किसी ने क्या खूब कहा है, “ऐसी वाणी बोलिए कि जमकर झगड़ा होइए, पर उनसे पंगा न लीजिये जो आपसे तगड़ा होइए” शायद केपी ओली ने इस कहावत को कभी पढ़ा नहीं है, तभी वे ज़बरदस्ती उन लोगों से पंगा ले रहे हैं, जो नेपाल से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली और समृद्ध है। चीन के प्रति केपी शर्मा ओली की सरकार का प्रेम किसी से छुपा नहीं है, परंतु जिस तरह से नेपाल का वर्तमान प्रशासन चीन के कहने पर दुनिया के बाकी देशों के साथ अपने संबंध खराब करने पर तुला हुआ है। ऐसे में यदि आगे चलकर वह अमेरिका से भी पंगा मोल ले, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। मजे की बात यह है कि चीज़ें उसी दिशा में जाती हुई दिखाई दे रही हैं।
आपने ठीक पढ़ा, नेपाल का वर्तमान प्रशासन अब अमेरिका से पंगा मोल लेने चला है। अभी हाल ही में नेपाली सरकार ने अमेरिका के 3 वर्ष पुराने प्रस्ताव पर बैठक की थी, जिसमें मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन के नेतृत्व में अमेरिका नेपाल के इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 500 मिलियन या 50 लाख डॉलर की सहायता देने वाला था। इस कार्यक्रम से न केवल अमेरिका की नेपाल में एक सशक्त छवि बनती, अपितु इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव भी कम होता।
परंतु शी जिनपिंग से बढ़ती निकटता के कारण न केवल इस प्रोजेक्ट पर संशय खड़ा कर दिया गया है, अपितु सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी कभी अब इस मुद्दे पर दो भागों में बंट गयी है। जहां चीन समर्थक इस प्रोजेक्ट के सख्त विरुद्ध हैं, तो वहीं दूसरी ओर चीन विरोधियों ने दावा किया है कि इससे नेपाल को आगे काफी नुकसान हो सकता है। सत्ताधारी पक्ष के अनुसार अमेरिका से सहायता लेना किसी पाप से काम नहीं होगा।
नेपाल का चीन विरोधी गुट पूरी तरह गलत भी नहीं है। चीन ने केपी शर्मा ओली के प्रशासन को ढाल बनाते हुए नेपाल में अपने पाँव पसारना शुरू कर दिया है। भारत के साथ सांस्कृतिक निकटता होने के बावजूद नेपाल का वर्तमान प्रशासन जिस तरह से भारत को आँखें दिखा रहा है, वो किसी से नहीं छुपा है। इसके अलावा चीन के उकसाने पर जिस तरह से नेपाल आए दिन बॉर्डर विवाद को हवा दे रहा है, वो भी अपने आप में काफी चिंताजनक है। ऐसा लगता है मानो नेपाल के निर्णय काठमांडू में नहीं, बल्कि बीजिंग में तय किए जा रहे हैं। ऐसा लगता है मानो अमेरिका से मदद लेना ओली सरकार के शान में गुस्ताखी साबित होगी।
यदि केपी शर्मा ओली को ज़रा भी इतिहास के बारे में ज्ञान है, तो उन्हे स्मरण होना चाहिए कि चीन ने जिसे भी अपना मित्र बनाने का दावा किया, उसे अंत में कहीं का नहीं छोड़ा है। चीन के महत्वकांक्षी Belt and Road initiative का ही परिणाम है कि इटली, स्पेन और ईरान जैसे देश वुहान वायरस के प्रकोप से सर्वाधिक पीड़ित थे, जबकि श्रीलंका को अपने कर्जे निपटाने के लाले पड़ गए थे।
नेपाल पर चीन की कृपादृष्टि देख काशी का अस्सी का एक छंद याद आया। चीन वो पशु है जो पहले अपने शिकार को बहुत सहलाता है, बिलकुल जैसे गाय अपने बछड़े को जीभ से चाट चाट कर सहलाती है। परंतु जैसे जैसे उसकी पकड़ मजबूत होती जाती है, वह सहलाना जल्द ही शिकार के लिए असहनीय बन जाता है, और धीरे धीरे उसकी चमड़ी उधड़ने लगती है, यानि वो कर्ज़ के मायाजाल में फँसता जाता है।
नेपाल का वर्तमान प्रशासन वास्तव में वही गलतियाँ दोहरा रहा है, जिसके चक्कर में अभी कुछ माह पहले मलेशिया के विवादित प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद को जनसमर्थन और सत्ता, दोनों से ही हाथ धोना पड़ा था। भारत के बाद अब अमेरिका से पंगा मोल लेने की गलती कर ओली सरकार ने अपने अंत का प्रारम्भ कर दिया है, और यदि वे समय रहते नहीं चेते, तो आगे नेपाल को इस हेकड़ी के बहुत दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे।