केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह अपने कुशल प्रशासन के लिए जाने जाते हैं, और दिल्ली के मामले में उन्होंने फिर से इसे सिद्ध भी किया है। पर क्या वे बिहार का भी ऐसे ही कायाकल्प कर सकते हैं? इस राज्य में जिस तरह से वुहान वायरस की महामारी ने एक विकराल रूप धारण किया है, वो फिलहाल के लिए तो कम होता नहीं दिख रहा है। इसी के साथ-साथ बिहार का बाढ़ से भी बुरा हाल है। बिहार सरकार का कुछ अता-पता नहीं है और ऐसे में केंद्र सरकार को ही अब कोई बड़ा कदम उठाना चाहिए।
पिछले माह दिल्ली देश में वुहान वायरस के प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरता हुआ दिखाई दे रहा था। बढ़ते हुए मामलों के साथ ऐसा लग रहा था मानो केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की व्यवस्था को राम भरोसे छोड़ दिया है। हद तो तब हो गई जब उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, “आज एसडीएमए की बैठक में जब चर्चा हुई, तो सामने आया कि 15 जून तक यहाँ 44,000 मामले होंगे और 6600 बेड्स की आवश्यकता आन पड़ेगी। 30 जून तक एक लाख से अधिक मामले होंगे और 15000 बेड्स की आवश्यकता पड़ेगी। यदि स्थिति नियंत्रण में नहीं आई तो 31 जुलाई तक साढ़े 5 लाख मामले हो जाएंगे और 80000 बेड्स की आवश्यकता पड़ जाएगी”।
इस बयान के कारण दिल्ली में कोहराम मच गया। रही सही कसर केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के अस्पताल केवल दिल्ली निवासियों के लिए आरक्षित कर पूरी कर दी। आउटलुक मैगज़ीन के अनुसार इसी समय पीएम मोदी ने अमित शाह को ज़िम्मेदारी संभालने के लिए कहा। तद्पश्चात 14 जून को अमित शाह ने दिल्ली प्रशासन के सभी अफसरों से मिलते हुए दिल्ली को तुरंत इस संकट से बाहर निकालने का खाका बुना।
अब जब जुलाई माह खत्म होने को है, साढ़े 5 लाख छोड़िए, दिल्ली के कुल मामले डेढ़ लाख के पार भी नहीं गए है। इसके पीछे आक्रामक स्तर पर टेस्टिंग, डोर 2 डोर सर्वे, समय पर अस्पताल के स्टाफ को पीपीई किट्स दिलवाना, आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं इत्यादि देना, बड़ा कारण साबित हुआ है। इन सभी जगहों पर युद्धस्तर पर अमित शाह की देख रेख में काम करवाया गया। इसके अलावा करीब 1,13,000 मरीज पूरी तरह ठीक भी हो चुके हैं, और दिल्ली की रिकवरी रेट करीब 87 प्रतिशत के आसपास पहुँच चुकी है।
लेकिन जहां दिल्ली सुर्खियों में रही है, तो वहीं बिहार के बारे में एक्शन तो बहुत दूर की बात, कोई बात तक नहीं करना चाहता। पूरे देश में प्रति दस लाख लोग के हिसाब से टेस्टिंग दर में बिहार सबसे पीछे है, और यहीं पर संक्रमण का दर सबसे अधिक भी दिखाई दे रहा है। इसके अलावा बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था वुहान वायरस के दबाव में ताश के पत्तों की तरह बिखरती हुई दिखाई दे रही है।
बिहार के अस्पताल अब लोगों को बचाने के लिए, बल्कि उनकी मृत्यु को और अधिक आसान बनाने के स्थान में परिवर्तित हो गए हैं। कई लोग सड़कों पर इलाज की प्रतीक्षा में अपने जान से हाथ धो बैठ रहे हैं, और यदि ऐसा नहीं है, तो स्वास्थ्य सुविधाएं अस्पताल में न मिलने के कारण उनकी जाने जा रही हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के हाथ खड़े पर अमित शाह ने समय रहते स्थिति संभाल ली थी। परंतु बिहार में भाजपा और जेडीयू के गठबंधन की सरकार होने के बावजूद स्थिति बद से बदतर होते जा रही है। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे स्वयं भाजपा नेता होकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में समय आ गया है कि अब केंद्र स्तर पर भी भाजपा बिहार की ज़िम्मेदारी संभालें।
बिहार में कोरोना ही अकेली चुनौती नहीं है। बिहार में बाढ़ से भी लोगों का बुरा हाल हो गया है। बाढ़ में अब तक 16 लोगों की जान चली गयी है और करीब 37 लाख लोग इससे प्रभावित माने जा रहे हैं। बिहार सरकार दोनों ही मुसीबतों से निपटने में विफल दिखाई दे रही है।
नीतीश कुमार इस मामले में पूर्णतया फिसड्डी सिद्ध हुए हैं। उनके कारण भाजपा भी जनता के गुस्से का शिकार बन रही है, क्योंकि वह सत्ता में है और जेडीयू का गठबंधन में साझेदार भी है। उसके ऊपर से RJD जैसे दल घात लगाए बैठे हैं कि कब उन्हे सत्ता मिले। ऐसे में अमित शाह को दिल्ली की तरह बिहार की स्थिति सुधारने में भी आगे आना चाहिए, अन्यथा वुहान वायरस और बाढ़ के कारण बिहार उनके हाथ से हमेशा के लिए भी फिसल सकता है।