चीन द्वारा वित्त पोषित इंस्टीटूशन्स का इस्तेमाल दूसरे देशों में चीन के प्रभाव को बढ़ाने का काम करते हैं। मीडिया हो या NGO या शैक्षिक संस्थान, सभी जगहों पर चीन ने पैसा लगाया है और इसका इस्तेमाल वह अपना प्रोपोगेंडा फ़ैलाने में करता है। लेकिन मोदी सरकार ने चीन को भारतीय बाजार से खदेड़ने के साथ ही शिक्षण संस्थानों को भी चीनी प्रभाव से मुक्त करने का अभियान चला दिया है।
दरअसल, चीन का एक संस्थान है कन्फूसियस इंस्टिट्यूट, जिसका कार्य दुनिया भर के प्रमुख शिक्षण संस्थानों के साथ शैक्षणिक सहयोग को बढ़ाना है। बात इतनी सीधी नहीं है, इस संस्थान को चीन का शिक्षा मंत्रालय ही फंड मुहैया कराता है और इसके माध्यम से चीन दूसरे देशों में अपने संस्कृति और अपनी भाषा का प्रचार करता है तथा इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों पर मनोवैज्ञानिक विजय हासिल करने की कोशिश करता है। ये कुछ कुछ ऐसा ही है जैसे इंग्लैंड अपने उपनिवेशों के साथ करता था। इसके माध्यम से चीन ने यूएस,यूके, ऑस्ट्रेलिया आदि प्रमुख देशों के बुद्धिजीवी वर्ग को अपने प्रोपोगेंडा का शिकार बना रहा था। ऑस्ट्रेलिया ने इसी के खिलाफ सितम्बर 2019 में जाँच भी शुरू की थी।
अब भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने तय किया है कि वे भी Confucius Institute (कन्फुसियस इन्स्टिच्युट) द्वारा भारत में चलाए जा रहे सभी संस्थानों की जाँच करेंगे। साथ ही सुरक्षा एजेंसियों ने भी भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चेतावनी जारी की है। शिक्षा मंत्रालय भारत के विभिन्न शिक्षण संस्थानों और Confucius Institute (कन्फुसियस इन्स्टिच्युट) के बीच हुए कुछ 54 समझौतों, MoU का भी पुनर्निरीक्षण करेगी।
गौरतलब है कि इन संस्थानों में JNU , BHU , कलकत्ता विश्वविद्यालय , मुंबई विश्वविद्यालय , लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी और IIT जैसे सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज और विश्वविद्यालय शामिल हैं। इसमें सर्वाधिक 12 संस्थान JNU से सम्बद्ध हैं। ये फैसला तब लिया गया है जब सुरक्षा एजेंसियों ने कैबिनेट सेक्रेटरी के समक्ष यह साफ़ जाहिर किया कि चीन का भारत के आईटी सेक्टर और उच्चतर शिक्षा में बढ़ता प्रभाव भारत के लिए खतरनाक है।
भारत पहला देश नहीं है, जिसने इस संस्थान पर ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं। ऑस्ट्रेलिया में इस संस्थान पर वहां के विद्यार्थियों की जासूसी तक के आरोप लगे हैं। स्वीडन ने अपने यहां ऐसे सभी संस्थानों को बंद कर दिया है। जबकि अमेरिका में भी इस मामलें में जाँच बैठा दी गई है। चीन की सरकार ने इस संस्थान द्वारा अपनी नीतियों को साधने के लिए कितनी तत्परता दिखाई है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 2004 में दक्षिण कोरिया में पहला संस्थान खोलने के बाद चीन ने साल के अंत तक ही 548 संस्थान खोल दिए थे।
ये फैसला ऐसे समय में आया है जब दोनों देशों की आर्मी के अधिकारियों की बैठक आज सीमा पर चल रहे तनाव को लेकर होनी है। लेकिन भारत सरकार ने साफ़ जाहिर कर दिया है कि वे अपनी भूमि पर चीन के किसी भी चालबाजी को कामयाब नहीं होने देंगे। साफ़ जाहिर है की 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध के बाद भारत सरकार न सिर्फ अर्थव्यवस्था बल्कि देश के हर उस क्षेत्र में ‘चीन मुक्त भारत अभियान ’ को चलाने के मूड में है जहाँ अब तक चीन आपसी सहयोग और हिंदी चीनी भाई भाई के नाम पर बैठा हुआ था।