वामपंथी और सफ़ेद झूठ बोलने का बहुत पुराना नाता रहा है, विशेषकर जब बात भारतीय इतिहास का उल्लेख करने की हो। जब रक्षाबंधन जैसे पवित्र उत्सव की खिल्ली उड़ाकर और उसे दमनकारी सिद्ध करने के सभी प्रयास असफल हुए, तो अब ये दावा किया जा रहा है कि रक्षाबंधन एक प्राचीन त्योहार नहीं, बल्कि मुगलों का भारतीयों को उपहार है।
वामपंथी इतिहासकार राना सफ़वी की 2018 में छपी पुस्तक ‘सिटी ऑफ माई हार्ट’ पिछले कुछ दिन से सुर्खियों में है, परंतु गलत कारणों से। इस पुस्तक में दावा किया गया है कि रक्षाबंधन पहले इतना प्रचलन में नहीं था, लेकिन मुगलों की कृपा से ये त्योहार काफी लोकप्रिय बना। 2018 में लाइवमिंट में छपे राना की पुस्तक के एक अंश के अनुसार, “मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय की जब हत्या हुई थी, तो उनकी लाश को यमुना के तट पर फेंक दिया गया था, जिसे एक हिन्दू महिला ने पहचान लिया था, और वह तब तक वहाँ रही, जब तक मदद नहीं आ गई। इसके उपलक्ष्य में शाह आलम द्वितीय ने उन्हे खूब पुरुस्कृत किया, और वर्षों तक उस महिला के हाथों से हीरे मोतियों से जड़ी राखी बँधवाई”।
इस लेख के शीर्षक से ये संदेश गया कि मुगल भारत में राखी का त्योहार लेकर आए थे, जिसके कारण सोशल मीडिया पर राना को ज़बरदस्त ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा, और लोगों ने जमकर राना की खिंचाई की। चुनावी विशेषज्ञ एवं पत्रकार प्रदीप भण्डारी ने ट्वीट किया, “द्रौपदी ने एक समय अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण के चोटिल अंगुली पर बांधा था। इससे अभिभूत होकर श्रीक़ृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना। परंतु ऐसे इतिहासकार दावा करते हैं कि रक्षा बन्धन को मुगल शासक प्रचलन में लाये थे। इसीलिए हमें नई शिक्षा नीति की आवश्यकता है”।
Draupadi once tore a piece frm her saree & tied it around wounded finger of Krishna. Krishna was touched by her action& declared her to be his sister. Bt Historians claim Rakshabandhan was started by Mughals. That’s why New Education Policy ws needed. 😂 #HappyRakshaBandhan2020 pic.twitter.com/7pfUCjgfjG
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी)🇮🇳 (@pradip103) August 3, 2020
अब मरता क्या न करता, राना साफ़्वी को अपने बयान पर सफाई जारी करनी पड़ी। मोहतरमा कहती हैं, “मैं आप सब से माफी मांगती हूँ यदि आपका दिल दुखाया हो। यह अफवाह लाइवमिंट के गलत छपाई के कारण फैली थी, जिसका मेरे निजी विचारों से कोई नाता नहीं।”।
अब राना सफ़वी अपने आप को बचाने का जितना प्रयास करे, सच तो यही है कि वह अभी भी मुगलशाही की चाटुकारिता से बाज़ नहीं आया है। ऐसे इतिहासकारों के लिए मुगल साम्राज्य किसी स्वर्ग से कम नहीं रहा है, और मुगल शासकों ने अपनी जनता पर चाहे जितने अत्याचार किए हों, परंतु इन लोगों के लिए तो वे देव तुल्य थे। मुगलों का महिमामंडन करने के लिए ये लोग सफ़ेद झूठ बोलने से ज़रा भी नहीं हिचकिचाते। राना सफ़वी तो उन इतिहासकारों में शुमार हैं, जो आज भी मानते हैं कि मुगलों के कारण भारत बहुत समृद्ध था, लेकिन रक्षा बन्धन के मामले में इस बार ये लोग कथित तौर पर अपनी सीमाएं लांघ गए।
अब रक्षा बन्धन का इतिहास कितना प्राचीन है, इसे बताने के लिए कोई विशेष शोध करने की आवश्यकता नहीं है। रक्षा बंधन का महत्व और इसका उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में काफी मिला है। सर्वप्रथम यमराज को उनकी बहन यमुना द्वारा राखी बांधने का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा श्री कृष्ण, उनके अग्रज बलराम और उनकी बहन सुभद्रा द्वारा मनाया गया राखी का पर्व भी काफी लोकप्रिय रहा है। इसके अलावा श्रीक़ृष्ण और द्रौपदी के राखी से जुड़े प्रसंग का भी उल्लेख किया गया है, जिसके बारे में प्रदीप भण्डारी ने अपने ट्वीट में भी बताया।।
चलिये, एक बार को मान लेते हैं कि रक्षाबंधन मुगलों के समय ज़्यादा प्रचलित हुआ है, और प्राचीन इतिहास के साक्ष्य बेमानी है पर राना सफ़वी के कथित दावे को स्वयं एक अन्य ऐतिहासिक तथ्य झुठला देता है। जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मेवाड़ पर धावा बोला था, तब रानी कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजी थी। इसका स्पष्ट अर्थ है कि मुगल बादशाह शाह आलम II से सदियों पहले राखी का उत्सव काफी लोकप्रिय था, अब यह और बात है कि हुमायूँ ने उस त्योहार का मान न रखते हुए तब मेवाड़ में कदम रखा, जब आधा चित्तौड़ ध्वस्त हो चुका था, और रानी कर्मवती सहित अनेकों राजपूत स्त्रीयों ने जौहर कर लिया था।
सच कहें तो अब हमारे इन वामपंथी इतिहासकारों के खोखले दावों को हाथों हाथ लेने वाले ज़्यादा लोग नहीं बचे हैं। इसीलिए अब वे भ्रामक खबरों के जरिये लाइमलाइट में बने रहना चाहते हैं, जैसे लाइवमिंट की रिपोर्ट में किया गया था। हालांकि इससे यह बात नहीं झुठलाई जा सकती कि रक्षाबन्धन का अस्तित्व बहुत प्राचीन है, जिसे चंद लोगों का झूठ नहीं झुठला सकता।