कई लोगों को ऐसा लगा था कि गलवान घाटी की हिंसक झड़प, भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में बढ़ते तनाव का नतीजा था। लेकिन अब, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यह बात सामने आई है कि, गलवान घाटी का हमला यूं ही नहीं नहीं हुआ था बल्कि ये डोकलाम में हुई चीनी हार का बदला लेने की कोशिश थी। इस पूरी योजना के लिए 3 वर्षों तक प्लैनिंग हुई थी। हालाँकि, ये और बात है कि, इतनी तैयारी करने के बाद भी शी जिंगपिंग के चेलों को मुंह की खानी पड़ी थी।
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार ये दावा किया गया है कि, बीजिंग ने इस हमले की योजना तभी से बनाई होगी जब भारत ने डोकलाम के मुद्दे पर चीनियों की हालत पस्त कर दी थी। चीन के लिए यह कूटनीतिक पराजय, एक सार्वजनिक अपमान जैसी थी और वह इसके लिए बदला लेना चाहता था। अब यूरेशियन टाइम्स का यह दावा कुछ हद तक सही भी हो सकता है और इसके पीछे दो कारण हैं।
एक तो चीनी प्रशासन ने तभी अपने सैनिक पूर्वी लद्दाख में लगा दिए थे, जब भारत सहित पूरी दुनिया चीन में उत्पन्न वुहान वायरस से त्रस्त थी। चीन को लगा कि, ऐसे विकट समय में भारतीय सेना भला क्या ही तैयार होगी। इसके अलावा, यह रिपोर्ट भी सामने आई कि, चीन गलवान घाटी में कुछ बड़ा करने की योजना कर रहा था, जिसकी अमेरिकी और भारतीय इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स ने पुष्टि भी की है।
यही नहीं, इंडिया टुडे ने यह भी एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि, पीएलए ने मई के दूसरे भाग में एक सैन्य टुकड़ी को विशेष रूप से गलवान घाटी भेजा गया था। यह सैन्य टुकड़ी इससे पहले तिब्बत में हो रहे एक सैन्य अभ्यास में तैनात थी। अब इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि, चीन गलवान घाटी में भारत पर घात लगाकर कर हमला करने की बहुत पहले से प्लानिंग कर रहा था। गलवान घाटी का हमला, मौके पर हुआ हमला नहीं था, बल्कि चीन द्वारा भारत को दबाने के लिए एक सुनियोजित योजना थी।
दरअसल, डोकलाम में मुंह की खाने के बाद चीन ने ये कदम उठाने का फैसला किया। साल 2017 में डोकलाम मुद्दे पर 73 दिनों तक चली तनातनी में भारत ने चीन को न सिर्फ अपनी मनमानी करने से रोका, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन के घमंड को चकनाचूर कर दिया। चीन के लाख प्रयासों और धमकियों के बाद भी भारत अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ, जिसके कारण चीन भारत से बदला लेने की फिराक में दिन-रात एक किए हुए था।
ऐसे में कोई हैरानी की बात नहीं होगी यदि यह सिद्ध हो जाए कि गलवान घाटी का हमला वास्तव में डोकलाम के अपमान का बदला लेने के लिए किया गया था। हालांकि, चीन ने अपमान का बदला लेने के चक्कर में दुगना अपमान सर मोल लिया। डोकलाम में कम से कम उसे अपने सैनिक नहीं खोये थे, लेकिन लद्दाख में तो उनके सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने ऐसा मुंह तोड़ जवाब दिया कि, चीन न सिर्फ अपने जवानों की मौत को सार्वजनिक करने से मना कर रहा है, बल्कि ये भी सुनिश्चित कर रहा है कि उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ न हो। चीनी प्रशासन और चीनी सेना को भारत की कार्रवाई ने इतना असमंजस में डाल दिया है कि अब वे यह तक बताने में सक्षम नहीं हैं कि गलवान घाटी में हुए खून-खराबे से उन्हें प्राप्त क्या हुआ।
चीन ने डोकलाम में हुए अपमान का बदला लेने के लिए तीन वर्षों तक तैयारी की, लेकिन गलवान घाटी में भी उसे मुंह की खानी पड़ी। डोकलाम से यह धारणा स्थापित हुई कि, चीन अब भारत पर अपनी हेकड़ी नहीं जता सकता, लेकिन अब गलवान घाटी के हमले से यह सिद्ध होता है कि पीएलए चाहे जितनी भी तैयारी क्यों ना कर कर ले, वह भारतीय सेना को किसी भी स्थिति में पराजित नहीं कर सकता।