विश्व अभी कोरोना से उबर भी नहीं पाया था कि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने चर्च से म्यूजियम में बदले गए तुर्की के हागिया सोफिया म्यूजियम को मस्जिद में बदलने का फैसला लेकर एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। एर्दोगन के इस फैसले ने एक बार फिर से उसमानी या ओटोमान साम्राज्य की क्रूरता को पुनर्जीवित कर दिया जब वे शहरों को तबाह कर उसे इस्लामी रंग देते थे। एक बार फिर से हागिया सोफिया मुस्लिमों और ईसाई के बीच युद्ध क्षेत्र में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है। परंतु इस चर्च या मस्जिद का भारत से क्या रिश्ता है ?
भारत खासकर हैदराबाद के निज़ाम का इस स्थान और वर्षों पुराने विवाद से एक अंतरंग तथा ऐतिहासिक संबंध है। बता दें कि हैदराबाद के निजाम और तुर्की खलीफा- दुनिया के दो सबसे रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार वैवाहिक संबंधों से जुड़े हुए हैं। यह संबंध तुर्की शाही परिवार की राजकुमारी Niloufer और खलीफा अब्दुल मजीद की बेटी Durru Shehvar के दिनों की हैं। राजकुमारी Niloufer का निकाह हैदराबाद के अंतिम निज़ाम मीर उस्मान अली खान के दूसरे पुत्र Moazzam Jah से हुआ था तो वहीं, राजकुमारी Durru Shehvar का निकाह मीर उस्मान अली खान के सबसे बड़े बेटे आज़म जाह से हुई थी।
ओटोमन साम्राज्य और हैदराबाद निजाम का परिवार भारत में चल रहे खिलाफत आंदोलन के दिनों के दौरान एक दूसरे के करीब आया था, जिसे खुद भारतीय इस्लामिस्टों ने तुर्क साम्राज्य के विघटन के विरोध में शुरू किया था।
इतिहासविद अरविंद आचार्य के अनुसार खिलाफत आंदोलन को शुरू करने वालों में से एक मौलाना शौकत अली की सिफारिश पर हैदराबाद के निजाम ने खलीफा अब्दुल मजीद को उनके निर्वासन के दौरान 300 पाउंड प्रति महीने पेंशन देने का फैसला किया था। यही नहीं 2 मई 1939 को, ख़लीफ़ा अब्दुल मजीद ने अपनी बेटी के ससुर यानि हैदराबाद के निज़ाम को एक पत्र लिखा था, जिसमें उनके दफन के बारे में उनकी इच्छा थी। खलीफा या तो तुर्की या हैदराबाद में दफन होना चाहता था।
बता दें कि वर्ष 1924 में तुर्की एक गणतंत्र बन गया था और खलीफा के शासन को समाप्त कर दिया गया था। इसके बाद खलीफा के परिवार को निर्वासन में भेजा दिया गया। खलीफा अब्दुल मजीद दक्षिणी फ्रांसीसी भूमध्यसागरीय बंदरगाह शहर नीस में बस गए थे। हैदराबाद के निज़ाम उस समय दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे और वो भी अन्य इस्लामिस्टों की तरह ही ओटोमन खलीफा का समर्थन करने और उन्हें बहाल करने के लिए बेताब थे।
सात साल बाद जब खलीफा ने अपनी बेटी Durru Shehvar के लिए एक शौहर की तलाश में थे तब खिलाफत आंदोलन के नेता शौकत अली ने सातवें निज़ाम के सबसे बड़े बेटे आज़म जाह से निकाह का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, यह विवाह आसान नहीं था क्योंकि Durru Shehvar निर्वासित खलीफा की बेटी थी। इसके अलावा मेहर यानि रख रखाव के खर्च पर भी असहमति थी लेकिन यह 40 हजार पाउंड पर समझौता हुआ। यही नहीं शौकत अली के हस्तक्षेप के बाद खलीफा ने उसी मेहर पर अपने भाई की बेटी राजकुमारी Niloufer के साथ निजाम के छोटे बेटे Moazzam Jah के लिए शादी की पेशकश की थी।
बाद में, जब अब्दुल मजीद की मृत्यु हो गई तब उनकी बेटी Durru Shehvar उन्हें मदीना में पवित्र मस्जिद से जुड़े कब्रिस्तान में दफनाना चाहती थी। तब उसकी चहेरी बहन Niloufer ने उनकी मदद की और उसने निजाम के एक पूर्व अधिकारी गुलाम मोहम्मद से संपर्क किया था, जो उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि खलीफा अब्दुल माजिद सऊदी अरब में दफन हो जाए।
अपने अंतिम समय तक, निज़ाम और उसके अधिकारियों और इस्लाम के अंतिम खलीफा ने घनिष्ठ संबंध बनाए रखा था। हागिया सोफिया का मस्जिद में बदलना वस्तुतः खलीफा युग का पुनरुत्थान ही कहा जाएगा, जिसके के साथ हैदराबाद भी ऐतिहासिक रूप से जुड़ा हुआ है। हागिया सोफिया जैसी ऐतिहासिक इमारत का चर्च से मस्जिद में बदलना एक कैथोलिक ईसाई बनाम इस्लामिक मुद्दा हो सकता है लेकिन स्पष्ट तौर पर इसका भारत से भी कनेक्शन है।
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