एक सही कूटनीतिज्ञ केवल वही नहीं होता, जो मित्रों के बीच छुपे आस्तीन के साँप को ढूंढ निकाले, अपितु वो भी होता है, जो रूठे देशों को मनाकर उन्हें गलत दिशा में जाने से भी रोके। ऐसे ही हैं, वर्तमान विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला, जिन्होंने अब भारत के मित्र देशों को चीन के जाल में फँसने से बचाने का बीड़ा अपने ऊपर ले लिया है।
हाल ही में हर्षवर्धन शृंगला ने बांग्लादेश का दौरा किया, जो उनके शब्दों में काफी सफल दौरा था। पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी बहुत छोटी, पर सफल मुलाक़ात हुई है।’’ उन्होंने बांग्लादेश से वादा किया कि भारत अपने पड़ोसियों के लिए Priority basis पर वुहान वायरस से लड़ने हेतु वैक्सीन उपलब्ध कराएगा। उनके बयान के अनुसार, “जब भी हमारे देश में COVID वैक्सीन को विकसित किया जाएगा, तो सर्वप्रथम इसे हमारे मित्रों, साझेदारों और सच्चे पड़ोसियों को बिना शर्त दिया जाएगा।’’
भारत और बांग्लादेश में वैसे तो काफी गहरे संबंध हैं, परंतु तीस्ता नदी का जल साझा करने की एक ठोस नीति न बन पाने के कारण दोनों देशों के सम्बन्धों में थोड़ी कड़वाहट आई है। दुख की बात तो यह है कि यह कड़वाहट नई दिल्ली की वजह से नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के घमंडी स्वभाव के कारण आई है।
अब इसी तनातनी का फायदा उठाते हुए चीन ने तीस्ता नदी के सहारे बांग्लादेश में अपनी पैठ जमानी शुरू की है। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन करीब 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश कर रहा है ताकि सूखे के वक्त बांग्लादेश में जल आपूर्ति में कोई बाधा न आए। बेनार न्यूज़ से बातचीत के दौरान जल विकास बोर्ड के एडिशनल चीफ इंजीनियर ज्योति प्रसाद घोष ने बताया, “तीस्ता नदी के लिए एक विशाल प्रोजेक्ट की नींव रखी जा रही है, जिसे चीन फंड करेगा। हम आशा करते हैं कि यह प्रोजेक्ट दिसम्बर से प्रारम्भ कर सके।’’
अब भारत ये कतई नहीं चाहेगा कि चीन बांग्लादेश को वैसे ही अपने पाले में ले, जैसे उसने नेपाल को लिया हुआ है। ऐसे में हर्षवर्धन शृंगला को स्थिति संभालने के लिए भेजा गया। हर्षवर्धन शृंगला का बांग्लादेश में काफी गहरा कूटनीतिक प्रभाव है। 2016 से 2019 तक वे बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त भी रहे हैं। इसके अलावा उनके संबंध बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ भी काफी मजबूत हैं।
परंतु हर्षवर्धन शृंगला केवल बांग्लादेश तक ही सीमित नहीं हैं। अब वे एक और मित्र की सहायता के लिए जल्द ही निकलेंगे, जिसका नाम है म्यांमार। वहाँ की सेना और वहाँ की जनता चीन की हेकड़ी से काफी तंग आ चुकी है और वह चाहती है कि भारत उनकी तत्काल प्रभाव से सहायता करे।
म्यांमार ने चीनी प्रभाव को रोकने के लिए कई अहम निर्णय लिए हैं, जिनमें प्रमुख म्यितसोन बांध परियोजना में चीन की सक्रियता पर रोक लगाना, एवं Letpadaung Copper Mine और Kyaukpyu पोर्ट में चीन के प्रभाव को कम करना शामिल है।
WION के एक रिपोर्ट के अनुसार, “म्यांमार चीन के इरादों को लेकर सशक्त है, और वह नहीं चाहता कि चीन के कर्ज़ के मायाजाल में फंस जाये। म्यितसोन प्रोजेक्ट को लेकर म्यांमार पहले ही अपना सबक सीख चुका है।’’
म्यांमार अपनी सोच में कहीं से भी गलत नहीं है, क्योंकि चीन दूसरे देशों की अखंडता और संप्रभुता का कभी सम्मान नहीं करता। चीन तो म्यांमार में आतंकी संगठनों को न सिर्फ बढ़ावा देता है, अपितु भारत के साथ जारी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में बाधा डालने के लिए दिन-रात एक किए पड़ा है। लेकिन म्यांमार ने भी स्पष्ट किया है – वह चीन के बीआरआई का हिस्सा कतई नहीं बनेगा, और भारत के साथ अपने रिश्तों को और सुदृढ़ बनाएगा।
म्यांमार ने इसीलिए भारत के साथ रणनीतिक रूप से अहम कालादान प्रोजेक्ट पर आगे बढ्ने को अपनी स्वीकृति दी है, जिससे भारत का बंगाल की खाड़ी में प्रभाव और अधिक बढ़ेगा। ऐसे में हर्षवर्धन शृंगला का म्यांमार दौरा इस बात को सुनिश्चित करेगा कि भारत और उनके पड़ोसियों के बीच के संबंध मजबूत हों और चीन का प्रभाव कम से कम हो। अपने कूटनीतिक कौशल के दम पर हर्षवर्धन शृंगला भारत के लिए एक संकटमोचक के तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं।