कोरोना के बाद जब पूरा विश्व चीन को सबक सिखाने के लिए एकजुट होता दिखाई दे रहा है, तो वहीं यूरोपीय देश चीन के विरोध में एक शब्द भी बोलने से घबरा रहे हैं। जर्मनी के नेतृत्व में पूरा यूरोपियन यूनियन मानो चीन की जी हुज़ूरी करने में लगा है। हालांकि, ऐसे समय में फ्रांस यूरोपियन यूनियन का इकलौता ऐसा देश है, जो ना सिर्फ खुलकर चीन का मुक़ाबला कर रहा है, बल्कि वह चीन के खिलाफ भारत का भी साथ दे रहा है। फ्रांस जिस प्रकार खुलकर चीन विरोधी रुख अपना रहा है, उसके माध्यम से वह जर्मनी को उसकी जगह दिखाने का काम कर रहा है। वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए फ्रांस अब EU का नेतृत्व करने की दिशा में काम कर रहा है, और उसके लिए उसने चीन मामले पर जर्मनी से बिलकुल अलग हटकर राय रखी है। राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों के नेतृत्व में फ्रांस पिछले कुछ दिनों में चीन विरोधी कई बड़े कदम उठा चुका है।
Reuters की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में फ्रांस ने अपने यहाँ अनौपचारिक रूप से चीनी टेलिकॉम कंपनी हुवावे को प्रतिबंध लगा दिया है। फ्रांस की साइबर सिक्योरिटी एजेंसी ANSSI के अध्यक्ष के एक बयान के मुताबिक फ्रांस में हुवावे पर पूर्णतः प्रतिबंध तो नहीं लगाया जाएगा लेकिन सरकार फ्रांस की टेलिकॉम कंपनियों को हुवावे से दूर रहने के लिए कहेगी। फ्रांस की सरकार भी हुवावे की वजह से पैदा होने वाली सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर इस चीनी कंपनी के खिलाफ यह बड़ा कदम उठा रही है।
इतना ही नहीं, फ्रांस ने बीजिंग के खिलाफ जैसे को तैसा मोड में कार्रवाई करते हुए बीते सोमवार को एक और बड़ा फैसला लिया, जब उसने चीनी एयरलाइंस पर हफ्ते में एक फ्लाइट से ज़्यादा की उड़ान भरने पर रोक लगा दी। 12 जून के बाद फ्रांस ने चीनी एयरलाइंस को हफ्ते में तीन फ्लाइट्स के उड़ान भरने की छूट दे दी थी, लेकिन चीन ने फ्रांस की एयरलाइन को हफ्ते में सिर्फ 1 फ्लाइट की उड़ान भरने की ही छूट दी हुई थी। अब फ्रांस ने भी चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया है।
यह तो कुछ भी नहीं, जब भारत-चीन विवाद अपने उफान पर था, तो फ्रांस की सरकार ने खुलकर भारत का समर्थन किया था। तब फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली ने अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह को पत्र लिखते हुए गलवान घाटी के हमले में वीरगति को प्राप्त हुए 20 भारतीय सैनिकों के प्रति सांत्वना जताते हुए लिखा था, “ये सैनिकों, उनके परिवारों और देश के लिए बहुत बड़ा आघात है। ऐसे संकट की घड़ी में मैं अपने देश की ओर से और पूरी फ्रांस सेना की ओर से इन सैनिकों के परिवारों के प्रति अपनी सांत्वना प्रकट करती हूँ”। इसके अलावा फ्लोरेंस पार्ली ने भारत आने की भी इच्छा जताई थी, और ये भी भरोसा दिलाया था कि फ्रांस आवश्यकता पड़ने पर भारत को हरसंभव सहायता देगा।
दूसरी तरफ जर्मनी के नेतृत्व में यूरोप के बाकी देश चीन का गुणगान करने से नहीं थकते हैं। चीन को लेकर शुरू से ही जर्मनी का रवैया बड़ा ढीला-ढाला रहा है। जब कोरोना के बाद जी7 देशों की पहली बैठक हुई थी, तो उसमें अमेरिका संयुक्त बयान में Chinese virus शब्द शामिल करवाना चाहता था, लेकिन तब जर्मनी ने सबसे ज़्यादा बवाल बचाया था और उसका नतीजा यह निकला था कि जी7 तब कोई संयुक्त बयान जारी ही नहीं कर पाया था। इसके अलावा हाल ही में जब ट्रम्प ने जी7 समिट बुलाई थी, तो जर्मनी ने इसमें शामिल होने से साफ इंकार कर दिया था। बाद में ट्रम्प को इस समिट को रद्द करना पड़ा और बाद में उन्होंने कहा कि भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के आने के बाद ही जी7 समिट को दोबारा आयोजित कराया जाएगा।
जर्मनी के चीन प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि हाल में ही वहाँ के विदेश मंत्री ने यह बयान दिया कि “चीन पर प्रतिबंध लगाने से ज़्यादा ध्यान हमें चीन से बातचीत करने पर देना चाहिए। चीन से बात करते रहना अत्यंत आवश्यक है। इसका EU पर अच्छा प्रभाव होगा”।
"The past has shown that it's important to have a dialogue with China."
Instead of possible sanctions, German Foreign Minister @HeikoMaas said keeping up the dialogue with China would make it possible for the EU to have a lasting effect on the country. pic.twitter.com/yKKzG8jnyO
— DW Politics (@dw_politics) May 29, 2020
जर्मनी के नेतृत्व में बाकी यूरोप भी चीन की तरफदारी करने में लगा है। हालांकि, फ्रांस लगातार चीन विरोधी कदम उठाकर इन देशों को चीन के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित कर रहा है। ऐसे में ना सिर्फ ये देश चीन के खिलाफ खड़े होंगे, बल्कि जर्मनी को डंप कर फ्रांस के नेतृत्व में अधिक विश्वास दिखाएंगे। फ्रांस भी यही चाहता है। पूरे यूरोपियन यूनियन में अकेला फ्रांस ही है, जो चीन का खुलकर सामना कर रहा है। फ्रांस के पास EU में अपना प्रभाव बढ़ाने का बढ़िया मौका है, और फ्रांस इस मौके का जमकर फायदा भी उठा रहा है।