चीन की Wolf Warrior कूटनीति औंधे मुंह गिर चुकी है। चीन को लगा था कि वो दुनिया को आक्रामकता दिखाकर सबको अपनी मुट्ठी में कर लेगा, लेकिन भारत और अमेरिका जैसे देशों ने अब तक चीन के इस सपने को साकार होने नहीं दिया है। लद्दाख में भारत ने और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका ने चीन को जो झटका दिया है, वो शायद ही चीन कभी भूल पाएगा। यही कारण है कि अब चीन ने दक्षिण चीन सागर से सटे अपने ASEAN पड़ोसियों के साथ दोबारा अपने रिश्तों को सुधारने की कवायद तेज कर दी है। अमेरिका-भारत से घबराकर चीन अब अपने पड़ोसियों की गोद में जाकर बैठना चाहता है और इसके लिए वह उन्हें आर्थिक फ़ायदों का लालच दे रहा है।
South China Morning Post के मुताबिक चीन पिछले कुछ समय से वियतनाम, कंबोडिया और फिलीपींस जैसे पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को बहाल करना चाहता है, क्योंकि उसे अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का डर सताने लगा है। अमेरिका ने हाल ही में दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों को “अवैध” करार दिया था, जिसके बाद से ही अमेरिका-चीन के रिश्तों में भयंकर तनाव बढ़ा हुआ है। अब चीन को अपने पड़ोसियों का ही सहारा है, और ऐसे में उसे अपनी Wolf Warrior कूटनीति को कूड़े के ढेर में फेंकना पड़ा है।
उदाहरण के लिए हाल ही में फिलीपींस में मौजूद चीनी राजदूत ने कहा कि अगर चीन कोरोना की वैक्सीन बना लेता है, तो वह सबसे पहले वह वैक्सीन फिलीपींस को ही देगा। फिलीपींस में चीनी राजदूत Huang Xilian ने कहा था “जब COVID-19 वैक्सीन विकसित और उपयोग में लाई जाएगी है, तो चीन फिलीपींस को प्राथमिकता देगा।” फिलीपींस के प्रति चीन का यह प्यार क्या वाकई नि:स्वार्थ है? बिलकुल नहीं! दरअसल, पिछले कुछ समय से फिलीपींस अब सुरक्षा के मोर्चे पर चीन को घेरने के लिए भारत, अमेरिका और अन्य चीन विरोधी शक्तियों के साथ आ चुका है और चीन को यह डर सता रहा है इस महत्वपूर्ण देश की नाराज़गी उसके लिए दक्षिण चीन सागर में समस्या खड़ा कर सकती है।
इसी प्रकार चीन अब वियतनाम को भी अपने झाँसे में फँसाने की कोशिश कर रहा है। बीते मंगलवार को ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने वियतनाम के विदेश मंत्री के साथ बातचीत कर रिश्तों को संभालने की कोशिश की। वियतनाम पिछले काफी समय से चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है। वियतनाम इस साल ASEAN का अध्यक्ष बना है, और इसकी वजह से ASEAN खुलकर चीन के विरोध में बयान दे रहा है। पिछले महीने ASEAN देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ था और ASEAN देशों ने अपने संयुक्त बयान में चीन को आड़े हाथों लिया था।
ASEAN के संयुक्त बयान के मुताबिक “हम दोहराते हैं कि 1982 में हुई संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि समुद्री अधिकार, संप्रभुता, अधिकार क्षेत्र और वैधता निर्धारित करने के लिए आधार है।” आसान भाषा में कहें तो ASEAN देशों ने दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों को अस्वीकार कर दिया था। अब चीन चाहता है कि वियतनाम के साथ रिश्तों को ठीक करके ASEAN के चीन विरोधी रुख में कोई नर्मी लायी जा सके।
वियतनाम के अलावा चीन कंबोडिया के साथ भी द्विपक्षीय रिश्तों को नया आयाम देना चाहता है। बीजिंग के मुताबिक बीते सोमवार को ही चीन ने ASEAN सदस्य देश के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट को लेकर बातचीत पक्की कर ली है। ऐसे में चीन कंबोडिया को आर्थिक लालच देकर अपने पाले में करना चाहता है।
चीन जानता है कि वह ASEAN देशों के गुस्से का मुक़ाबला नहीं कर सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि ये सभी देश चीन के पड़ोसी हैं और जिस देश के पड़ोसी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएँ, तो उस देश का स्थिर रहना बड़ा मुश्किल हो जाता है। अमेरिका-भारत से तनाव के बाद चीन पहले ही अलग-थलग पड़ चुका है। अब ASEAN के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर चीन अपने वैश्विक प्रभाव को बचाए रखने की कोशिश कर रहा है।