दशकों तक दक्षिण चीन सागर में अपनी धाक जमाने वाला चीन को अब दक्षिण पूर्व एशियाई देशों यानि ASEAN ने अपने जाल में फंसा लिया है। कई वर्षों तक बीजिंग दक्षिण चीन सागर में सबसे बड़ी ताकत था और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के अनुरोधों के बावजूद, ड्रैगन दक्षिण चीन सागर के विवादित जलमार्गों में एक आचार संहिता (यानि Code Of Conduct) नहीं बनाना चाहता था। अब वही चीन COC के लिए भीख माँग रहा है, लेकिन ASEAN देश उस बीजिंग प्रायोजित COC को टालते नजर आ रहे हैं।
SCMP की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन दक्षिण चीन सागर में Code Of Conduct के लिए ASEAN देशों के साथ बातचीत में हल निकलने का दावा कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों को लगता है कि आने वाले कुछ वर्षों में COC नहीं लागू होने वाला है। वियतनाम और फिलीपींस जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देश चीन के आचार संहिता को समर्थन नहीं दे रहे हैं। वे जानते हैं कि बीजिंग दक्षिण चीन सागर को सुरक्षित बनाने के लिए गंभीर नहीं है और इसलिए ये दोनों देश पूरी प्रक्रिया में देर कर रहे हैं।
अमेरिकी नौसेना के समर्थन और भारतीय नौसेना की उस क्षेत्र में तैनाती की रिपोर्ट के बाद अब ऐसा लगता है कि ASEAN अब दक्षिण चीन सागर में शर्तों को निर्धारित करना चाहता है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि क्यों 2021 तक दक्षिण चीन सागर के लिए एक COC को अंतिम रूप देने के लिए बीजिंग की महत्वाकांक्षी योजना का विशेषज्ञ उपहास उड़ा रहे हैं।
ISEAS के आसियान अध्ययन केंद्र में राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के प्रमुख शोधकर्ता Hoang Thi Ha ने कहा कि कोरोना महामारी के बिना भी 2021 तक एक COC को लागू करवाना की चीन के लिए लगभग असंभव है।
फिर भी, चीन दक्षिण चीन सागर में एक सीओसी के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। बीजिंग ने भी अगस्त की शुरुआत में दस आसियान सदस्यों के राजनयिकों को बुलाया था और बैठक के दौरान आचार संहिता पर बातचीत के लिए नए सिरे से प्रयास करने की भीख मांगी। पिछले हफ्ते, ASEAN ने चीन और अमेरिका दोनों के साथ अलग-अलग बैठक आयोजित की थी, जिसमें ड्रैगन को यह लगा कि COC के लिए हो रही प्रक्रिया वार्ता पटरी पर है।
यानि देखा जाए तो दक्षिण चीन सागर में एक नया और दिलचस्प समीकरण बन रहा है जहां चीन को एक COC के लिए विनती करनी पड़ रही है, जबकि ASEAN चीन के एजेंडे को धराशायी करने में लगे हैं।
Indo Pacific क्षेत्र में अब परिवर्तन हो रहा है और चीन अब इस क्षेत्र में सबसे बड़ी ताकत नहीं बचा है, क्योंकि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया यानि QUAD, विवादित जलमार्गों में चीन की गुंडागर्दी को कम करने के लिए आसियान को गले लगा रहा है। बढ़ी हुई कूटनीतिक ताकत के साथ, आसियान बीजिंग को COC में रियायतें देने के लिए आराम से मजबूर कर सकता है। यानि ASEAN अपनी शर्तों के साथ COC को लागू करवा सकता है जिससे बीजिंग को बैकफुट पर धकेलना आसान हो जाएगा। परंतु यहाँ एक समस्या यह भी है है कि ASEAN के सभी देश COC अपनी अपनी शर्तों को के लिए गुटबाजी कर सकते हैं।
दक्षिण चीन सागर के जैसे अत्यधिक विवादित क्षेत्र के लिए एक आचार संहिता पर शायद ही सभी देश माने लेकिन एक बात तय है कि ASEAN को लगता है कि वह मजबूत स्थिती में है और इसलिए वह चीन को बैकफूट पर रखना चाहता है। चीन पर दबाव बनाने में कोई भी देश पीछे नहीं है। कई देश चीन के खिलाफ अब संयुक्त राष्ट्र में diplomatic notes भी भेज चुके हैं।
आसियान के देश मिल कर भविष्य में होने वाली किसी भी COC की घोषणा को UNCLOS के अनुसार बाध्यकारी बनाना चाहेंगे, क्योंकि बीजिंग 9-डैश लाइन के आधार पूरे दक्षिण चीन को अपना अधिकार जमाता आया है। यही चीनी अधिकार सभी विवादों का जड़ भी है।
इसलिए दोनों पक्षों के बीच अपने अनुकूल COC के एजेंडे को पुश करने की लड़ाई है और वर्तमान में ASEAN इस खेल को जीतता हुआ नजर आ रहा है। अब ASEAN के लगातार चीन पर दबाव बनाने से वह कमजोर पड़ता जा रहा है। अगर COC आता है और वह ASEAN के अनुकूल होता है तो यह चीन के लिए सबसे बड़ी हार होगी।