जिस तरह से चीन किसी भी मामले पर अपने आप को बचाने के लिए प्रोपोगेंडा फैलाता है उसे देखते हुए अगर इन दोनों को एक दूसरे का समानार्थी शब्द कहे तो यह गलत नहीं होगा। कुछ दिनों पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उइगर और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ चीन द्वारा किए गए कुकृत्यों के लिए चीन को दंडित करने वाले विधेयक पर हस्ताक्षर किया था। उससे पहले अमरीका ने 28 चीनी कंपनियों को भी ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इस कारण से अब चीन अपनी जान बचाने के लिए CGTN चैनल से शिनजियांग के डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनवा कर खूब प्रोपोगेंडा फैला रहा है।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से चीन की सरकार CGTN के माध्यम से शिनजियांग प्रांत पर एक के बाद एक 3 डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना कर पूरी दुनिया को यह बताने में लगी है कि चीनी सरकार ने शिनजियांग प्रांत को आतंकवाद से मुक्त किया और उसके विकास के लिए कई निर्णायक कदम उठाए हैं।
ये वही शिनजियांग प्रांत है जहां उइगर मुसलमानों के साथ जानवरों की तरह बर्ताव किया जाता है और उनके मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई जाती है। अब अमेरिका के नए कानून से चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इससे चीन डरा हुआ है और अपनी छवि बचाने के लिए एक के बाद एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहा है।
इस फिल्म में यह बताया गया है कि 1990 और 2016 के बीच, शिनजियांग में हजारों आतंकवादी हमले हुए और इससे इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचा। गोलीबारी और बमबारी में सामान्य जीवन की बलि चढ़ गयी थी। जो बच गए वे post-traumatic stress disorder (PTSD) का सामना कर रहे हैं और चीन की सरकार शिनजियांग प्रांत में सामान्य जीवन लाने की हरसंभव कोशिश कर रही है। इन डॉक्यूमेंट्री फिल्मों पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने शुक्रवार को बीजिंग में एक दैनिक ब्रीफिंग में कहा कि यह फिल्म शिनजियांग प्रांत उइगर स्वायत्त क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी कार्रवाई की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से दिखाता है।
अपनी जान बचाने के लिए चीन का कहना है कि शिनजियांग प्रांत का मुद्दा मानव अधिकारों या धर्म के बारे में नहीं है, बल्कि आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई के बारे में है, और डॉक्यूमेंट्री फिल्म आतंकवाद विरोधी उपायों की आवश्यकता और चीनी सरकार द्वारा किए गए सभी प्रयासों को साबित करता है।
यह प्रोपोगेंडा नहीं है तो और क्या है? एक तरफ जहां चीन सरकार 2016 से ही उइगर मुसलमानों को गिरफ्तार कर शिविरों में रख रही है और उन्हें वोकेशनल एजुकेशन का नाम दे रही है, वहां उनके साथ जानवरों से भी खराब व्यवहार किया जाता। दूसरी तरफ इसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का नाम दे कर अपने आप को निर्दोष साबित करना चाहती है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चीन ने करीब 10 लाख उइगर और अन्य मुसलमानों को जबरन कैंपों में कैद कर रखा है और उन्हें इस्लाम धर्म से दूर करने की कोशिश की जाती है। ऐसी खबरें आती रही हैं कि, उइगर शिवरों में इस्लाम के प्रति घृणा फैलाने, इस्लाम के खिलाफ निबंध लिखने, इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ भड़काने और घृणा फैलाने जैसी तमाम शिक्षाएं दी जाती हैं। यहां तक कि, उन्हें सूअर का मांस खाने और शराब पीने के तक लिए मजबूर किया जाता है जो मुस्लिम धर्म में वर्जित माना जाता है।और फिर इन उइगर मुसलमानों का ‘पुन: शिक्षा’ के कैंप के बाद फैक्ट्रियों में बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
इन्हीं कारणों से ट्रम्प सरकार ने चीन के खिलाफ एक्शन लेते हुए एक विधेयक पारित किया था जिसके तहत चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में में उइगर मुस्लिमों और अन्य जातीय समूह के लोगों की बड़े स्तर पर निगरानी और उन्हें हिरासत में लेने वाले चीन के अधिकारियों पर प्रतिबंध का प्रावधान शामिल है। यही नहीं उससे पहले अमेरिकी सरकार ने उइगर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने तथा उनके साथ दुर्व्यवहार करने के मामले में चीन की 28 कंपनियों को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया था। जिसके बाद इन कंपनियों का अमेरिकी सामान खरीदने पर प्रतिबंध लग गया था।
अमेरिका को देख कर उसके कई साथी देश भी इसी तरह का कदम उठा सकते हैं और चीन इसी बात से डरा हुआ है। इसी डर में चीन ने यह प्रोपोगेंडा शुरू किया जिससे वह अपनी छवि सुधारे और उस पर कोई आरोप न लगे। चीन की शुरू से ही प्रोपोगेंडा फैलाने की आदत रही है चाहे वो कोरोना हो या भारत के साथ बॉर्डर विवाद। चीन की मीडिया हमेशा से ही प्रोपोगेंडा में सबसे आगे रही है और इसमें ग्लोबल टाइम्स का नाम सबसे ऊपर आएगा।
हालांकि, अब उइगर मामले पर पूरे विश्व की नजर पड़ चुकी है और चीन कितना भी प्रोपोगेंडा फैला ले उसकी सच्चाई सभी को पता है। अगर अमेरिका की तरह ही अन्य देश भी इस मामले पर चीन के खिलाफ एक्शन लें तो हैरानी नहीं होगी।