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चीन को उसकी औकात दिखाने से लेकर US और भारत से रिश्ते मजबूत करने तक, बहुत बदल गए हैं कनाडा के PM

इस कायाकल्प के पीछे का कारण भी दिलचस्प है

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
27 July 2020
in अमेरिकाज़
जस्टिन ट्रूडो
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वुहान वायरस में यदि कुछ अच्छा हुआ है तो वो निस्संदेह दो चीज़ें है – एक तो भारत द्वारा चीन पर चौतरफा वार करते हुए उसके 59 एप्स प्रतिबंधित करना, और दूसरा कैनेडियन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का संभावित कायाकल्प। अपने अधिकांश करियर में हर जगह दुरदुराए जाने वाले कैनेडियाई पीएम का पिछले कुछ दिनों से स्वभाव काफी बदला बदला सा है। वे न केवल अपने उदारवादी स्वभाव के ठीक विपरीत चीन के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया का साथ दे रहे हैं, अपितु भारत के हित में खलिस्तान के विरुद्ध मोर्चा संभालने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं।

जस्टिन ट्रूडो के स्वभाव और उनके विचारों में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जस्टिन एक शुद्ध दक्षिणपंथी नेता के रूप में जनता के समक्ष होंगे। यह सब दो कारणों से संभव हुआ है – एक तो चीन द्वारा उत्पन्न वुहान वायरस का दुनिया भर में फैलना और दूसरा, यूएन के अस्थायी सीट पर कनाडा की हार।

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जस्टिन ट्रूडो के स्वभाव में कैसा बदलाव आया है, ये आप हाल ही में खालिस्तान को कनाडा की सरकार द्वारा दी गई दुलत्ती से ही समझ सकते हैं। अभी हाल ही में कनाडा के प्रधानमंत्री ने खालिस्तान के लिए मांग कर रहे अमेरिका स्थित संगठन सिख्स फॉर जस्टिस नामक एनजीओ द्वारा खालिस्तान के लिए कराये जा रहे जनमत संग्रह से किसी भी प्रकार का नाता नहीं रखने की घोषणा की है।

WION से बातचीत के दौरान कनाडा के विदेश मंत्रालय ने कहा, “कनाडा की सरकार के लिए भारत और कनाडा के बीच के मैत्रीपूर्ण संबंध काफी महत्व रखता है। कनाडा भारत की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करता है, और इसके विरुद्ध लिए जाने वाले हर कदम का विरोध करेगा”।  पर बात यहीं पर नहीं रुकती, कनाडा ने स्पष्ट किया है कि खालिस्तानी अलगाववादियों के किसी भी अहम कदम, विशेषकर रेफेरेंडम 2020 को कनाडा में बिलकुल बढ़ावा नहीं दिया जाएगा।

जी हाँ, आपने ठीक ही पढ़ा है। जो कनाडा खालिस्तानियों का गुणगान करते और उन्हें बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ता था, वही कनाडा आज खलिस्तानियों के खिलाफ है। पर ठहरिए, यहाँ पर जस्टिन ट्रूडो का कायाकल्प खत्म नहीं होता, बल्कि प्रारम्भ होता है। इसके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण है, जहां से ये सिद्ध होता है कि किस प्रकार जस्टिन ट्रूडो के स्वभाव में बहुत बड़ा अंतर आया है।

कभी किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि जिस देश का प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जैसा हो, वो चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालता हुआ दिखाई देगा। पर वो कहते हैं न, कि कल किसने देखा है? वैसे ही इस वर्ष असंभव भी संभव हुआ, क्योंकि हाल में कनाडा ने न केवल चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाला है, अपितु चीनी टेलिकॉम नेटवर्क Huawei को भी लात मारकर कनाडा से भगाने की ठान ली है। कनाडा ने घोषणा की है कि उनके टेलिकॉम नेटवर्क BCE Inc और Telus Corp Huawei के बजाए अब अपने 5जी नेटवर्क के लिए एरिक्सन और नोकिया से उपकरण खरीदेंगे।

इसके अलावा कनाडा ने Huawei के CFO एवं उपाध्यक्ष मेंग वांझू को अमेरिका प्रत्यर्पित करने के प्रस्ताव को भी स्वीकार किया है, जो न केवल Huawei के संस्थापक की बेटी है, बल्कि उसपर ईरान के साथ समझौते करके अमेरिका के व्यापार समझौते का उल्लंघन करने का भी आरोप लगा है, जिसके कारण अमेरिका ने मेंग के हिरासत में लिए जाने पर कनाडा को प्रत्यर्पण का आवेदन पत्र भेजा था।

इसके अलावा चीन से कनाडा इसलिए भी क्रोधित है क्योंकि उसने कनाडा के दो राजनयिकों को झूठे आरोपों के अंतर्गत हिरासत में लिया था। इस पर आग बबूला होते हुए जस्टिन ट्रूडो ने कम्युनिस्ट चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए कहा, “यदि चीनी प्रशासन को ऐसा लगता है कि वह निर्दोष नागरिकों को हिरासत में लेकर कनाडा पर दबाव बना सकती है, तो वे बहुत बड़े भुलावे में जी रहे हैं”।

इसके अलावा जस्टिन ट्रूडो ने ये भी कहा, “चीन यदि ये सोचता है कि वे कनाडा के नागरिकों को ऐसे ही हिरासत में लेकर कुछ भी हासिल कर लेगा, तो वो न केवल गलत सोच रहा है, बल्कि यह किसी भी स्थिति में हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है”। इसका अर्थ स्पष्ट है – अब जस्टिन ट्रूडो भी चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुके हैं, और वे किसी भी स्थिति में चीन को कनाडा पर हावी होने देने का कोई अवसर नहीं देंगे। यदि यूएस ने एंजेला मर्केल की हठधर्मिता के चलते अपने साथी के रूप में ईयू को खोया, तो जस्टिन के रूप में उसे एक बार फिर अपना पुराना मित्र मिला है।

परंतु जस्टिन के नेतृत्व में कनाडा वहीं पर नहीं रुकता। असल में उसे पुनः भारत का मित्र बनना है, क्योंकि अभी हाल ही में उसे सुरक्षा परिषद में हर वर्ष मिलने वाली दो अस्थायी सीटों के चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। एशिया से जहां भारत को लगभग निर्विरोध ही चुना गया, तो वहीं कनाडा को मुंह को खानी पड़ी थी।

लेकिन इस पराजय के पश्चात मानो जस्टिन ट्रूडो को पूरी तरह से अकल आ चुकी है, और शायद वे ये समझ चुके हैं कि वामपंथी विचारधारा को अंधों की तरह अनुसरण करना बहुत हानिकारिक होता है।  यदि ट्रूडो वैसे ही हैं जैसे कि पिछले कुछ दिनों से वे सिद्ध करना चाहते हैं, तो इससे न केवल कनाडा की छवि में सुधार आएगा, अपितु भारत और कनाडा के रिश्तों के बीच की कड़वाहट भी कम होगी, जिससे अंत में जस्टिन ट्रूडो की छवि में भी ज़बरदस्त सुधार होगा, और वे वास्तव में एक कुशल नेता कहलने योग्य होंगे।

Tags: कनाडाजस्टिन ट्रूडो
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