दुनिया में चीन विरोधी मानसिकता बढ़ती ही जा रही है, और खासकर दक्षिण पूर्व एशियाई देश तो खुलकर चीन का विरोध कर रहे हैं। कोरोना के बाद जिस प्रकार चीन इन देशों के खिलाफ आक्रामकता दिखा रहा है, उसके बाद ये देश चीन को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि, इसी के साथ-साथ इन देशों में भारत की स्वीकार्यता भी बढ़ी है। इंडोनेशिया, फिलीपींस जैसे देश आज भारत के साथ अपने संबंध मजबूत करने को लेकर बेहद उत्साहित दिखाई दे रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि वर्ष 2014 के बाद से भारत ने अपनी “Act East” पॉलिसी के तहत इन देशों पर खास ध्यान दिया। पिछले 4-5 सालों से भारत द्वारा की जा रही मेहनत का ही यह परिणाम है कि आज इन देशों पर भारत का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में कई समानताएँ हैं, जिसके कारण ये देश अब नजदीक आ रहे हैं। ये सभी देश चीन की आक्रामकता का शिकार हो रहे हैं। एक तरफ चीन जहां भारत-तिब्बत बॉर्डर पर विवाद बढ़ाने में लगा हुआ है, तो वहीं दक्षिण चीन सागर में तो उसका सभी देशों के साथ ही विवाद है। भारत की तरह ही दक्षिण पूर्व एशिया के देश भी चीन को अपने लिए एक खतरे के रूप में देखते हैं, क्योंकि चीन इनके लिए लगातार सुरक्षा चुनौती पैदा करता रहता है। कोरोना के बाद चीन खुलकर इन देशों को धमकाने पर उतर आया है। लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये देश चीन को सबक सिखाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। भारत की Act East पॉलिसी के तहत भारत ने पिछले सालों में जो भी कूटनीतिक पूंजी निवेश की है, उसका अब रिटर्न देखने को मिल रहा है।
उदाहरण के लिए हाल ही में फिलीपींस के रक्षा मंत्री Delfin Lorenzana ने यह घोषणा की कि भारत भी दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में navigation के लिए रूचि दिखा रहा है। इससे पहले फिलीपींस के नेवी चीफ़ ने कहा था कि वे भारत को दक्षिण चीन सागर में देखना चाहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दक्षिण पूर्व एशिया के छोटे-छोटे देश चीन की नेवी का मुक़ाबला करने में अक्षम हैं। इसलिए उन्हें अमेरिका, भारत जैसे देशों की आवश्यकता है ताकि उस इलाके में वे चीन के लिए चुनौती खड़ी कर सकें। भारत की कूटनीति का ही यह कमाल है कि अब ये देश भारत को चीन के विकल्प के रूप में देखने लगे हैं।
अब बात दक्षिण पूर्व एशिया के एक और देश वियतनाम की कर लेते हैं। चीन के साथ विवाद के समय वियतनाम चाहता है कि दोनों देश आपसी सम्बन्धों को मजबूत करें। वियतनाम के experts इस बात का समर्थन कर रहे हैं कि उन्हें भारत के साथ सम्बन्धों को और प्रगाढ़ करना होगा।
ऐसे ही इंडोनेशिया भी पीछे नहीं है। चीन का इस देश के साथ भी विवाद चल रहा है क्योंकि चीन इंडोनेशिया के EEZ (Exclusive Economic Zone) के एक बड़े हिस्से को अपना इलाका बताता है। ऐसे में दोनों देश जल्द ही स्ट्रेट ऑफ मलक्का के आसपास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाके को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव कर सकते हैं ताकि चीन पर दबाव बनाया जा सके।
यह सब कैसे मुमकिन हुआ? आखिर ये देश भारत को लेकर इतना उत्साहित क्यों हैं? इसका जवाब है पिछले कुछ सालों में भारत की ओर से लगातार शानदार कूटनीति। ASEAN देश भारत की इंडो-पेसिफिक रणनीति का सबसे अहम हिस्सा है। भारत को ASEAN देशों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए इन देशों में मौजूद चीन-विरोधी मानसिकता का भरपूर फायदा उठाना था। भारत ने ठीक ऐसा ही किया। भारत ने वर्ष 2015 में ASEAN देशों के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए इंडोनेशिया में एक विशेष ASEAN मिशन की नींव रखी, नहीं तो इससे पहले इंडोनेशिया में मौजूद भारतीय दूतावास को ही पूरे ASEAN की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।
वर्ष 2018 में अपने गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत ने ASEAN देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर उनका सम्मान बढ़ाया था। इसके साथ ही भारत ने इन देशों के सामने अपनी firepower का प्रदर्शन भी किया था। यह भी Act East के तहत ही किया गया था।
चीन के विस्तारवादी व्यवहार की वजह से इस क्षेत्र के सभी शांति-प्रिय देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ा हुआ है। चीन ना तो किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून को मानता है और ना ही किसी संधि को। चीन ना तो किसी नियम का पालन करता है और ना ही द्विपक्षीय सम्बन्धों का! ऐसे में चीन एक गुंडे की तरह बर्ताव कर रहा है और indo-pacific के सभी देशों को अब भारत में ही उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। इसके लिए पिछले चार-पाँच सालों के दौरान भारत द्वारा Act East के तहत की गयी कूटनीति की प्रशंसा की जानी चाहिए।