लगता है काँग्रेस ने एक बार फिर घोटाला करने की फेहरिस्त में शानदार वापसी की है। 2जी घोटाला, कोयला घोटाला और अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला के बाद अब सबसे ताज़ातरीन घोटाला सामने आया है राजीव गांधी फाउंडेशन का घोटाला। चाहे चीनी सरकार द्वारा किया गया डोनेशन हो, या फिर फाउंडेशन के साथ भगोड़े अपराधी मेहुल चोकसी का कनैक्शन , या फिर प्रधानमंत्री राहत कोष के पैसे का गबन ही क्यों न हो, आप बस नाम लेते जाइए और राजीव गांधी फाउंडेशन के तार किसी न किसी भ्रष्ट गतिविधि या भ्रष्ट व्यक्ति के साथ अवश्य जुड़े हैं। अब ये सामने आया है कि पब्लिक कंपनियां या पीएसयू भी इस भ्रष्ट फाउंडेशन को पोषित करने में शामिल रहे हैं।
आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार यूपीए के समय कई पीएसयू ने राजीव गांधी फाउंडेशन में भर-भर के निवेश किया है। रिपोर्ट के एक अंश के अनुसार, “राजीव गांधी की 2005 – 2006 के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार जिन पीएसयू ने फाउंडेशन को दान दिया था, और वे हैं GAIL, ऑइल इंडिया, ओएनजीसी, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एवं स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटे”।
तद्पश्चात 2006 – 2007 के बीच राजीव गांधी को डोनेट करने वाले पीएसयू में शामिल थे – जीएआईएल, हाउसिंग एंड अर्बन डेव्लपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड [HUDCO], इंडस्ट्रियल डेव्लपमेंट बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड यानि IDBI, ऑइल इंडिया, ओएनजीसी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एवं टेलीकम्यूनिकेशन कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड। इसके पश्चात 2007 – 2008 के बीच बैंक ऑफ महाराष्ट्र, GAIL और ONGC ने राजीव गांधी फाउंडेशन को डोनेट किया। वर्ष 2008 से 2009 के बीच राजीव गांधी फाउंडेशन को डोनेट करने वाले पीएसयू में शामिल थे बैंक ऑफ महाराष्ट्र, GAIL, ONGC, गार्डेन रीछ शिप बिल्डर्स, इंजीनियर्स लिमिटेड, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एवं स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड”।
मजे की बात तो यह है कि इन सभी पीएसयू द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को दिया जाने वाला दान मोदी सरकार के आते ही ठप पड़ गया। 2014 के बाद से उक्त पीएसयू में से एक भी ऐसी कंपनी नहीं है, जिसने राजीव गांधी फाउंडेशन को किसी भी प्रकार का दान दिया हो। इसी रिपोर्ट की पुष्टि टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी की है। इससे इस बात को भी बल मिलता कि आखिर क्यों पीएसयू का निजीकरण बहुत आवश्यक है? इनकी प्रासंगिकता काफी पहले ही समाप्त हो चुकी है, और अधिकतर पीएसयू का काम केवल और केवल कांग्रेस सरकारों के काले धन को सफ़ेद करना ही रह गया था। अब इस तरह के दुरूपयोग से बचने के लिए निजीकरण का महत्व और अधिक बढ़ जाता है
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं की परतें जैसे-जैसे खुलकर सामने आ रही है, वैसे ही कांग्रेस पार्टी की भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता भी खुलकर सामने आ रही है। कांग्रेस राष्ट्रविरोधी है, ये तो आधे से अधिक देशवासियों को अब तक पता चल चुका है, परंतु राजीव गांधी फाउंडेशन के लेनदेन के खुलासों से उसके भारत विरोधी रूख को और खुलकर सामने आ गया है।
अभी परसों ही ये सामने आया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को दान देने वालों में पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले में नामजद मेहुल चोकसी का नाम भी सामने आया है। हाल ही में टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में ये सामने आया था कि जिसमें 2014 -15 के बीच राजीव गांधी फाउंडेशन को Naviraj Estates Private Limited ने काफी डोनेशन दिये थे। दिलचस्प बात यह है कि इस Naviraj कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में मेहुल चोकसी भी शामिल है, और राजीव गांधी फाउंडेशन ने ये भी नहीं बताया है कि उक्त कंपनी ने कितना धनराशि राजीव गांधी फाउंडेशन को दान में दिया था।
इसके अलावा ये भी सामने आया है कि जब 1991-96 के बीच जब डॉ मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री थे, तब उन्होंने राजीव गांधी फाउंडेशन में देश के वित्तीय कोष से 100 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का प्रयास किया था। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पीएसयू की राजीव गांधी फाउंडेशन के साथ संलिप्तता को केंद्र सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए और उन्हें पीएसयू की विश्वसनीयता का पुनः मूल्यांकन करना चाहिए।