TFI पर हम समय-समय पर यह बताते रहते हैं कि कैसे चीन ने कुछ पश्चिमी देशों पर अपना प्रभाव जमा रखा है, जिसके कारण वे देश चीन के खिलाफ बोलने में हिचकिचाते हैं। यूरोपीय संघ उसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने कई मौकों पर चीन के सामने अपने घुटने टेके हैं। हालांकि, अब यूरोप के कई देशों के कुछ सांसद आपस में मिलकर एक चीन विरोधी गठबंधन तैयार करने जा रहे हैं, जो मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडे को रोकने की कोशिश करेंगे। इस गठबंधन को Inter-Parliamentary Alliance on China यानि IPAC नाम दिया गया है। इस गठबंधन में यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों से लेकर नॉर्वे, जर्मनी, स्वीडन और फ्रांस जैसे देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है। इस प्रकार यह गठबंधन EU के आधिकारिक रुख से अलग हटकर चीन को कड़ा संदेश भेजने के लिए ही बनाया गया है। इस गठबंधन में 9 संसदीय संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जिसमें कई तो चीन के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि जल्द ही EU द्वारा भी बड़े पैमाने पर चीन का विरोध देखने को मिल सकता है।
इस पैनल में शामिल होने वाले एक सदस्य मार्को रूबियो ने कहा “चीन आज के समय में जिस प्रकार बर्ताव कर रहा है, वह हमारी विदेश नीति को प्रभावित कर रहा है। हम चीन को ध्यान में रखते हुए पाँच बिन्दुओं पर फोकस रखना चाहेंगे- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी नियमों का पालन हो, मानवाधिकारों की रक्षा हो, व्यापार में पारदर्शिता बर्ती जाये, सुरक्षा के लिए रणनीतिक साझेदारी का विकास हो और देशों की संप्रभुता का सम्मान किया जाये”। इस चीन विरोधी गठबंधन में अपने सदस्य भेजकर अधिकतर यूरोपीय देशों ने चीन को एक कड़ा संदेश भेजा है।
बता दें कि चीन को लेकर यूरोपियन यूनियन का रवैया शुरू से ही ढीला-ढाला रहा है। यूरोपियन यूनियन न सिर्फ समय-समय पर चीन के आगे झुका है, बल्कि Corona के समय वह एकजुट होने की बजाय स्वयं ही टुकड़ों में बंट गया। चीन इसी बात का फायदा उठाकर न सिर्फ ईयू पर दबाव बना रहा है, बल्कि अब उसे अपने फायदे के लिए भी इस्तेमाल कर रहा है। हाल ही में EU देशों ने WHO की आम सभा में कोरोना की जांच को लेकर एक ऐसा कमजोर ड्राफ्ट पेश किया था, जिसे चीन ने भी समर्थन दे दिया, लेकिन उसमें कहीं पर भी चीन और वुहान का ज़िक्र तक नहीं था।
इसके अलावा कुछ दिनों पहले चीन में मौजूद यूरोपियन यूनियन के 27 सदस्य देशों के राजदूतों ने कोरोना वायरस पर चीन की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए एक पत्र भी लिखा था और उस पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी का बखान किया था। यह सिर्फ चीन की सरकार ही नहीं है जो इस तरह ईयू को अपने सामने झुका कर गुंडागर्दी कर रही है, बल्कि यूरोपीयन यूनियन के सभी देशों में मौजूद चीन के राजदूत भी गुंडागर्दी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। अप्रैल महीने में फ्रांस में मौजूद चीन के राजदूत ने फ्रांस के लोगों का मजाक बनाते हुए कहा था कि फ्रांस के डॉक्टर और नर्स अपने लोगों को मरने के लिए छोड़ अपनी जिम्मेदारी से ही भाग रहे हैं।
चीनी राजदूत के इस बयान पर फ्रांस की सरकार ने आपत्ति जताई थी और फ्रांस के राजदूत को समन भी किया था, लेकिन उसके बाद फ्रांस की सरकार कुछ नहीं कर पाई। चीन का मुकाबला तो छोड़िए इयू के देश खुद एकजुट नहीं रह पा रहे हैं। एक तरफ जहां फ्रांस और इटली जैसे देश कर्ज लेने के लिए ईयू से Corona bonds जारी करने की मांग कर रहे हैं तो वहीं, जर्मनी जैसे देश इटली और फ्रांस को बड़ा कर्ज देने से बचते दिखाई दे रहे हैं। मार्च के महीने में सोशल मीडिया पर कई ऐसी videos भी सामने आई थी जिसमें इटली के लोग यूरोपियन यूनियन का झंडा जलाते हुए दिख रहे थे।
हालांकि, जिस प्रकार अमेरिका EU के देशों पर दबाव बना रहा है, और जिस प्रकार EU के देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा उभरकर आया है, उसके बाद अब EU के देश भी चीन के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर हो रहे हैं और उसी के बाद इन देशों ने अब IPAC को बनाया है। EU में अगर चीन का विरोध बढ़ेगा तो यह चीन के लिए बड़ी मुश्किले खड़ी कर सकता है।