US और भारत के बाद अब वियतनाम चीन का सबसे बड़ा दुश्मन बनकर उभर रहा, और ये चीन के लिए शुभ संकेत नहीं है

चीन के शत्रुओं की लिस्ट बढ़ती जा रही

पहले वियतनाम चीन का विरोधी था, अब वह चीन के लिए सबसे बड़ा खतरा है

चीन की औपनिवेशिक मानसिकता उसके लिए दिन प्रतिदिन नए नए दुश्मन बना रही है, और इन्हीं में नई एंट्री हुई वियतनाम की। यूं तो वियतनाम और चीन की दुश्मनी काफी पुरानी है, लेकिन अब वियतनाम चीन के लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं है।

दिन प्रतिदिन वियतनाम बीजिंग के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहा है। न केवल चीन से भाग रही विदेशी कंपनियों के लिए वियतनाम एक आकर्षक डेस्टिनेशन बन रहा है, अपितु दक्षिण चीन सागर पर चीन की हेकड़ी को कम करने के लिए ASEAN की मुहिम को भी अपना पूरा समर्थन दे रहा है।

पर चीन और वियतनाम में इतनी दुश्मनी क्यों है? इसके लिए हमें जाना होगा 70 के दशक में। तब चीन और सोवियत संघ के बीच तनातनी अपने चरम पर थी, और वियतनाम ने तब सोवियत के साथ मित्रता और सहयोग के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसके अलावा चीन इसलिए भी वियतनाम से खफा था, क्योंकि वह कंबोडिया के चीन समर्थित तानाशाही शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रयासरत था।

इसलिए वियतनाम को नियंत्रण में लाने हेतु चीन ने वियतनाम पर 1979 में धावा बोल दिया। चीन के हमले के कारण कई वियतनामी नागरिकों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा था। पर शायद चीन यह भूल गया था की ये वही वियतनाम था, जिसके सामने 1975 में अमेरिका को भी हार माननी पड़ी थी, तो फिर चीन की क्या हस्ती? भीषण युद्ध के पश्चात चीन को घुटने टेकने पड़े थे, और करीब 30000 पीएलए सैनिक इस युद्ध में मारे गए, जबकि लगभग 45000 सैनिक घायल हुए थे। तब से आज तक चीन ने छिटपुट गुंडागर्दी को छोड़के कोई भी बड़ा युद्ध नहीं लड़ा है।

तो अब वियतनाम चीन के लिए इतना बड़ा खतरा क्यों है? दरअसल चीन पर वियतनाम ने आर्थिक और सैन्य, दोनों ही मोर्चों पर करारा प्रहार किया है। उदाहरण के लिए अप्रैल 2018 से अगस्त 2019 के बीच 56 विदेशी कंपनियों ने बीजिंग और वाशिंगटन में ट्रेड वॉर के चलते वियतनाम में अपना ट्रांसफर सुनिश्चित कराया। केवल तीन कंपनियाँ भारत आई तो दो इंडोनीशिया गई।

जब से चीन में उत्पन्न वुहान वायरस ने दुनिया भर में तांडव मचाया है, तब से कई विदेशी कंपनियाँ वियतनाम में स्थानांतरित होना चाहती है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि वियतनाम चीन से अधिक दूर भी नहीं है, और इसीलिए वह कई विदेशी कंपनियों की पसंदीदा डेस्टिनेशन बन रहा है। इससे न केवल कंपनियों पर लॉजिस्टिक शिफ्ट करने का बोझा कम होता है, अपितु वियतनाम की अर्थव्यवस्था को भी बहुत फ़ायदा पहुंचता। इसके अलावा वियतनाम ने कई अहम आर्थिक सुधार भी किए हैं, जिससे वह विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने में भारत और जापान जैसे देशों को भी चुनौती दे रहा है, चाहे वह लाल फीताशाही पर लगाम लगानी हो, इनफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश करना, या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य पर भरपूर ध्यान देना ही क्यों न हो।

यही नहीं, वियतनाम ने चीन के धोखाधड़ी से परिपूर्ण स्वभाव का मुंहतोड़ जवाब देना भी सीखा है, विशेषकर दक्षिण चीन सागर में। ASEAN इस क्षेत्र को चीन के प्रभाव से मुक्त रखना चाहता है, और वियतनाम इसमें ASEAN को अपना भरपूर सहयोग प्रदान कर रहा है। जून में ASEAN ने चीन की दक्षिण चीन सागर में गुंडागर्दी पर सवाल भी उठाए थे, जो ASEAN के मूल स्वभाव के बिलकुल विपरीत था।

आज अगर ASEAN आक्रामक है, तो उसके पीछे का मूल कारण है ASEAN का वर्तमान अध्यक्ष – वियतनाम। जब चीन ने हाल ही में 12वीं parallel  में मछुआरों पर रोक लगाई, तो वियतनाम ने इस तानाशाही ऑर्डर को सख्त रूख अपनाते हुए कहा, दक्षिण चीन सागर में कृपया चीन स्थिति को और जटिल न बनाएँ”।

बीजिंग को लगा कि वह दक्षिण चीन सागर में अपनी हेकड़ी से सबको अपना गुलाम बना लेगा। परंतु बीजिंग के पुराने शत्रु वियतनाम ने उसी की भाषा में उसे जवाब देते हुए बताया है कि अब उसकी दादागिरी नहीं चलेगी। पहले वियतनाम केवल चीन का एक और विरोधी था, लेकिन धीरे धीरे अब वो चीन के गले की फांस बनता जा रहा है।

Exit mobile version