भारत के बाद अब अमेरिका एक्शन में, हुवावे और ZTE को बताया राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा

पहला वार पीएम मोदी का, दूसरा ट्रम्प का, और जिनपिंग चित!

चीन, अमेरिका, यूरोप COMAC डोनाल्ड ट्रम्प

अभी हाल ही में अमेरिका के कम्युनिकेशन इनफ्रास्ट्रक्चर को चीनी इक्विपमेंट से मुक्त कराने हेतु अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशन कमिशन ने चीनी टेलीकॉम कंपनी Huawei और ZTE को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर दिया है। इसका अर्थ है कि अब एफसीसी से इन दोनों कंपनियों को किसी प्रकार की सहूलियत न  हीं मिलेगी।

एफसीसी के आधिकारिक बयान के अनुसार, “आज के कदम के अनुसार, एफसीसी के 8.3 बिलियन डॉलर के वार्षिक फंड का प्रयोग अब इन सप्लायर्स [Huawei और ZTE] से सामान खरीदने, सुधारने या फिर रखरखाव करने में नहीं होगा”।

बता दें कि ईरान को अपना इक्विपमेंट बेचने के कारण ओबामा प्रशासन ने ZTE पर 7 वर्ष का प्रतिबंध लगाया था। परंतु ट्रम्प प्रशासन ने इस प्रतिबंध को हटाने के एवज में बतौर 1.3 बिलियन डॉलर का जुर्माना ZTE से वसूला था। लेकिन अब एफसीसी के बयान से इतना तो साफ हो चुका है कि दोनों चीनी टेलीकॉम कंपनियों के लिए अमेरिका ने अब सभी दरवाजे बंद कर दिये हैं।

इस निर्णय के पीछे का प्रमुख कारण बताते हुए FCC के अध्यक्ष अजित पाई ने ट्विटर पर बताया, “हमने एक स्पष्ट संदेश भेजा है – अमेरिकी सरकार, विशेषकर एफसीसी ऐसे लोगों  को बढ़ावा नहीं देना चाहती, जिनके तार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी  और चीन के सैन्य प्रणाली से जुड़े हुए हों”।

बता दें कि Huawei चीन की पंद्रहवीं सबसे बड़ा कंपनी है, और इससे पहले की सभी 14 कंपनियां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के स्वामित्व के अंतर्गत आती है। लेकिन आज वुहान वायरस के कारण Huawei की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। अमेरिका ने स्पष्ट बता दिया है कि वह किसी भी हालत में Huawei को अमेरिका में पाँव नहीं जमाने देगा।

Huawei चीन के लिए वही है जो भारत के लिए टाटा है, यानि वैश्विक जगत में एक अहम ब्राण्ड। यह कंपनी एकमात्र चीनी कंपनी थी जिसने फोर्ब्स के सबसे कीमती ब्रांड की 2018 वाली सूची में अपनी जगह बनाई थी।

लेकिन अब यह टेलिकॉम कंपनी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। इससे पहले ट्रम्प प्रशासन ने कंपनी से अमेरिकी सेमीकंडक्टर हेतु एक्स्पोर्ट्स पर रोक लगाई थी। सेमीकंडक्टर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद में उपयोग में आने वाली सबसे अहम वस्तुओं में से एक होती है, और जिस तरह से अमेरिका ने अपने दरवाजे इस क्षेत्र में बंद किए हैं, उसपर  Huawei के वार्षिक कॉन्फ्रेंस के तत्कालीन चेयरमैन गुओ पिंग ने स्वयं स्वीकारा, “अब हमें इस क्षेत्र में बने रहने के लिए कोई दूसरा विकल्प तलाशना होगा”।

दरअसल, अमेरिका Huawei को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता है, और इस अभियान में वह काफी हद तक सफल भी रहा है, क्योंकि मलेशिया से लेकर सिंगापुर, कनाडा, नॉर्वे, यूके, नीदरलैंड्स ने Huawei को सिरे से नकार दिया है। यहाँ तक कि भारत ने भी अब स्पष्ट कहा है कि अपने 5जी तकनीक को विकसित करने के लिए वो किसी भी चीनी कंपनी की कोई सेवा नहीं लेगा। इसके कारण अब नोकिया और एरिक्सन जैसे टेलिकॉम प्रोवाइडर एक बार फिर से सुर्खियों में आ चुके हैं, और सिंगापुर ने उन्हें 5जी तकनीक विकसित करने का हुक्म भी दे दिया है।

अब विश्व का Huawei को संदेश स्पष्ट है – अपना बोरिया बिस्तर बांधकर कृपया निकल लें। चीन वुहान वायरस की आड़ में दूसरे देशों को दबाने के भरसक प्रयास कर रहा है, लेकिन उसकी हेकड़ी को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अमेरिका, भारत, औस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों ने कमर कस ली है, और Huawei जैसी कंपनियों को ब्लैक लिस्ट कराना इसी कड़ी में एक सार्थक प्रयास है।

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