नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा खूबसूरत देश, जहां ज्योतिर्लिंग भी है शक्तिपीठ भी है। कुछ समय पहले तक यह विश्व के एक मात्र घोषित हिन्दू राष्ट्र रहने वाला नेपाल अब सेक्युलर सेक्युलर स्टेट बन चुका है। जब से इस देश में माओवादियों की सरकार बनी है तब से कई परिवर्तन हुए हैं और उनमें से एक प्रमुख परिवर्तन है धर्मांतरण।
हालांकि, अब सेक्युलर बन चुके इस देश में किसी भी प्रकार के धर्मांतरण पर प्रतिबंध है लेकिन फिर भी कई बार रिपोर्ट्स सामने आ चुकी हैं कि नेपाल सबसे तेज़ी से धर्मांतरण होने वाले देशों में से एक है। आधिकारिक डाटा को देखें तो बेहद ही कम अंतर नजर आएगा लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। वर्ष 2011 की सरकारी जनगणना के अनुसार, ईसाई नेपाल की 29 मिलियन की आबादी का 1.5 प्रतिशत से भी कम हिस्सा थे, परंतु रिपोर्ट्स में कई ईसाई समूहों का कहना है कि इस समय देश में ईसाई धर्म को माननेवालों की आबादी 3 लाख पहुंच चुकी है। लोगों का कहना है कि जनगणना में बड़ी संख्या में धर्मांतरण किए लोगों को शामिल नहीं किया गया।
वर्ष 1951 में नेपाल में एक भी ईसाई सूचीबद्ध नहीं था और वर्ष 1961 में सिर्फ 458 लोग ही ईसाई थे। वर्ष 2001 में लगभग 102,000 से अधिक ईसाई हो चुके थे। एक दशक बाद यह संख्या 375,000 से अधिक हो गई वहीं एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में 1 मिलियन यानि 10 लाख से अधिक ईसाई हो चुके थे।
नेपाल में 1990 के दशक में माओवादी ने गृह युद्ध शुरू किया और वर्ष 2008 में राजशाही का अंत हुआ। राजशाही के अंत होने से यह देश एक हिंदू साम्राज्य से कम्युनिस्ट धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बन गया जहां पर धर्म की अधिक स्वतंत्रता थी। नेपाल में धर्मपरिवर्तन हमेशा अवैध था, लेकिन नेपाल के हिंदू राष्ट्र से सेक्युलर राष्ट्र होने के कारण नियमों की सख्ती धीरे धीरे कम होती गई और किसी को पता भी नहीं चला ईसाई मिशनरी नेपाल के गांवों तक पहुंच गए । वर्ष 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल जैसे छोटे से देश में उस दौरान तक 8000 से अधिक चर्च मौजूद थे। आज कितने होंगे यह समझा जा सकता है।
चर्च अब काठमांडू घाटी और पहाड़ियों के बीच बसे गांवों तक पहुंच कर लोगों को भयंकर स्तर पर ईसाई बना रहा है। नेपाल में आए भूकंप ने इन मिशनरी संगठनों को अपने नियंत्रण को बढ़ाने का एक और मौका दिया जिसने मदद के नाम पर लोगों के बीच जा कर लुभावने सपनों के जरीये धर्मांतरण की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया था।
यह तो स्थापित सत्य है कि ईसाई मिशनरी गरीब, दलित और समाज के हाशिए पर रहने वालों को सबसे पहले निशाना बनाते हैं। यही इन ईसाई संगठनों ने नेपाल में भी किया। फेडरेशन ऑफ नेशनल क्रिश्चियन नेपाल का कहना है कि 65% ईसाई दलित हैं।
ऐसा ही एक संगठन है Climbing for Christ (C4C)। इस संगठन ने वर्ष 2008 में अपना “मिशन: नेपाल” शुरू किया और वर्ष 2011 तक इसने काठमांडू से 25 मील पूर्व में दापचा गांव में पहला चर्च स्थापित किया। आज, केवल 1000 परिवारों की आबादी वाले दपचा गांब में आधे दर्जन से अधिक चर्च हैं। इसी तरह Pentecostal churches नाम का एक चर्च समहू काम कर रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य ही धर्म परिवर्तन करना है। इसने अपने उद्देश्य में ही लिखा है कि इसे 3000 से अधिक चर्च नेपाल में स्थापित करने हैं तथा 6000 से अधिक pastors को लोगों के घर घर भेजना है जिससे इनका मकसद पूरा हो सके। यही नहीं इनका मकसद स्कूल और कॉलेजों की स्थापना करना भी है जहां से ये दीक्षा दे सके।
आलोचकों के अनुसार, यह धर्मांतरण विदेशी मिशनरियों द्वारा वित्त पोषित है। मिशनरी वहां के मगर, गुरुंग, लिंबू, राई, खार्की और विश्वकर्मा जातियों को अपना टार्गेट बनाती है। पहले तो उन्हें वह शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास आदि के रूप में मदद करती है और फिर धीरे उनका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है।
हालांकि, इसाई संस्थाओं द्वारा कथित धर्मपरिवर्तन के आरोपों के बीच कुछ समय तक नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग ने ज़ोर पकड़ा था पर उसे दबा दिया गया। हिंदू अब भी बहुसंख्यक हैं पर हिमालय की गोद में बसे इस देश में लोग तेजी से ईसाई धर्म को अपना रहे हैं। धर्मांतरण कानून होने के बावजूद भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। कहने को तो नेपाल में कम्युनिस्टों की सेक्युलर सरकार है लेकिन, पर्दे के पीछे देखा जाए तो यह एक तरह से नेपाल में हो रहे धर्मांतरण में मदद कर रही है जिससे हिंदुओं की संख्या कम हो। नेपाल जैसे देश में इस तरह के परिवर्तन पर कड़ी नजर बनाए रखना होगा।