चीन के रिश्तों को देखें तो वर्ष 2016 से ही इस देश में चीन के खिलाफ माहौल बना हुआ है। वहीं पिछले वर्ष Kazakhstan में चीन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। चीन के खिलाफ ये विरोध प्रदर्शन कजाकिस्तान के जानाओज़ेन (Zhanaozen) में शुरू हुए थे। इन सभी विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में Kazakhstan सरकार के द्वारा हाल ही में लाया गया लैंड कोड बिल था। इस लैंड कोड के तहत Kazakhstan सरकार किसी भी अन्य देश को अपनी ज़मीन 25 सालों के लिए लीज़ पर दे सकती है।
लोगों को डर था कि इस लैंड कोड के तहत चीनी कंपनियों को वहाँ की ज़मीन दे दी जाएगी जिसके कारण चीन का इस देश में बेहद ज़्यादा दखल बढ़ जाएगा। इसके अलावा कजाकिस्तान के लोग चीन द्वारा शिंजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर हो रहे ऊईगर मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ भी भड़के हुए थे। इन प्रदर्शनों के कारण कजाख सरकार को झिंजियांग अधिकार आंदोलन, अता-जुर्ट को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने के लिए मजबूर किया गया है, जहां पश्चिमी चीन कज़ाकों के साथ अत्याचार होता है। नई सरकार आने के बाद लोगों को विरोध प्रदर्शन करने की भी छूट मिली थी। यानि देखा जाए तो सरकार भी अपने लोगों के साथ ही है।
अगर भारत सरकार इस देश पर फोकस करता है तो जल्द ही मध्य एशिया से चीन के प्रभुत्व को समाप्त किया जा सकता है। अभी भारत सरकार कजाकिस्तान में पेट्रोकेमिकल और हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में निवेश करने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा Kazakhstan भारत को यूरेनियम की सप्लाई भी करता है, यानि इन देशों में न्यूक्लियर क्षेत्र में भी सहयोग के काफी अवसर मौजूद हैं। अभी भारत के नेतृत्व में बन रहे ‘इन्टरनेशनल सोलर अल्लाइंस’ में भी भारत ने Kazakhstan को इसका मेम्बर बनने का प्रस्ताव भेजा है। इसके अलावा कजाकिस्तान Ashgabat समझौते का भी एक सदस्य देश है जिसका भारत भी एक अहम हिस्सा है। Ashgabat समझौता मध्य एशिया एवं फारस की खाड़ी के बीच वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन गलियारा है।
भारत इस समझौते की मदद से भी कज़ाकिस्तान के साथ अपने व्यापार सम्बन्धों को और बढ़ा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में “अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण- कोरिडोर, ईरान – कजाख- तुर्कमेनिस्तान रेल लिंक संपर्क, व्यापार एवं पारगमन पर Ashgabat करार में शामिल होने में भारत के हित से और ईरान में चाहबहार बंदरगाह में भारत के निवेश से कनेक्टिविटी और बेहतर होगी।”
यानि देखा जाए जो पश्चिम में अमेरिका और पूर्व में जापान के बाद मध्य एशिया में कजाकिस्तान ही ऐसा देश है जो भारत को चीन की गुंडागर्दी खत्म करने में मदद कर सकता है।