अमेरिका-चीन के बीच जारी घमासान में चीन को अब तक बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी है। धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था और दुनियाभर से चीनी कंपनियों को धक्के मारकर बाहर निकाला जाना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है। अमेरिका और भारत जैसे देश पहले ही चीन के टेक बाज़ार को बहुत बड़ा झटका दे चुके हैं। टिकटॉक और हुवावे इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। हालांकि, बात सिर्फ यहीं नहीं रुकती। अब भारत, अमेरिका और अन्य मित्र देश BRI को निशाना बनाना शुरू कर चुके हैं। BRI चीन का वही महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसके माध्यम से वह इनफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के बहाने छोटे देशों को बड़े-बड़े लोन देता है, और फिर उन्हें अपने कर्ज़ जाल में फंसाता है। अब जिस प्रकार चीन विरोधी देशों ने इसके खिलाफ कदम उठाने शुरू किए हैं, वह दिखाता है कि BRI भी अब बस कुछ ही दिनों का मेहमान रह गया है।
हाल ही में अमेरिका ने BRI के खिलाफ बहुत बड़ा कदम उठाया। अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर सैन्यकरण के काम में शामिल कुछ चीनी कंपनियों और चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया, लेकिन यहाँ सबसे ज़्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि इन कंपनियों में चीन की मशहूर China Communications Construction Company Ltd यानि CCCC भी शामिल थी। अमेरिका ने इस कंपनी की 24 शाखाओं को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया है। अब यह फैसला BRI पर कैसे प्रभाव डालेगा, इसे समझने के लिए आपको इस कंपनी के बारे में और अधिक जानने की ज़रूरत है।
CCCC चीन की कोई आम कंपनी नहीं है, बल्कि वह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक मानी जाती है। वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह कंपनी चीन से बाहर 100 से अधिक देशों में काम करती है और इस कंपनी के सभी प्रोजेक्ट्स का कुल बजट 100 बिलियन डॉलर से भी अधिक है। यह कंपनी चीन के BRI प्रोजेक्ट को दुनियाभर में आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। इस कंपनी की website के मुताबिक यह कंपनी अफ्रीका, एशिया, पश्चिमी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में पिछले 20 सालों से प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। हालांकि, बड़ी होन के साथ-साथ यह चीन की सबसे ज़्यादा विवादित कंपनियों में से भी एक है। इस कंपनी पर अलग-अलग देशों में भ्रष्टाचार, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप लगाये जा चुके हैं।
अब यह कंपनी अमेरिका के निशाने पर आ चुकी है, जो दिखाता है कि इस कंपनी के साथ-साथ BRI पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कंपनी पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि “यह कंपनी दुनियाभर में भ्रष्टाचार करने, अधिकारों का उल्लंघन करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की दोषी है”। CCCC पर प्रतिबंध लगाने के बाद कोई भी अमेरिकी कंपनी चीन की कंपनी से व्यापार नहीं कर पाएगी। साथ ही अमेरिका के साथी देशों के लिए भी इस कंपनी को प्रोजेक्ट देना मुश्किल हो जाएगा। अगर अमेरिका अपने प्रतिबंधों को और मजबूत करता है तो यह भविष्य में चीन के लिए BRI की कमर भी तो सकता है।
इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया भी आजकल BRI के खिलाफ बेहद सख्त रुख अपनाए हुए है। हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ये घोषणा की है कि वह एक विदेश नीति विधेयक को जल्द ही पारित करवाएगा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया की सरकार को ऑस्ट्रेलिया के किसी भी इकाई के साथ किसी विदेशी सरकार द्वारा की गई संधि का पुनर्निरीक्षण करने, उसे स्थगित करने या रद्द करने की पूर्ण स्वतन्त्रता मिलेगी।
BREAKING – the Australian government announces it is legislating new powers to review and cancel agreements that state and territory governments, local councils and public universities make with foreign governments. Likely to spell the end of Victoria's BRI MoU with China. pic.twitter.com/YYqD9Q7QCt
— Stephen Dziedzic (@stephendziedzic) August 26, 2020
अब तक ऑस्ट्रेलिया की क्षेत्रीय इकाईयों को किसी भी प्रकार के विदेशी समझौते का हिस्सा बनने की स्वतन्त्रता थी, जिसका दुरुपयोग विशेष रूप से चीन ने किया है। विक्टोरिया प्रांत को चीन के कुकर्मों से सबसे अधिक नुकसान हुआ है और जब चीन आक्रामक होने लगा, तभी से ऑस्ट्रेलिया में मांग उठने लगी कि विक्टोरिया प्रांत में चल रहे चीनी प्रोजेक्ट्स पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे। हालांकि, क्षेत्रीय सरकारों के पास स्वतन्त्रता होने के नाते ऑस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार चाहकर भी चीन के इस प्रोजेक्ट को रद्द नहीं कर सकती थी। हालांकि, अब नए कानून के बाद मॉरिसन सरकार के लिए विक्टोरिया राज्य में चल रहे BRI प्रोजेक्ट्स पर लगाम लगाना बेहद आसान हो जाएगा। परंतु विक्टोरिया का प्रोजेक्ट ही इकलौता प्रोजेक्ट नहीं है, जिससे मॉरिसन पीछा छुड़ाना चाहते हैं।
उत्तरी प्रांत में स्थित डार्विन पोर्ट भी एक ऐसी जगह है, जहां चीन ने भर भरके निवेश किया है। 2015 में इस पोर्ट को तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई प्रशासन ने 99 वर्ष के लिए एक चीनी कंपनी को लीज़ पर दे दिया था। रणनीतिक रूप से ये एक बहुत बड़ी भूल थी, जिसका फ़ायदा उठाते हुए चीन ने इसे अपने विवादित BRI प्रोजेक्ट का हिस्सा जताना शुरू कर दिया। डार्विन पोर्ट रणनीतिक रूप से हिन्द प्रशांत क्षेत्र के उस छोर पर स्थित है, जहां से अमेरिकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है, और अब ऑस्ट्रेलिया चीन को ये सुविधा नहीं उठाने देना चाहता है। ऐसे में मॉरिसन सरकार इस प्रोजेक्ट को भी चीन से छीन सकती है।
इधर भारत तो शुरू से ही BRI के खिलाफ रहा है। BRI के अंतर्गत आने वाला CPEC पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जिसका शुरू से ही भारत विरोध करता आया है। अब BRI की बर्बादी में भारत को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का भी भरपूर साथ मिलने लगा है।
भारत पहले ही अमेरिका के Blue Dot नेटवर्क (BDN) के तहत दुनियाभर में इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के प्लान पर काम करने को लेकर इच्छा जता चुका है। बता दें कि BDN की औपचारिक घोषणा 4 नवंबर, 2019 को थाईलैंड के बैंकॉक में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम (Indo-Pacific Business Forum) में की गई थी। इसमें अमेरिका के साथ जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश शामिल हैं। यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ-साथ यह विश्व स्तर पर सड़क, बंदरगाह एवं पुलों के लिये मान्यता प्राप्त मूल्यांकन और प्रमाणन प्रणाली के रूप में काम करेगा। यह एक तरह की प्रोजेक्ट रेटिंग एजेंसी होगी। इन देशों के एक्सपर्ट किसी भी संभावित प्रोजेक्ट को वैश्विक मापदंडों पर जांच कर उसे रेटिंग देंगे जिससे उस प्रोजेक्ट को वित्तिय सहायता मिलने में आसानी होगी। ऐसे में ये देश BDN के जरिये चीन के BRI को रोकने का काम करेंगे। जिस प्रकार अमेरिका और उसके साथी देश चीन के BRI के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं, उससे स्पष्ट है कि BRI का अब कोई भविष्य नहीं रह गया है।