चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोरोना काल के शुरुआत से ही आक्रामक कूटनीति यानि wolf warrior diplomacy का रास्ता अपनाया हुआ है। चीन को लगा था कि उसकी धमकियों और गीदड़ भभकियों के आगे दुनिया घुटने टेक देगी, लेकिन आज आलम यह है कि दुनियाभर में चीनी सरकार और सेना को मुंह की खानी पड़ रही है। भारत-अमेरिका जहां चीन के टेक क्षेत्र को बर्बाद करने की योजना पर लगातार काम कर रहे हैं, तो वहीं दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के देश भी चीन को आड़े हाथों ले रहे हैं। यही कारण है कि अब चीन की ताकतवर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी(CCP) के रिश्ते में खटाई देखने को मिल रही है। दरअसल, हाल ही में PLA के दो वरिष्ठ अधिकारीयों ने CCP की विदेश नीति की जमकर आलोचना की है और चीन की आक्रामक कूटनीति को आत्मघाती बताया है। इसके बाद यह अनुमान लगाया जा रहा है कि PLA और CCP के बीच सब कुछ सही नहीं है।
Wion न्यूज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में PLA के दो experts, रिटायर्ड जनरल Qiao Liang और जनरल Dai Xu ने शी जिनपिंग के नेतृत्व पर कई सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग की विदेश नीति हमारे दोस्तों को ही हमारे खिलाफ कर रही है। जनरल Qiao Liang ने कहा, “चीन का मकसद ताइवान को खुद में मिलाना नहीं है, बल्कि सभी 1.4 अरब चीनी नागरिकों को खुश रखना है। लेकिन क्या आज ताइवान को चीन में मिलाकर ऐसा किया जा सकता है? बिलकुल नहीं! अगर चीन को ताइवान पर कब्जा करना है, तो चीन को सारी सेना को ताइवान पर चढ़ाई करनी होगी। हमें इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए”। इसी प्रकार जनरल Dai Xu ने कहा, “अमेरिका पर आपके द्वारा लगाए गए 30 अरब डॉलर के प्रतिबंध से आपको खुद 60 से 90 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचेगा। अमेरिका हमसे बहुत ताकतवर है। हमें गुस्से से नहीं, समझदारी से लड़ना चाहिए।”
दरअसल, सच तो यह है कि शी जिनपिंग की विदेश नीति से अगर किसी को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है, तो वह PLA ही है। जिनपिंग की आक्रामक विदेश नीति के कारण हाल ही में रूस ने PLA को एस400 की सप्लाई देने में देरी करने का फैसला किया है, जिस कारण PLA को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। इसके अलावा भारत में सरकार PLA से जुड़ी 6 बड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है, जिनमें Alibaba और Huawei जैसी दिग्गज कंपनियाँ शामिल हैं। इतना ही नहीं, CCP की नीतियों के कारण ही लद्दाख में PLA को अपने सैनिक गँवाने पड़े, जिन्हें राजकीय सम्मान देने से भी मना कर दिया गया। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अब अमेरिका भी PLA से जुड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है। 25 जून, 2020 को The Print में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक Pentagon-20 ऐसी कंपनियों की पहचान कर चुका है जिनके PLA के साथ संबंध हैं, और उनपर कभी भी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। यानि शी जिनपिंग की नीतियों के कारण PLA को आर्थिक नुकसान हो भी रहा है रहा है और एक बड़ा नुकसान होने भी जा रहा है, वो भी अमेरिका और भारत जैसे बड़े बाज़ारों में
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब CCP और PLA में इस तरह के फूट की खबरें सामने आई हों। जून महीने में CCP के विद्रोही नेता और कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व नेता के पुत्र जियानली यांग ने वाशिंगटन पोस्ट के लिए लिखे एक लेख में एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा था कि चीन द्वारा गलवान घाटी की सच्चाई न बताना वर्तमान प्रशासन के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। जियानली यांग ने लिखा था- “सेवानिर्वृत्त और घायल पीएलए सैनिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध विद्रोह पर उतर सकते हैं। सीसीपी नेतृत्व को इन पूर्व सैनिकों की क्षमता को नज़रअंदाज़ करने की भूल बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि स्थिति नियंत्रण में नहीं रही,तो ये पूर्व सैनिक मिलकर सीसीपी के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध छेड़ने में भी सक्षम हैं।”
अब PLA के दो बड़े अधिकारियों का सामने आकर CCP के विरोध में बयान देना इस दावे को और मजबूत करता है चीन की सीसीपी और पीएलए के बीच द्वंद्व तो चल रहा है। इन सब तथ्यों को देखकर यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अभी सीसीपी के लिए सबसे बड़ा खतरा अमेरिका नहीं बल्कि उसके देश की PLA है, जो किसी भी वक्त CCP के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है।