तुर्की और चीन, कहने को ये दोनों देश लगभग 6 हज़ार किमी की दूरी पर स्थित हैं, लेकिन दोनों देशों में समानताएँ हद से अधिक है। जिस प्रकार चीन अपने पड़ोस में गुंडागर्दी की सारी हदें पार कर अंतर्राष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाने में विश्वास रखता है, उसी प्रकार पश्चिमी एशिया और अफ्रीका में तुर्की अपना प्रभाव जमाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहता है। ऐसे में जब पूरे विश्व का ध्यान चीन को दरकिनार करने पर केन्द्रित है, उस स्थिति में दुनिया और खासकर पश्चिमी देशों को तुर्की को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। Nato का सदस्य देश तुर्की भविष्य में इस पूरे क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
चीन और तुर्की, आज दोनों ही देशों का कट्टर नेताओं द्वारा नेतृत्व किया जा रहा है। चीन में जिनपिंग के समर्थक बेहद कट्टर राष्ट्रवादी हैं, तो वहीं Turkey में एर्दोगन के समर्थकों में राष्ट्रवाद कूट-कूट कर भरा है, जहां राष्ट्रवाद में पागल होकर दोनों ही देशों को ठीक और गलत का भेद मालूम नहीं चल पाता। इसी राष्ट्रवाद के कारण चीन दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभाव जामाने की कोशिश में लगा है, तो वहीं Turkey और आर्मेनिया और साइप्रस जैसे पड़ोसियों के बीच रिश्तों में लगातार तनाव देखने को मिलता है।
तुर्की पिछले कुछ समय में यूरोप के कुछ देशों और रूस के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। लीबिया में Turkey के आक्रमण के बाद उसे फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे यूरोपीय देश अब प्रतिबंध की धमकी दे रहे हैं। वहीं हाल ही में तुर्की ने अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच विवाद में टांग अड़ाकर रूस को हस्तक्षेप के लिए निमंत्रण दे दिया है। दरअसल, Turkey के विदेश मंत्री ने अज़रबैजान के समर्थन में रूस के साथी आर्मेनिया के खिलाफ धमकी जारी की है। इसके जवाब में रूस ने भी अपने 1 लाख 50 हज़ार सैनिकों के साथ विशाल सैन्य शक्ति प्रदर्शन करने का फैसला लिया है। माना जा रहा है कि अज़रबैजान और अर्मेनिया के विवाद में दोबारा तुर्की और रूस एक दूसरे के आमने-सामने आ सकते हैं। यह सब तुर्की के अति-राष्ट्रवाद के कारण ही हो रहा है।
चीन की तरह ही तुर्की भी विस्तारवादी नीति का पालन करने में गर्व महसूस करता है। तुर्की का ग्रीस और साइप्रस जैसे देशों के साथ बॉर्डर विवाद चल रहा है। ग्रीस और तुर्की का बॉर्डर evros नदी के प्रवाह से तय होता है। ऐसे में कोई निर्धारित बॉर्डर ना होने के कारण दोनों देशों के बीच विवाद चलता रहता है। इसी प्रकार विस्तारवादी Turkey ने साइप्रस के एक द्वीप पर कब्जा किया हुआ है। साइप्रस और तुर्की के बीच 1974 से ही विवाद चल रहा है। तुर्की ने 1974 में साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया जिसे स्वायत्त क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था। इस पर अधिकार के साथ ही Turkey ने इस क्षेत्र का नाम टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दन साइप्रस का नाम दिया है। इस क्षेत्र को लेकर साइप्रस और तुर्की के बीच हमेशा तनाव रहता है।
तुर्की का विस्तारवाद हमें सीरिया में भी देखने को मिल चुका है। पिछले वर्षों में तुर्की ने सीरिया के इद्लिब शहर पर कब्जा करने की इच्छा से सीरिया में आक्रमण करना शुरू कर दिया था, जिसके बाद रूस को हस्तक्षेप करना पड़ा था। रूस के हस्तक्षेप के बाद तुर्की को अपना विचार बदलना पड़ा था।
ओटोमन अंपायर के रोमैन्स में जी रहे एर्दोगन पहले ही हागिया सोफिया मुद्दे पर विश्व के निशाने पर आ चुके हैं। दरअसल, हाल ही में दुनियाभर में प्रसिद्ध इस्तांबुल की हागिया सोफिया संग्रहालय को अदालत ने फिर से मस्जिद में तब्दील करने का फैसला सुनाया था। तुर्की में छठी सदी में इसे गिरजाघर के रूप में बनाया गया था। कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन हागिया सोफिया को मस्जिद के रूप में खोलने की घोषणा कर चुके हैं जिसके कारण वे दुनियाभर के इसाइयों के निशाने पर आ चुके हैं।
एर्दोगन के लक्षणों को देखकर यह भी कहा जा सकता है कि वे भविष्य में यूरोपीय देशों के खिलाफ बड़े स्तर पर सैन्य कार्रवाई भी कर सकते हैं। ऐसे में विश्व और खासकर यूरोप और अमेरिका को Turkey की नकेल कसने के लिए बड़े कदम उठाने चाहिए। तुर्की को जल्द से जल्द Nato से बाहर किए जाने की आवश्यकता है। इसी के साथ चीन की तरह ही दुनियाभर के देशों को तुर्की के खिलाफ भी प्रतिबंध लगाने की शुरुआत करनी होगी। तुर्की हर पैमाने पर चीन के समान ही है, बस उसकी जेब चीन से छोटी है।