विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले पीएम शिंजो आबे ने खराब स्वस्थ के कारण इस्तीफा दे दिया है जिसके कारण जापान में थोड़ी राजनीतिक हलचल बढ़ेगी। नए नेता के लिए चुनाव तक किसी वरिष्ठ नेता को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है और इसमें सबसे आगे उप प्रधानमंत्री Taro Aso का नाम है। नए नेता के चुने जाने से जापान के अन्य देशों के साथ राजनयिक स्तर पर थोड़ी फेरबदल हो सकती है लेकिन चीन और भारत के साथ जापान के द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव की संभावना नहीं है, जो 15 वर्षों से जारी थी।
पिछले 15 वर्षों से जापान अपनी चीन विरोधी नीतियों से चीन के गले का कांटा बना हुआ है तो वहीं भारत के साथ लगातार अपने सम्बन्धों को मजबूत किया है। जापान के प्रधानमंत्री Abe भी चीन से रिश्ते अधिक खराब न करते हुए भी यह संदेश देते रहे हैं कि आज भी चीन उनका सबसे बड़ा दुश्मन है। परन्तु भारत के साथ जापान के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं और पीएम मोदी के भारत का पीएम बनने के बाद भारत के साथ जापान के सम्बन्धों को एक नया आयाम मिला था। अब Abe के बाद पीएम पद के प्रबल उम्मीदवार Taro Aso भी भारत के साथ रिश्तों को मजबूत करने के पक्षधर रहे हैं।
Taro Aso हमेशा से चीन विरोधी रहे हैं और भारत की तरफ उनका झुकाव रहा है जो कई अवसरों पर नजर भी आया है। 79 वर्षीय Taro Aso, Shinzo Abe के कैबिनेट में एक मुख्य सदस्य रहे हैं। यही नहीं वह सितंबर 2008 से सितंबर 2009 तक जापान के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल चुके हैं। आबे की तरह Taro Aso को चीन से कोई प्यार नहीं है। कोरोना के बाद, शी जिनपिंग और चीन के खिलाफ उन्होंने जम कर आग उगला था।
जापान के डिप्टी पीएम Taro Aso ने अप्रैल में टोक्यो में प्रतिनिधि सभा में सांसदों को संबोधित करते हुए कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपना नाम बदल कर “चीनी स्वास्थ्य संगठन” कर लेना चाहिए।
Japan's Deputy Prime Minister and Finance Minister Taro Aso said on Thursday that the petition came as many people worry the World Health Organization may have to change its name to the "Chinese Health Organization."
WHO🔜🔜🔜CHO @AbeShinzo @WHO pic.twitter.com/pl1suxLfm9— UyghurInfo (@UyghurInfo) March 27, 2020
Taro Aso ने WHO के प्रमुख की भूमिका के लिए डॉ टेड्रोस को अनफिट करार देने वाली याचिका पर अपना समर्थन दिया था।
पिछले कई अवसरों पर चीन के साथ भारत और जापान के संबंधों पर विचार करते हुए Taro Aso ने स्पष्ट रूप से कह भी चुके हैं कि चीन भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने या जापान के साथ समुद्री सीमा साझा करने के बावजूद, कभी भी इन दोनों देशों का दोस्त नहीं बन सका है।
उन्होंने कहा था “भारत चीन के साथ भूमि सीमा साझा करता है, और जापान का चीन के साथ समुद्री संपर्क रहा है”, लेकिन पिछले 1,500 वर्षों से अधिक कभी भी ऐसा कोई इतिहास नहीं रहा है जब चीन के साथ हमारे संबंध बहुत सुचारू रूप से चले।“
वर्ष 2013 में भारत की अपनी यात्रा के दौरान, उन्होंने चीन के साथ किसी भी सहज संबंध से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था। उस समय भारत-चीन का बॉर्डर विवाद चल रहा था, तब चीनी सैनिकों ने घुसपैठ कर भारतीय क्षेत्र पर दावा कर दिया था।
वर्ष 2008 और 2009 में उनके नेतृत्व में जापान और भारत के बीच सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा की थी जिससे चीन को भयंकर मिर्ची लगी थी। उस दौरान चीन ने कई माध्यम से टोक्यो और नई दिल्ली को एक अप्रत्यक्ष संदेश देने की कोशिश की थी उनका सुरक्षा घोषणा-पत्र चीन विरोधी है।
जापान के वित्त मंत्री तौर पर भी जापान की चीन पर आर्थिक निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही नहीं टोक्यो नेजो 2.2 बिलियन डॉलर की राशि जापानी विनिर्माण कंपनियों को चीन से बाहर स्थानांतरित करने के लिए दी थी उसमें भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
ताइवान पर भी Taro Aso के विचार चीन के खिलाफ ही रहे हैं। मैनिची डेली न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार 9 मार्च 2006 को उन्होंने ताइवान को एक “कानून का पालन करने वाला देश” कहा था जिसके बाद बीजिंग से जोरदार विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था।
Abe और Aso दोनों की विदेश नीतियाँ लगभग समान हैं। पूर्वी एशियाई देशों, विशेष रूप से उत्तर कोरिया और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के विषय पर दोनों का एक समान रुख रहा है।
अगर आज का माहौल देखा जाए तो चीन के खतरे को कम करने के लिए दक्षिण चीन सागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उभर रहे नए विश्व व्यवस्था में जापान की सक्रिय भागीदारी है। दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला यह द्वीप देश भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD का हिस्सा है। Taro Aso ने भी क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच घनिष्ठ रक्षा सहयोग का आह्वान किया है। आबे के उत्तराधिकारी भारत के साथ लॉजिस्टिक शेयरिंग व्यवस्था यानी LSA पर हस्ताक्षर करने के लिए उत्साहित भी होंगे जिससे चीन कोई चिढ़ मचने वाली है।
जिस तरह के बयान अभी तक Taro Aso ने दिये हैं और कदम उठाए हैं उससे यह कहा जा सकता है कि वह Shinzo Abe द्वारा छोड़े गए काम का नेतृत्व करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।
अगर उन्हें जापान का प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो यह चीन के लिए राहत की कोई बात नहीं होगी, बल्कि उसकी चिंता और बढ़ेगी क्योंकि Taro Aso को Shinzo Abe से अधिक conservative नेता माना जाता है। हालांकि, पीएम मोदी के साथ शिंजों आबे की दोस्ती की गर्माहट अब नहीं देखने को मिलेगी परंतु भारत के साथ जापान के बढ़ते सहयोग और रिश्तों में कोई कमी नहीं आएगी।