पिछले दिनों सोशल मीडिया पर रामचन्द्र गुहा के एक ट्वीट को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। उन्होंने एक ब्रिटिश लेखक फिलिप स्प्रेट द्वारा 1939 में लिखी बात को ट्वीट करते हुए लिखा कि, “गुजरात आर्थिक तौर पर बहुत एडवांस है मगर सांस्कृतिक तौर पर पिछड़ा हुआ है। बंगाल में इससे उलट है। वह आर्थिक तौर पर पिछड़ा हुआ है मगर सांस्कृतिक तौर पर बहुत आगे है।“
"Gujarat, though economically advanced, is culturally a backward province… . Bengal in contrast is economically backward but culturally advanced".
Philip Spratt, writing in 1939.— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) June 11, 2020
गुजरात को इस तरह से पिछड़ा हुआ कहने के बाद पूरे सोशल मीडिया में बवाल खड़ा हो गया। अपने आप को इतिहासकर मानने वाले गुहा का यह ट्वीट गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पसंद नहीं आया। उन्होंने गुहा को जवाब देते हुए लिखा कि पहले अंग्रेजों ने हमें बांटा और हम पर राज किया, अब एलीट ग्रुप के लोग भारतीयों को बांटना चाहते हैं। उन्होंने आगे लिखा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत बहुत मजबूत है और हमारी आर्थिक उम्मीदें बहुत ऊंची हैं।
Earlier it was the British who tried to divide and rule. Now it is a group of elites who want to divide Indians.
Indians won’t fall for such tricks.
Gujarat is great, Bengal is great…India is united.
Our cultural foundations are strong, our economic aspirations are high. https://t.co/9mCuqCt7d1
— Vijay Rupani (Modi Ka Parivar) (@vijayrupanibjp) June 11, 2020
लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि आखिर यह फिलिप स्प्रेट हैं कौन, और भारत में उनका क्या योगदान था जिसके कारण उनके एक बयान को इतना तूल दिया जा रहा है।
दरअसल, फिलिप स्प्रैट एक ब्रिटिश लेखक और जाने माने बुद्धिजीवी थे, जिन्हें भारत में भेजा तो गया था कम्युनिस्टों की विचारधारा को फैलाने के लिए लेकिन अंत में वे जा कर इसी विचारधारा के खिलाफ हो गए।
फिलिप स्प्रैट को मॉस्को में स्थित कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (कॉमिन्टर्न) की ब्रिटिश शाखा द्वारा भारत में कम्युनिज्म का प्रसार करने के लिए भेजा गया था। बात वर्ष 1926 की है। फिलिप स्प्रैट जब 24 साल की उम्र के थे, तब उनकी मुलाक़ात Clemens Dutt नाम के व्यक्ति से हुई जो ब्रिटेन के जाने माने कम्युनिस्ट रजनी पाल्मे दत्त के बड़े भाई थे।
उस दौरान भारत में कम्युनिस्ट पार्टी नवजात स्थिति में थी। इसलिए भारत की तत्कालीन कम्युनिस्ट पार्टी के कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए एक कॉमिन्टर्न एजेंट के रूप उन्हें भारत में विशेष रूप से भेजा गया था।
उनका मुख्य काम CPI सदस्यों की कांग्रेस पार्टी के विभिन्न ट्रेड यूनियनों और युवा संगठनों में घुसपैठ कराने की व्यवस्था करना था।
इसके बाद धीरे धीरे वे MN Roy के मित्र और सहयोगी बन गए तथा उनके साथ मेक्सिको और भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों के संस्थापक बने।
यानि वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य और पहले वास्तुकारों में से एक थे। इसके बाद वे वर्ष 1929 में हुए मेरठ षड्यंत्र केस के मुख्य अभियुक्तों में से एक बने तथा उन्हें 20 मार्च 1929 को गिरफ्तार किया गया और कैद कर लिया गया था।
जेल में उन्होंने अपना समय पढ़ने में बिताया। उन्होंने रूस और पश्चिमी यूरोप में राजनीतिक विकास के बारे में खूब पढ़ा जिसके परिणाम स्वरूप फिलिप स्प्रैट ने 1930 के दशक की शुरुआत में कम्युनिस्ट विचार धारा से मुंह मोड लिया। उन्होंने वर्ष 1939 में फिनलैंड पर रूसी आक्रमण को लेकर सोवियत यूनियन की नीतियों के खिलाफ लिखना शुरू किया और फिर वे धीरे धीरे पूंजीवादी बन गए।
वे जवाहर लाल नेहरू की समाजवादी नीतियों के खिलाफ बोलने वाले गिने-चुने लोगों में से एक थे। उन्होंने जाने माने इतिहासकर सीताराम गोयल की जवाहर लाल नेहरू पर लिखी गई पुस्तक Genesis and Growth of Nehruism के फॉरवर्ड को भी लिखा जिसमें उन्होंने नेहरू की कम्युनिस्ट विचारधारा की बखिया उधेड़ कर रख दी थी। उन्होंने नेहरू के बारे में लिखते हुए कहा था कि “जितना मैं सोचता हूँ वे उससे अधिक वफादार कम्युनिस्ट हैं”। उन्होंने लिखा था कि, “यह संसद तथा गृह विभाग में स्वीकार किया गया है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को विदेश से धन प्राप्त होता है। दुनिया में कोई अन्य शासक इस तरह की बात को बर्दाश्त नहीं करता है। लेकिन नेहरू ने क्यों किया?”
बाद में फिलिप स्प्रैट को सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्वराज्य के संपादक के रूप में चुना गया था। यानि फिलिप उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने कम्युनिस्ट विचारधारा को अंदर से समझा था और फिर उसकी गंदगी को देख कर पूंजीवाद को अपना लिया था।