वुहान वायरस जैसी महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचा है। कई देशों ने स्पष्ट जताया है कि इस समय उनकी अर्थव्यवस्था recession से गुज़र रही है, और कुछ देशों ने आर्थिक सहायता के लिए आईएमएफ़ और विश्व बैंक से गुहार लगाई है। भारत भी इससे अछूता नहीं है, और आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक भारत की विकास दर इस वर्ष महज 1 से 2 प्रतिशत के बीच रह सकती है। लेकिन एक देश ऐसा भी है जो इस समय दुनिया के सामने ढिंढोरा पीटने से बाज़ नहीं आ रहा है, और वो है चीन।
चीन का दावा है कि देश का वार्षिक आर्थिक दर करीब 3.2 प्रतिशत के आसपास होगा। लेकिन जिस समय चीनी निर्यात में भारी गिरावट दर्ज हुई हो, Huawei जैसी चीनी कम्पनियों को कई बड़े देशों से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा हो, बड़े-बड़े चीनी एप्स को प्रतिबंधित लगाया जा रहा हो, वहाँ ये कैसे संभव है कि चीन का विकास दर सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है? विशेषकर तब जब अप्रैल के तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था में 6.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई थी?
पूर्व चीनी राष्ट्रपति ली कीकियांग ने 2007 में कहा था कि जीडीपी के आंकड़े अक्सर ‘कृत्रिम’ होते हैं, और इसलिए उनपर विश्वास करना हास्यास्पद होता है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि चीन का 3.2 प्रतिशत की दर से विकास एक सफ़ेद झूठ है, जिसका कोई ठोस आधार नहीं है। इसे केवल हम ही नहीं, बल्कि चीन के दावे और उसके आंकड़े स्वयं सिद्ध करेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन अक्सर अपने जीडीपी के आंकड़े बढ़ा चढ़ाकर बताता आया है। जब अप्रैल में, बीजिंग ने सूचना दी कि उसकी अर्थव्यवस्था 6.8 प्रतिशत तक सिकुड़ गई है, तो लोगों के लिए विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। चीन 1976 के बाद से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। अप्रैल तक चीन अपनी आर्थिक व्यवस्था की जड़ें मजबूत करने में व्यस्त था तभी कोरोना वायरस की महामारी ने उसकी वैश्विक ताकत बनने के सपने को बड़ा झटका दिया था। दरअसल, बीजिंग इन आंकड़ों से ये जताना चाहता था कि वुहान वायरस से उसकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है। ऐसा करके डोनाल्ड ट्रम्प सहित कई वैश्विक ताकतों द्वारा आलोचना का सामना कर रहे शी जिनपिंग सहानुभूति बटोरना चाहते थे। पर ऐसा हो नहीं पाया।
अब तक ये महामारी न केवल कई लोगों को खत्म कर चुकी है बल्कि दुनिया भर में आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में चीन चाहकर भी वैश्विक आलोचना से नहीं बच पाया। इसी बीच जब मल्टी नेशनल कंपनियां चीन को छोड़ने लगी, तो उन्हें आकर्षित करने में भारत, जापान और वियतनाम जैसे देशों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि चीन वास्तव में आर्थिक प्रगति की ओर बढ़ रहा है, तो उसके यहाँ से विदेशी कंपनियां पलायन क्यों कर रही थी? यदि चीन में सब कुछ ठीक था, तो विदेशी कम्पनियों को आकर्षित करने वाले देशों, विशेषकर भारत और जापान के विरुद्ध चीन ने आक्रामक रुख क्यों अपनाया हुआ था?
सच कहें तो चीनी अर्थव्यवस्था की हालत बहुत खराब है, और ये तो बस अभी शुरुआत हुई है। ऑस्ट्रेलिया, भारत, अमेरिका और जापान ने तो चीन के विरुद्ध आर्थिक युद्ध छेड़ दिया है। इसका श्रीगणेश भारत ने टिक टॉक सहित 59 चीनी एप्स को प्रतिबंधित करके किया। अमेरिका तो वैसे ही चीन के विरुद्ध ट्रेड वॉर में लगा हुआ है, और उइगर समुदाय, ताइवान , तिब्बत एवं हाँग काँग के नागरिकों पर अत्याचार करने के लिए अमेरिका ने चीनी अफसरों पर तरह तरह के sanction यानि प्रतिबंध भी लगाए हैं।
इसके अलावा चीनी निर्यात में मई माह में 3.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई थी। आर्थिक विश्लेषकों की माने तो यह आंकड़ा वास्तव में कहीं ज़्यादा हो सकता है। चीन के उत्पादों के लिए डिमांड बहुत कम है, आयात भी करीब 17 प्रतिशत गिरे हैं, और रही सही कसर तो चीन ने हाँग काँग पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून थोप कर पूरी कर दी। इसके बावजूद यदि चीन 3.2 प्रतिशत के विकास दर होने का दावा कर रहा है, तो चीन या तो खुद मुर्ख है या दुनिया को मुर्ख समझता है ।
लेकिन इसमें भला चीन भी क्या करता। चीनी प्रशासन को भी पता है कि यदि उसने वास्तविक आंकड़े दिखाये, तो भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका को चीनी अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाने की मंशा काफी सफल होते हुए दिखाई देगी। इसीलिए शी जिनपिंग की सरकार ने एक बार फिर वही किया जिसके लिए चीन विश्व प्रसिद्ध है, झूठे आंकड़ों से दुनिया को उल्लू बनाना। लेकिन बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी।