तुर्की- एक ऐसा शत्रु जो पाकिस्तान और चीन की तुलना में किसी भी तरह से कम नहीं है

तुर्की को हलके में लेने की गलती न करे भारत

तुर्की

तुर्की के तानाशाह Recep Tayyip Erdoğan के राज में तुर्की एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र से पुनः एक तानाशाही मुल्क में परिवर्तित हो चुका है, जिसका एक ही उद्देश्य है – नफरत फैलाते रहो और साम्राज्यवाद का पालन करो। परंतु हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट पर अगर गौर किया जाये, तो अब ये सामने आया है कि चीन और पाकिस्तान से जितना खतरा अभी भारत को है, उतना ही खतरा तुर्की जैसे देश से भी है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि तुर्की के तानाशाह एर्दोगन अपने आप को इस्लामिक जगत का नया खलीफा बनाना चाहते हैं, और इसके लिए वह आतंकियों को सहायता देने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते, परिणाम चाहे जो भी हो। इसीलिए एर्दोगन आजकल भारत में आतंकी गुटों को अप्रत्यक्ष रूप से सहायता देते फिर रहे हैं, जिसके बारे में हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में प्रकाश डाला है।

हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अफसर ने बताया, “पिछले कुछ समय से हमने पाया है कि तुर्की की सहायता से कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकवाद को बढ़ावा देने हेतु भारतीय मुसलमानों को भड़काने में लगे हुए हैं”।

इसी रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि कैसे तुर्की कश्मीर में अलगाववादियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से आर्थिक सहायता करती थी, जिसके सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहे हैं कश्मीर अलगाववादी सैयद अली शाह गीलानी। इससे एक बार फिर ये बात सिद्ध होती है कि आखिर इतने लड़कों और लड़कियों को आतंक की आग में झोंकने के बावजूद गीलानी, मिरवाइज़ फ़ारूक और अब्दुल्ला परिवार जैसे अलगाववादी खुद इतने ठाट से कैसे रहते हैं।

यूं तो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से इन अलगाववादियों की विलासिता को एक गहरा धक्का अवश्य पहुंचा है, लेकिन अभी खतरा पूरी तरह टला नहीं है। तुर्की की काली करतूतें जिस तरह अभी उजागर हो रही हैं, वो उसी का जीता जागता प्रमाण है। परंतु तुर्की कश्मीर तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि उसने अब केरल में भी अपनी पैठ जमाना शुरू कर दिया है।

इस्लामिक स्टेट का कुख्यात कासरगोड मॉडल तो आपको याद ही होगा, जहां से निकलकर केरल के नौजवान आईएस में भर्ती हो रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे तुर्की द्वारा इस्लामिक स्टेट के साथ-साथ उन लोगों को भी वित्तीय सहायता मिलती है, जो इन आतंकियों को भड़काने का काम करते हैं, जैसे ज़ाकिर नाइक। ये तुर्की और मलेशिया के पूर्व अध्यक्ष महातिर मुहम्मद के साँठ गांठ का ही परिणाम था कि ज़ाकिर नाइक जैसे लोग मलेशिया में बैठकर भारत वासियों के विरुद्ध विष उगल सकते हैं और भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकते हैं। इतना ही नहीं, तुर्की के वर्तमान प्रशासन को आतंकियों से इतना प्रेम है कि वह उनके परिवारों को भी हर प्रकार की सहायता देने को तैयार है। उदाहरण के लिए आतंकी अफजल गुरु के बेटे गालिब गुरु को तुर्की ने सिर्फ उसके पिता के आतंकी कनैक्शन के आधार पर मेडिकल स्कॉलर्शिप प्रदान की है।

तुर्की के वर्तमान प्रशासन का भारत को लेकर रुख शुरू से ही काफी स्पष्ट रहा है। पिछले वर्ष यूएन के जनरल असेंबली में एर्दोगन ने न केवल अनुच्छेद 370 के निरस्त किए जाने की निंदा की, अपितु पाकिस्तानी विचारधारा का समर्थन भी किया। तुर्की ने एर्दोगन के शासन में पाकिस्तान से कुछ ज़्यादा ही नजदीकियाँ बढ़ाई है, जिसके कारण अरब और खाड़ी देश काफी क्रोधित भी हैं। एर्दोगन अपने आप को इस्लामिक जगत के नए खलीफा के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, जो इस्लामिक जगत के वर्तमान नेता सऊदी अरब को फूटी आँख नहीं सुहाता। इसीलिए तुर्की ने अपने आप को अरब जगत में ही अलग-थलग करने का पूरा प्रबंध किया है। रही सही कसर तो तुर्की द्वारा हागिया सोफिया संग्रहालय को पुनः मस्जिद में बदलकर पूरी हो चुकी है।

शायद इसीलिए सऊदी अरब और उसके साथी देश जैसे यूएई अब तुर्की के विरुद्ध मोर्चा खोल चुके हैं, और इसीलिए एर्दोगन अब पाकिस्तान से नज़दीकियाँ बढ़ाने लगा है। ऐसे में भारतीय एजेंसियों को पूरी तरह सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि तुर्की और पाकिस्तान की यह दोस्ती बहुत खतरनाक है। यदि भारत सतर्क नहीं रहा, तो आने वाले समय में तुर्की भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से कस नहीं है बल्कि, ये देश इन दोनों ही देशों से अधिक खतरनाक शत्रु बनने की क्षमता रखता है।

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