तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के लिए मुस्लिम जगत से एक बड़ी चुनौती सामने आई है। इस्लामिक जगत की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में एक UAE ने ग्रीस के साथ सैन्य अभ्यास करने का निर्णय लिया है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक UAE के फाइटर जेट्स इस हफ्ते ग्रीस के दक्षिणी आइलैंड क्रीट पर संयुक्त सैन्य अभ्यास के लिए पहुंचेंगे। UAE का यह फैसला तब आया है जब ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव चरम पर हैं और हाल ही में हालात सैन्य टकराव तक पहुँच गए थे।
जहां तुर्की के लिए UAE का कदम चिंता का विषय है, वहीं ग्रीस के लिए ये राहत की खबर है। ऐसा इसलिए क्योंकि तुर्की के खिलाफ ग्रीस को लगातार अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मिल रहा है। इसके पहले फ्रांस ने भी ग्रीस की सहायता में अपने राफेल विमान और जंगी जहाज भेजे थे।
जहाँ तक UAE और तुर्की की बात है, तो यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि मुस्लिम शक्तियां अब दो भागों में बंट गईं हैं। UAE और इज़राइल के बीच हुए अब्राहमिक एकॉर्ड के तहत जब UAE ने इज़राइल के साथ अपने संबंध सामान्य करने का फैसला किया था तो तुर्की ने इसकी जबरदस्त आलोचना की थी। महत्वपूर्ण बात ये है कि तुर्की ही पहली बड़ी मुस्लिम शक्ति थी जिसने इज़राइल के साथ सबसे पहले अपने राजनायिक संबंध बनाए थे। ऐसे में तुर्की को इस फैसले का स्वागत करना चाहिए था।
वहीं हाल ही में जब एर्दोगन ने हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने का निर्णय किया था तो UAE ने इसकी आलोचना की थी। एक ओर जहाँ UAE इज़राइल के साथ अपने संबंध सुधार रहा है, वहीं तुर्की मुसलमानों से जुड़े भावनात्मक मुद्दों को उठाकर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। अरब जगत में राजनीति ऐसे करवट ले रही है जिसपर कभी-कभी विश्वास करना मुश्किल हो जाता है, लेकिन यह सब अचानक नहीं हो रहा बल्कि लंबे समय से हो रही घटनों ने इन बदलावों को जन्म दिया है।
दरअसल हो यह रहा है कि, तुर्की अधिक से अधिक इस्लामिक एजेंडा अपना रहा है और खुद को मुसलमानों की एकमात्र शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है। वह सीधे तौर पर सऊदी अरब, UAE, बहरीन जैसे देशों जहाँ, शाही परिवारों का शासन है, के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है।
कुछ साल पहले जब अरब देशों में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन हुए थे, तो तुर्की ने आंदोलनकारियों का समर्थन किया था। तुर्की का उद्देश्य था कि सऊदी, बहरीन, UAE आदि देशों में लोकतंत्र स्थापित करवाया जाए और उसे अपने इशारे पर नचाया जाए। यदि इन देशों में लोकतंत्र स्थापित हो जाता तो वहाँ के विभिन्न दल स्वाभाविक रूप से खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष करते। इसी स्थिति का फायदा उठाते हुए तुर्की सरकार बनाने में उनकी मदद करता ताकि क्षेत्र में उसका दबदबा और बढ़े।
लेकिन तुर्की की यह योजना धरी रह गई क्योंकि, अरब जगत के शाही परिवारों ने इस क्रांति को रोक लिया। इसके बाद तुर्की में एर्दोगान के खिलाफ सैन्य तख्तापलट का प्रयास हुआ, लेकिन यह भी असफल रहा। तुर्की ने इसके लिए UAE को ही जिम्मेदार माना और उसपर साजिश का आरोप लगाया।
इस पूरे खेल के कारण ये दोनों देश बिलकुल विपरीत ध्रुवों पर खड़े हो गए। अब UAE अपने देश में आतंरिक सुधार लागू कर रहा है जिससे भविष्य में किसी भी आतंरिक असंतोष को जन्म लेने का मौक़ा ही न मिले। साथ ही वह तुर्की को रोकने के लिए क्षेत्र में नए साथियों की तलाश कर रहा है।
तुर्की और UAE का विवाद लीबिया में भी सामने आ रहा है। जहाँ UAE संयुक्त राष्ट्र समर्थित वहाँ की नागरिक सरकार के साथ खड़ा है वहीं तुर्की कट्टरपंथी विद्रोहियों को समर्थन दे रहा है। हाल ही में इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के चीफ ने UAE का दौरा किया था। यह बताता है कि UAE की रणनीति में कितना व्यापक बदलाव आया है। अब फ्रांस के बाद UAE का ग्रीस के साथ आना एर्दोगन की अभिलाषाओं को करारा झटका है।