प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान ने अपने आप को विश्व स्तरीय मसखरा सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। परंतु पाकिस्तान की नौटंकियों को अब हर कोई झेलने को तैयार नहीं है। कुछ दिनों पहले ही सऊदी अरब ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री की खोखली धमकियों के कारण पाकिस्तान को मदद देना बंद कर दिया था। इसीलिए पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा सऊदी अरब गए थे दोनों देशों के बीच सुलह कराने, लेकिन अब उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा है।
दरअसल, जनरल बाजवा के साथ पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी, आईएसआई के प्रमुख फैज हमीद भी सोमवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद पहुंचे थे। उनका मकसद था, उस कड़वाहट को दूर करना जो सऊदी अरब और पाकिस्तान के सम्बन्धों में आई है। लेकिन सऊदी अरब उन देशों में से नहीं है जो अपने अपमान के बावजूद उन लोगों से हाथ मिलाये जिन्होंने, उसका अपमान किया। इसीलिए सऊदी राजघराने के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने जनरल बाजवा से बात तो दूर, उनको मुलाकात का समय तक नहीं दिया। जनरल बाजवा केवल सऊदी अरब के जनरल स्टाफ प्रमुख, मेजर जनरल फय्याद अल रुवेली से ही मिल पाए, जिन्होंने बस सैन्य सहायता पर कुछ देर चर्चा की।
परंतु विवाद आखिर किस बात पर था जिसे सुलझाने की कवायद में पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को दूसरे देश में जाकर अपनी हंसी उड़वानी पड़ी? दरअसल, पाकिस्तान चाहता था कि सऊदी की अध्यक्षता वाले संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानि ओआईसी कश्मीर मुद्दे पर भारत का विरोध करे और पाकिस्तान के रुख का समर्थन करे। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने इसके लिए सऊदी को एक अल्टिमेटम भी दे दिया कि यदि ओआईसी ने उनकी बात नहीं मानी, तो पाकिस्तान ओआईसी से अलग गुट बनाकर कश्मीर के मुद्दे को उठाने के लिए बाध्य हो जाएगा।
अब ऐसे में सऊदी अरब, जो इस्लामिक जगत का निर्विरोध नेता है, यह अपमान भला क्यों सहता? सऊदी अरब ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उसे दिए गए 3 बिलियन डॉलर के कर्ज का एक हिस्सा तुरंत वापिस चुकाने का निर्देश दिया। मजे की बात तो ये रही कि इस कर्जे को चुकाने के लिए पाकिस्तान ने चीन से 1 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया। इसके अलावा पाकिस्तान को तेल की आपूर्ति भी बंद कर दी गई।
इतना होने के बाद भी पाकिस्तानी सरकार अपने रुख पर कायम है, जबकि पाकिस्तानी आर्मी इस बात का बिलकुल भी समर्थन नहीं करती। पाकिस्तानी आर्मी, जो पाकिस्तान सरकार कि असली मालिक है, वह बिलकुल नहीं चाहती कि सऊदी अरब जैसे प्रभावशाली मुस्लिम देश के साथ उसके संबंध खराब हों। इससे स्पष्ट पता चलता है कि पाकिस्तानी सरकार और उसकी आर्मी इस विषय पर बिलकुल भी एकमत नहीं हैं। इसीलिए जनरल बाजवा सऊदी दौरे पर गए थे ताकि रिश्तों में सुधार ला सकें, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
चूंकि, इमरान खान और शाह महमूद कुरेशी तुर्की की चाकरी में ही अपना हित समझते हैं, इसीलिए सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान किसी भी हालत में नहीं चाहते कि पाकिस्तान के साथ कोई भी ढील बरती जाए। सऊदी ने कई बार पाकिस्तान को आर्थिक आपदा से बचाया है, लेकिन पाकिस्तान की नौटंकियों से अब सऊदी भी तंग आ चुका है और अब इन दोनों देशों के बीच के संबंध इमरान खान की हठधर्मिता के कारण पहले जैसे कभी नहीं रहेंगे।