भारत-चीन के बीच बढ़ते तनाव का सबसे बड़ा असर दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों पर पड़ा है। बॉर्डर पर चीनी आक्रामकता के बाद भारत ने चीन को सबक सिखाने के लिए अपने बंदरगाहों पर ही चीनी सामान को रोकना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में चीनी सामान के आयातकों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आज भारत में ऐसी कई अमेरिकी, चीनी, दक्षिण कोरियाई और जापानी कंपनियाँ काम करती हैं, जो भारत में अपना सामान manufacture करती हैं, लेकिन वे अपना कच्चा माल चीन से ही आयात करती हैं। भारत द्वारा बंदरगाह पर ही चीनी सामान को रोके जाने की वजह से इन कंपनियों को सबसे बड़ा नुकसान हुआ है। ऐसे में भारत सरकार ने इन्हें साफ संदेश दिया है कि अगर उन्हें भारत में बिना किसी परेशानी के ऑपरेट करना है, तो उन्हें अपनी सप्लाई चेन को चीन से बाहर रखना होगा।
भारत सरकार ने बड़े पैमाने पर अपने यहाँ boycott China मुहिम को शुरू किया है। इसके तहत सरकार ना सिर्फ सरकारी प्रोग्रामों से चीनी कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा रही हैं, बल्कि अपने लोगों को सिर्फ और सिर्फ भारत में बने सामान खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में सरकार ने पिछले दिनों देश के बन्दरगाहों पर चीन से आयात किए गए सामान की 100 प्रतिशत जांच करने का फैसला लिया, जिसकी वजह से बन्दरगाहों पर चीनी सामान को clearance मिलने में देरी हो रही है और चीन का सामान ऐसे ही कई दिनों से बन्दरगाहों पर पड़ा हुआ है। अब भारत में चीनी सामान पर निर्भर कई कंपनियों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो गयी है। उदाहरण के लिए भारत में ऑपरेट करने वाली चीनी, अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई मोबाइल निर्माता कंपनी अपने electronic parts चीन से ही मंगाती है। अब भारत ने इन सब कंपनियों को संदेश दिया है कि वे इन electronic पार्ट्स को भी भारत में ही manufacture करें, अन्यथा इन्हें भविष्य में भी इन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अभी भारत सरकार के इस कदम से सबसे ज़्यादा प्रभाव Foxconn पर पड़ा है, जो भारत में apple जैसी कंपनियों के लिए mobile assembling का काम करती है। भारत सरकार के इस कदम के बाद इस कंपनी के लिए भारत में mobile assemble करना मुश्किल हो गया है।
इसका असर सिर्फ mobile कंपनियों पर ही नहीं, बल्कि ऑटो सेक्टर की कंपनियों पर भी पड़ा है। चीनी कंपनी MG Motors और अन्य भारतीय auto makers को भी spare parts के लिए चीन पर निर्भर होना पड़ता है। अभी इन सब कंपनियों के लिए आगे बढ़ने का एक ही एक रास्ता बचा है। इन कंपनियों को अब उस सामान का उत्पादन खुद भारत में ही शुरू करना पड़ेगा जिसके लिए उन्हें चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में जिस प्रकार ये कंपनियाँ चीनी सामान का उपयोग कर “made in India” का लेबल लगा कर भारतीयों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसपर काफी हद तक लगाम लगेगी। इससे भारत के सामान पूरी तरह चीनी मुक्त हो सकेंगे, वहीं भारत में manufacturing को भी बढ़ावा मिलेगा।
बता दें कि अभी भारत अपने साथियों के साथ मिलकर चीन को वैश्विक सप्लाई चेन से बाहर करने के लिए शिद्दत से काम कर रहा है। इसी साल 30 अप्रैल को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी यह कहा था कि अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि सप्लाई चेन को दुरुस्त किया जा सके। ज़ाहिर सी बात यह है कि अब ये सभी देश मिलकर वैश्विक सप्लाई चेन से चीन को बाहर करने की योजना पर काम कर रहे हैं। भारत भी इस योजना में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। चीन ने जिस प्रकार लद्दाख में भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है, उसके बाद से भारत ने अपने चीन-विरोधी कदमों में और तेजी ला दी है।
भारत के इस कदम से भारत को कुछ समय के लिए परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन लंबे समय में यह चीन को नुकसान पहुंचाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन पर आर्थिक प्रहार करने वाले दर्जनों देश हैं। भारत सरकार अपने अन्य साझेदार देशों के साथ मिलकर चीन को बर्बाद करने के प्लान पर काम कर रहा है। आज भारत जिस प्लान पर काम कर रहा है, उसके परिणाम आज से कुछ सालों के बाद देखने को मिलेंगे और जब चीन को इस बात का अहसास होगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।