ईरान विश्व के उन चुनिन्दा देशों में से एक है जो समय-समय पर विश्व में हलचल बनाए रखता है। कभी अपनी धमकियों से तो कभी अपनी अमेरिकी विरोधी मानसिकता के प्रदर्शन से। कहने को यह देश गणतन्त्र है, परंतु यहाँ सत्ता तो सबसे बड़े धार्मिक नेता के हाथों में ही होती है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से ईरान की राजनीति में इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के पूर्व अधिकारियों की संख्या बढ़ी है, उसे देखते हुए अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस इस्लामिक देश में भी जल्द ही तख्तापलट देखने को मिल सकता है।
ईरान की चुनी गयी नई संसद इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती है। ईरान के संसद के स्पीकर Mohammad Bagher Ghalibaf इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के पूर्व ब्रिगेडियर जनरल हैं। अगर रिकॉर्ड देखा जाए तो एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान संसद के पीठासीन बोर्ड के दो-तिहाई सदस्य या तो रेवोल्यूशनरी गार्ड्सके पूर्व सदस्य हैं या अभी भी IRGC और उसके सहायक संगठनों से जुड़े हुए हैं।
ईरान और अमेरिका के कई विशेषज्ञों ने कई वर्ष पूर्व ही यह अनुमान लगाया था कि IRGC ईरान की सरकार पर कब्जा जमा लेगा। अब यह दिखाई भी देने लगा है, अगर कुछ बाकी है तो बस किसी IRGC से संबन्धित उम्मीदवार का राष्ट्रपति के लिए चुना जाना। वर्ष 2021 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के दौरान यह उम्मीद सच में भी बदल सकती है।
इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के सदस्य ईरान की संसद पर इस प्रकार से पकड़ बना चुके हैं कि इस बार की 11 वीं Islamic Consultative Assembly में कम से कम 24 कमांडर IRGC के वरिष्ठ अधिकारी, जिनमें से अधिकतर ब्रिगेडियर जनरल और कर्नल रैंक के हैं, संसद में मौजूद हैं।
बता दें कि इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प का गठन वर्ष 1979 के इस्लामी क्रांति के बाद किया गया था। सामान्यतः ईरान की रेवोल्यूशनरी गार्ड्स देश में इस्लामी गणतंत्र प्रणाली की रक्षा करता है तो वहीं पारंपरिक सैन्य इकाइयां ईरान की सीमाओं की रक्षा करती हैं। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) मूल रूप से इस्लामी शासन द्वारा उनके विचारों को जीवित रखने और लोगों से पालन करवाने वाली एक हथियार बंद मिलिशिया है। एक तरह से देखा जाए तो ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स चीन के PLA और पाकिस्तान की आर्मी का समन्वय कहा जा सकता है।
परंतु अब जिस दौर से ईरान गुजर रहा है और वहाँ के नेताओं के कारण अंतराष्ट्रीय स्तर पर ईरान वैश्विक स्तर पर हंसी का पात्र बना हुआ है,उसकी वजह से ईरान के सरकारी स्तर पर बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है। वैश्विक प्रतिबंधों ने देश की अर्थव्यवस्था को निचोड़ कर रख दिया है। विश्व की बढ़ती आर्थिक ताकतों को देख कर ईरान की जनता में पैसों के लिए जुनून तेजी से बढ़ा है। इरानियों को ऐसा लगता है कि ईरान के नेताओं की वजह से आज उनके देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा नहीं रह गयी है। इन वजहों से ईरान में राष्ट्रीयता भी जन्म ले चुकी है और आने वाले दिनों में इस राष्ट्रियता का एक उफान देखने को मिल सकता है।
राष्ट्रपति हसन रूहानी अपने किसी भी घरेलू या विदेश नीति के वादों को पूरा करने में असमर्थ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कोरोना का मामला लिया जाए तो उनके द्वारा किया गया प्रबंधन निम्न स्तर का था। उन्होंने कोरोना को महामारी समझने में भी देर कर दी थी और तब तक वह विशाल रूप धारण कर चुकी थी। उनके विरोधाभासी भाषणों से वहाँ की जनता भ्रमित हुई है। यही नहीं अब तो सुप्रीम लीडर Ayatollah Ruhollah Khomeini की भी आलोचना होने लगी है।
अगर सरकार की तुलना इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स से करे तो सरकार के मुक़ाबले IRGC अधिक नियंत्रण में दिखाई दे रहा है।
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से,IRGC दुनिया के अधिकांश आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। अमेरिका ने इस संगठन को 2019 में राजकीय आतंकवादी संगठन घोषित किया था, जबकि बहरीन और सऊदी अरब की सरकारें इसे पहले ही आतंकी संगठन घोषित कर चुकी हैं। परंतु वर्तमान समय में IRGC खुद को ईरान का एक मात्र रक्षक के रूप में प्रस्तुत करता है जिसने इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन या ISIS को हराया, और विदेशियों और उनके “एजेंटों” को देश में घुस कर तबाही मचाने से रोका।
सिर्फ रक्षक ही नहीं बल्कि IRGC अपनी इस तकनीकी विशेषज्ञता में सरकार से भी आगे होने का दावा करता है। उदाहरण के लिए रूहानी सरकार ने एक छोटे पृथ्वी-इमेजिंग उपग्रह को लॉन्च करने के लिए चार बार कोशिश की और विफल रही, जबकि IRGC ने अपने पहले प्रयास में एक सैन्य उपग्रह को कक्षा में भेजा।
यही नहीं कोरोना के समय भी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स 3.5 मिलियन ईरानी परिवारों को सहायता और खाद्य पैकेज वितरित करने का दावा करते हैं।
रूहानी ने वर्ष 2013 और 2017 में ईरानी लोगों को आशा बहाल करने के वादे पर चुनाव जीता था, लेकिन इस बार जनता उनकी नीतियों से खफा है। उनके खिलाफ वर्ष 2018 और 2019 में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन भी हुए जिसे स्वयं IRGC ने कुचल दिया था। परंतु रूहानी सरकार अब उदारवादी, रूढ़िवादियों, औसत दर्जे के नौकरशाहों, और टेक्नोक्रेट का एक गठजोड़ बन कर रह गया है जिसे सिर्फ अपना फायदा देखना है। ऐसे में अगर IRGC सरकार का तख़्तापलट कर शासन अपने हाथ में लेती है, तो सरकार के पास IRGC के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए जनसमर्थन या शक्ति होगी ही नहीं। यानि अगर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने ईरानी सरकार के खिलाफ कोई एक्शन लिया तो शायद 2021 में ईरान में एक नए राजनैतिक चैप्टर की शुरुआत देखने को मिल सकती है।