पाकिस्तान और धार्मिक सहिष्णुता दो समानांतर रेखाएँ हैं जो अनंत काल तक नहीं मिल सकती हैं। पाकिस्तान के इतिहास और वर्तमान में घटनाओं की एक लंबी फेरहिस्त है जो यह साबित करते हैं कि पाकिस्तान पृथ्वी पर सबसे कट्टरपंथी देशों में से एक है। इसी कड़ी में एक और घटना जुड़ी है जिसमें पाकिस्तान के एक पूर्व मंत्री के ऊपर ही ईशनिंदा का आरोप लगा है। इस बार, पाकिस्तान की एक राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के एक नेता ख्वाजा आसिफ के खिलाफ पाकिस्तान के सत्तारूढ़ दल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के एक नेता ने ईश निंदा का मामला दर्ज करने की मांग की है।
दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार ख्वाजा आसिफ ने अपने नेशनल एसेंबली के अंदर भाषण में कहा कि कोई भी एक धर्म दूसरे से बड़ा नहीं है। उन्होंने कहा था कि इस्लाम और दुनिया के अन्य सभी धर्म समान हैं। जैसे ही उनका यह बयान आया, पाकिस्तान के अंदर खलबली मच गयी और वो विवादों के केंद्र में आ गए। इसके बाद PTI के एक नेता कमर रियाज ने ईशनिंदा का मामला दर्ज करवाया दिया। शिकायत में कमर रियाज ने कहा, “उनके शब्द पवित्र कुरान और सुन्नत की में कही गयी बातों के खिलाफ हैं, और यह ईशनिंदा के समान हैं। यह शरिया के अनुसार एक गंभीर अपराध है, जिसमें उन्होंने (आसिफ) मुसलमानों और काफिरों को एक बराबर घोषित कर दिया है।” PTI नेता ने अपनी शिकायत में कुरान के कुछ आयतों का भी उल्लेख किया। रियाज़ ने आवेदन देते हुए पुलिस से पीएमएल-एन के ख्वाजा आसिफ के खिलाफ इस्लाम और कुरान के खिलाफ निंदा करने के लिए मामला दर्ज करने का अनुरोध किया।
पाकिस्तान में ईशनिंदा का यह पहला मामला नहीं है। पाकिस्तान का कानून बनाने वाले और कट्टरपंथी अन्य धर्म के किसी भी आवाज को दबाने के लिए ईश निंदा कानून का लगातार इस्तेमाल होता आया है।
पिछले महीने जून में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के खैरपुर के शाह अब्दुल लतीफ विश्वविद्यालय में सिंधी साहित्य के पाकिस्तानी प्रोफेसर साजिद सोमरो को पुलिस ने ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस प्रोफेसर को पाकिस्तानी अधिकारियों के प्रति उनके असहमतिपूर्ण विचारों और वहाँ के सबसे ताकतवर मौलवियों की आलोचनाओं के लिए जाना जाता है।
वर्ष 2018 में दो ईसाई भाइयों को ईश निंदा कानून के बाद दोषी ठहराया गया था। उनके ऊपर “पवित्र पैगंबर के संबंध में अपमानजनक टिप्पणी के लिए” दोषी ठहराया गया था तथा पाकिस्तान के दंड संहिता के ईशनिंदा प्रावधानों के तहत आरोप लगाया गया था।
आसिया बीबी के मामले को तो पूरे विश्व ने देखा था कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ कैसे बर्ताव किया जाता है। आसिया बीबी पर 2009 में ईशनिंदा का आरोप लगा था और 2010 में निचली अदालत ने उन्हें दोषी क़रार देते हुए फांसी की सज़ा सुनायी थी जिसे 2014 में लाहौर उच्च न्यायालय ने बरक़रार रखा था।
बता दे कि वर्ष 1860 में ब्रिटिश सरकार ने धर्म से जुड़ी बातों या चीजों का अपमान करने वाले को सजा देने के लिए इस कानून को बनाया था लेकिन उसमें किसी खास धर्म की बात नहीं की गयी थी। आजादी के बाद जब पाकिस्तान अलग हुआ तो उसने उसने ईशनिंदा के कानून को पाकिस्तान दंड संहिता को अपना लिया। परंतु पाकिस्तान का इस्लामीकरण, राष्ट्रपति ज़िया उल हक शासन के दौरान शुरू हुआ था, जो पूरे पाकिस्तान में निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा, का “नियम” बनाने के उद्देश्य से शासन करते थे। उन्होंने पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-बी और 295-सी के तहत ईशनिंदा को लागू किया था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान की न्यायिक मशीनरी में में इस्लामवादियों को शामिल किया जा सके। पाकिस्तान के इस्लामीकरण को बढ़ावा देने पर आधारित कानून जैसे ईशनिंदा कानून और कई अन्य गलत कानून बनाए गए थे। यही कारण है कि अब पाकिस्तान में ईशनिंदा की घटनाएं किसी के लिए भी आश्चर्य की बात नहीं हैं।