जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब कुछ ही एशिया के देश थे जो आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ चुके थे। परंतु 1970 के दशक में चीन (China) के उदय के बाद से लगभग सभी क्षेत्र में एक नया बदलाव देखने को मिला था। आज चीन 14 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक महाशक्ति बन चुका है। लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि विकसित देश अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करते हैं वही चीन (China) ने भी शुरू कर दिया था। पिछले एक दशक से अधिक समय में विश्व के कई देशों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए चीन ने अपनी आर्थिक शक्ति का गलत इस्तेमाल किया।
परंतु कोरोना वायरस ने चीन की सभी बाजी पलट कर रख दी है। अब समय आ गया है कि चीन (China) ने जिन देशों के खिलाफ अत्याचार किया अब वे सभी इससे अपना बदला लें।
बीजिंग न सिर्फ अपने आस-पास के अन्य एशियाई देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहा है, बल्कि खुलेआम संप्रभु देशों के घरेलू मामलों पर प्रभाव डालता है, तथा रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप देशों को अपने ऋण जाल फँसता रहा है।
इस वर्ष एक के बाद एक समस्याओं यानि पहले कोरोना वायरस, फिर दक्षिण चीन सागर में चीन (China) के प्रभुत्व को चुनौती और ताइवान के ऊपर से उसके कम होते नियंत्रण से चीन (China) को गहरा झटका लगा है। इस झटके के कारण चीन पहले ही कई देशों के ऊपर से अपना नियंत्रण खो चुका है अब ऐसा लगता है कि जो देश उसे अपना दोस्त मानते थे, वो भी अब चीन के खिलाफ जा रहे हैं। उदाहरण के लिए फिलीपींस को देख लीजिये। वहाँ के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे वर्ष 2016 में सत्ता में आने के बाद से ही चीन (China) समर्थक रहे हैं, परंतु अब वे अपना पाला बदलते नजर आ रहे हैं।
लेकिन दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति तथा कोरोनोवायरस महामारी को फैलाने में चीन की भूमिका के बाद डुटर्टे ने अमेरिका के साथ सैन्य समझौता से बाहर होने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करने का संकेत दिया है। यह समझौता अमेरिकी सैनिकों की फिलीपींस में रहने की अनुमति देता है। यही नहीं फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ उठाए गए कदम में वियतनाम का भी समर्थन किया है। चीन नियमित रूप से वियतनाम के Exclusive Economic Zone (ईईजेड) में अतिक्रमण करता रहता है और मछुआरों को परेशान करता है। इसी के कारण वियतनाम ने सयुंक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाया था।
यही नहीं वियतनाम उन विदेशी कंपनियों को अपने देश में आकर्षित करने में लगा हुआ है जो कोरोना वायरस के कारण चीन से भाग रही हैं।
इसके अलावा इन्डोनेशिया में भी चीन के खिलाफ माहौल बन चुका है। देश के नागरिकों में चीन के खिलाफ बने इस माहौल के बीच वहाँ की विपक्षी पार्टियां एक भी मौका नहीं छोड़ रही हैं और सरकार पर चीन के खिलाफ एक्शन की मांग कर रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रपति Jake Widodo का चीन के पक्ष में जाना उन्हीं पर भारी पड़ सकता है। इसलिए इन्डोनेशिया में अब नीतिगत बदलाव देखा भी जा रहा है। यह देश अब Jakarta-Bandung high-speed railway बनाने वाली Kereta Cepat Indonesia China (KCIC) में जापान को शामिल करने की मांग कर रहा है।
मलेशिया में भी सरकार बदलते ही चीन के खिलाफ फिर से माहौल बनना शुरू हो चुका है। मुयहिद्दीन यासिन की सरकार ने अब चीन की Huawei पर प्रतिबंध लगा दिया मलेशिया के पहले की सरकारें चीन (China) के दबाव के आगे झुक गई थीं।
एशिया महाद्वीप के अन्य देशों जैसे श्रीलंका और मालदीव में चीन पहले ही अपना प्रभाव खो चुका था। श्रीलंका में महिंद्रा राजपक्षे की सरकार वर्ष 2015 में ही हट गयी थी जिससे चीन को गहरा झटका लगा था। परंतु, तब तक चीन हंबनटोटा बंदरगाह के माध्यम से इस देश को अपने कर्ज जाल में फंसा चुका था। लेकिन उसके बाद न तो सिरिसेना की सरकार और न ही गोटाबया राजपक्षे की सरकार ने चीन के प्रभाव को बढ़ने दिया। अब जब चीन चारो ओर से घिरा हुआ है तब श्रीलंका को दोबारा से हंबनटोटा बन्दरगाह पर अपना दावा करना चाहिए। वहीं मालदीव में वर्ष 2018 जब चीन (China) समर्थक राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार हटी और इब्राहिम मोहम्मद सोलीह की सरकार बनी तभी चीन ने अपना प्रभाव खो दिया था।
इन सभी देशों में चीन (China) ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए न जाने क्या क्या तिकड़म लगाए थे लेकिन आज सभी दांव उसके खिलाफ ही पड़ने वाले हैं। चीन के अत्याचारों का बदला लेने के लिए इन देशों के पास इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता है।