चीन के लिए बुरी खबरों का दौर समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। जापान, भारत, अमेरिका और दुनिया के अन्य बड़े लोकतांत्रिक देश चीन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए बड़े पैमाने पर एक दूसरे का सहयोग करने की बात कर रहे हैं। इसी बीच जापान ने पिछले कुछ समय से चीन के खिलाफ बेहद सख्त रुख अपनाया हुआ है। जापान और चीन के बीच सेनकाकु द्वीपों को लेकर बढ़े विवाद के बाद जापान मानो चीन को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। इसी कड़ी में Japan की सत्ताधारी पार्टी ने अब Hong-Kong में चीन द्वारा लागू किए जाने वाले “सुरक्षा कानून” के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करने का मन बनाया है। इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रस्तावित Japan यात्रा को रद्द करने की मांग भी की जाएगी। उम्मीद है कि यह प्रस्ताव अगले हफ्ते जापानी संसद में पास हो जाएगा, जिसे बाद में जापानी प्रधानमंत्री शिंजों आबे के ऑफिस में भेजा जाएगा।
गौरतलब है कि कोरोना महामारी फैलने से पहले अप्रैल महीने में शी जिनपिंग की जापान यात्रा प्रस्तावित थी। हालांकि, कोरोना के बाद से ही यह यात्रा स्थगित है। पिछले कुछ महीनों में जो कुछ भी घटा है, उसके बाद इस बात के पूरे-पूरे आसार है कि जिनपिंग की यह यात्रा अब कभी नहीं होगी, लेकिन उसके बावजूद जापानी सांसदों का इस यात्रा के खिलाफ एक प्रस्ताव लेकर आना दर्शाता है कि जापान चीन की भयंकर बेइज्ज़ती करना चाहता है। बिल में Hong-Kong के लोगों के साथ खड़ा होने की बात भी कही गयी है। इतना ही नहीं, जापान ने अभी यह ऐलान भी किया है कि वह Hong-Kong में नए चीनी कानून के लागू होने के बाद Hong-Kongers को अपने यहाँ शरण भी दे सकता है। Japan के इन कदमों से चीन की हालत पतली है।
जापान के इस रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने हाल ही में कहा था “हम जापान के इस रुख पर बेहद चिंतित हैं। सभी देशों को चीन के आंतरिक मामलों का सम्मान करना चाहिए। सभी देशों को अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों को भी ध्यान में रखना चाहिए”।
जापान और चीन के बीच हालिया तनाव का सबसे बड़ा कारण है जापान के सेनकाकु द्वीप, जिनपर चीन कब्ज़ा करना चाहता है। सेनकाकु द्वीपों पर जापान का वर्ष 1895 से ही कब्जा रहा है। हालांकि, चीन बेतुके ऐतिहासिक कारणों के आधार पर इन द्वीपों पर अपना दावा करता है। Japan ने चीन से क्षेत्र में शांति बनाए रखने का आह्वान किया है, लेकिन चीनी नेवी लगातार जापान के इन द्वीपों के आसपास सैन्य गातिविधि को बढ़ा रही है, जिससे इस क्षेत्र में तनाव पैदा हो गया है। हाल ही में Japan ने इन द्वीपों पर अपना दावा मजबूत करने के लिए इस द्वीप के स्थानीय प्रशासनिक नाम को बदलने का भी फैसला लिया है, जिससे चीन चिढ़ा हुआ है। इसके अलावा चीनी आक्रामकता के खिलाफ Japan ने चीन की ओर अपने बॉर्डर पर सेना और मिसाइलों को तैनात करने का भी फैसला लिया है। अब जापान Hong-Kong के मुद्दे पर चीन को घेरने मैदान में कूद चुका है और अपनी इस कोशिश में वह अब चीन के “शक्तिशाली” नेता शी जिनपिंग की व्यक्तिगत बेइज्जती करना चाहता है।
जापान चीन की आक्रामकता का बड़ी ही गंभीरता से मुक़ाबला कर रहा है। कुछ ही दिनों पहले जापान के रक्षा मंत्री ने बड़ा बयान देते हुए कहा था कि जापान ने चीन के खिलाफ Pre-emptive strike करने के विकल्प को छोड़ा नहीं है। जापान का राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद चीन को सबक सिखाने के लिए किफ़ायती, पर असरदार विकल्प की तलाश कर रहा है। जब pre-emptive strikes का प्रश्न उठा, तो तारो कानो ने उत्तर दिया, “जब चर्चा होगी, तो हम किसी विकल्प को बाहर नहीं रख रहे हैं”।
जापान के चीन के खिलाफ इस सिंहनाद से किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। जापान और चीन के रिश्तों में शुरू से ही तनाव रहा है। जापान और चीन का ज़मीन विवाद भी जारी है। Japan के लोगों में चीन के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। कोरोना के बाद इस गुस्से में कई गुना इजाफा भी हुआ है। ऐसे में जापानी सरकार अब जल्द ही शी जिनपिंग की घनघोर बेइज्जती करने वाले प्रस्ताव को पास कर शी जिनपिंग को उनकी जगह दिखा सकती है।