उमर अब्दुल्ला की वर्तमान मनोस्थिति को देख एक ही कहावत याद आती है – गरीबी में आटा गीला। कभी कश्मीर की सियासत का अहम हिस्सा माने जाने वाले अब्दुल्ला परिवार अब अपने हाशिये पर पहुँच चुका है। अब हालात ऐसे हो चुके हैं कि उमर की अपनी आवाम, यानि कश्मीर घाटी के निवासी भी उनकी सुनने से इंकार कर चुके हैं, जिसके चलते अभी हाल ही में उमर को अपना अकाउंट deactivate करना पड़ गया। हालांकि, अब दोबारा उनका account एक्टिवेट हो चुका है।
इससे पहले उमर अब्दुल्ला ने अपना ट्विटर अकाउंट deactivate कर लिया था। उन्होने यह कदम तब उठाया था , जब उनके एक ट्वीट के पीछे उन्ही के क्षेत्र के निवासियों ने भारी विरोध जताया। दरअसल गलवान घाटी में उत्पन्न तनाव के कारण जब चीनी और भारतीय सैनिकों में हिंसक झड़प हुई, और 20 भारतीय सैनिकों के हुतात्मा होने की खबर सामने आई, तो स्वाभाविक तौर पर कश्मीर घाटी में बसे कई उग्रवादियों ने चीन का समर्थन करना शुरू कर दिया।
इसी परिप्रेक्ष्य में उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, “जो कश्मीरी चीन को मसीहा के तौर पर देख रहे हैं, उन्हे बस ऊईगर मुसलमानों पर चीनियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों पर एक नज़र डालनी है। उनका सारा भ्रम पल भर में दूर हो जाएगा” –
बस, फिर क्या था, इस ट्वीट पर कई कश्मीरियों ने अपना विरोध जताया। शायद कश्मीरियों के गुस्से से बचने के लिए ही उमर अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट पर कमेन्ट ऑप्शन को बंद किया हुआ था। उसके थोड़ी ही देर बाद सोशल मीडिया यूज़र्स तब हैरान हुए जब उन्होने देखा कि उमर अब्दुल्ला का ट्विटर अकाउंट deactivate हो चुका था –
हालांकि, अब उमर अब्दुल्ला का अकाउंट दोबारा एक्टिव हो चुका है और उनका यह ट्वीट भी वापस live आ गया है। लेकिन, जिस प्रकार उमर अब्दुल्ला को अपना account deactivate करना पड़ा था, उससे यही संकेत मिलता है कि कश्मीरियों से उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा होगा।
सच कहें तो उमर अब्दुल्ला के जीवन में मानो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से काफी भूचाल सा आया है। पहले तो उन्हें पुश्तों से मिलती आ रही सरकारी सुविधाएं मिलना बंद हो गई। इसके बाद उन्हे कई महीनों तक सरकारी बंगले में नज़रबंद रखा गया। जनाब अपने जीवन में आए इस परिवर्तन से इतना अधिक रुष्ट हो गए कि उन्होने दाढ़ी तक नहीं बनाई, जिसके कारण सोशल मीडिया पर वे उपहास का पात्र भी बने। रही सही कसर तो महबूबा मुफ़्ती के साथ हुई झड़प ने पूरी कर दी, जिसके कारण दोनों को अलग अलग सरकारी बंगलों में नज़रबंद रखना पड़ा।
सच बोलें तो उमर अब्दुल्ला इस हालत के लिए स्वयं ही दोषी है। वर्षों तक कश्मीर घाटी को निचोड़ने और कश्मीर को छोड़कर जम्मू एवं कश्मीर राज्य के अन्य क्षेत्रों को सुविधाओं से वंचित रखने के कर्मों का ही फल उन्हें मिल रहा है। जिस तरह से महोदय को अपना अकाउंट deactivate करना पड़ा, उससे साफ पता चलता है कि अब उनकी खुद की जनता उन्हे सुनने को तैयार नहीं है, और जैसे किसी सज्जन पुरुष ने कहा था, ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’ , उमर की हालत आज बिलकुल ऐसी ही है।