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बस कागजी शेर हैं चीनी आर्मी, भारतीय पहाड़ी लड़ाकों के आगे बार-बार फिसड्डी साबित हुए हैं

Cerelac पोषित PLA सैनिक बड़े नाजुक हैं

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
3 September 2020
in रक्षा
सेना
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हाल ही में चीन को एक अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा, जब उसने 500 सैनिकों के साथ पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी छोर पर एलएसी पार कर कई रणनीतिक क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए 29 अगस्त की रात को धावा बोला। भारत ने न केवल इस हमले को ध्वस्त किया, अपितु चीनी सैनिकों को चौंकाते हुए रणनीतिक रूप से अहम रेकिन घाटी में स्थित रणनीतिक रूप से अहम कालाटॉप पोस्ट को पुनः भारत में समाहित किया।

इससे एक तीर से दो शिकार हुए हैं। जहां भारत ने न केवल अपने आक्रामक रक्षा नीति का बेजोड़ उदाहरण पेश कर ये सिद्ध किया कि यह देश अपने शत्रुओं को उन्हीं के घर में घुसकर सबक सिखाना भी जानता है, तो वहीं ये बात एक बार फिर सिद्ध हो गई कि चीनी पीएलए आर्मी सिर्फ नाम की आर्मी है , असल में यहाँ Cerelac पोषित वयस्क भरे पड़े हैं, जो ज़रा सी चुनौती मिलने पर दुम दबाकर भाग खड़े होते हैं।

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पर भारतीय सेना की विजय इतनी अहम क्यों थी? मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो चीन ने यहां पर सर्विलांस सिस्टम और कैमरे भी लगा रखे थे, जिससे भारतीय सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखी जाए, बावजूद इसके चीनियों को भनक लगने से पहले ही भारतीय सेना इन चोटियों पर काबिज हो गई। यह इलाका सामरिक रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यदि चीन झील के दक्षिणी छोर पर भी काबिज हो जाता तो पूरे पैंगोंग झील क्षेत्र में उसे बढ़त हासिल हो जाती। इसके कारण भारत को पैंगोंग के अलावा चुशलू इलाके में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता।

इसके अलावा इस बात पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया कि भारत ने इस मोर्चे के लिए विशेष रूप से अपने स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स का उपयोग किया था। इस फ़ोर्स को 1962 की पराजय के बाद ही गठित किया गया था, और इसमें मुख्य रूप से तिब्बत से आये शरणार्थियों को शामिल किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तिब्बती लोग ऊंचे इलाकों में रहने के आदी होते हैं, इसके कारण तिब्बती पठार में चीनियों को धूल चटाने की क्षमता इनमें स्वतः होती है। अब भारत की इस स्पेशल रेजिमेंट में गोरखा सैनिकों को भी रखा जा रहा है जिन्हें माउंटेन वारफेयर का अच्छा अनुभव होता है। यही कारण था कि चीन की तमाम तैयारियों के बाद भी इन सैनिकों ने चीनी सेनाओं को चकमा देते हुए पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया।

इतना ही नहीं, भारतीय सेना किसी भी तरह के युद्धभूमि पर किसी भी स्थिति में भिड़ने के लिए पूरी तरह सक्षम है। यदि विश्वास न हो, तो 1962 के युद्ध के रेजांग ला मोर्चे के बारे में पढ़ लीजिये। जिस जगह भारत और चीन अभी वर्तमान में लड़ रहे हैं, वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर चुशूल क्षेत्र में इस पहाड़ी युद्धभूमि पर 18 नवंबर 1962 की सुबह चीन ने लगभग 2500 सैनिकों और हर प्रकार के शस्त्रों सहित धावा बोला था।

मोर्चे पर तैनात कुमाओं रेजीमेंट के चार्ली कंपनी के सैनिकों के पास उचित शस्त्र तो छोड़िए, कड़ाके की ठंड से बचने के लिए पर्याप्त गियर भी नहीं थे। लेकिन इसके बावजूद भारतीय सैनिकों ने शत्रु पर ऐसा कहर ढाया, कि चीन के 1300 से अधिक सैनिक उसी मोर्चे पर मारे गए। आज 58 वर्ष बाद, भारत पहाड़ी युद्धशैली में न केवल पूरी तरह निपुण है, बल्कि चीन के कुछ विशेषज्ञ भी दबी ज़ुबान में इस बात को स्वीकारते हैं कि पहाड़ी युद्धशैली में भारतीय सैनिकों के समक्ष दुनिया की कोई ताकत नहीं टिक सकती।

वहीं भारत के वीर जवानों की तुलना में चीन के सैनिकों के पास उचित युद्ध कौशल तो छोड़िए, एक अदद युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। चीन ने अंतिम बार 1979 में वियतनाम पर आक्रमण किया था, जहां वियतनाम ने भारी नुकसान के बावजूद चीन के PLA सैनिकों को पटक पटककर धोया था। चीन के पीएलए सैनिक कितने कमजोर और थुलथुले हैं, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब गलवान घाटी पर चीनी सैनिकों ने भारतीय खेमे पर हमला किया था, तो जवाब में भारतीय सैनिकों की घातक टुकड़ियों ने केवल अपने हाथों और पैरों के कुशल प्रयोग से ही चीनी खेमे में त्राहिमाम मचा दिया था।  जहां कुछ चीनी सैनिकों के चेहरे इतनी बुरी तरह कुचल दिये गए थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे, तो वहीं कुछ चीनी सैनिकों के गर्दन उनके धड़ से झूलते हुए दिख रहे थे।  वैसे भी जब बात क्लोज़ कॉम्बेट की आती है, तो भारतीयों का कोई सानी नहीं है।

इससे पहले भी TFI पोस्ट ने चीनी सैनिकों की पोल खोलते हुए बताया था कि चीन की सेना सिर्फ नाम के लिए है। रिपोर्ट के अनुसार, “अब अगर युद्ध में pampered बच्चे आकर लड़ाई लड़ेंगे, तो हश्र तो यही होगा ना! अब आपको चीनी सेना की एक और उपलब्धि बताते हैं। वर्ष 2016 में छपी The Guardian की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब चीनी सैनिक UN peacekeeping मिशन के तहत सूडान में तैनात थे, तो उनपर एक बार सूडान के विद्रोहियों ने हमला बोल दिया था। उन चीनी सैनिकों पर एक civilian protection site की सुरक्षा करने का जिम्मा था, लेकिन विद्रोहियों को देखकर चीनी सैनिकों के पसीने छूट गए और वे अपनी जगह को छोड़कर भाग गए। उन चीनी सैनिकों की बुजदिली की वजह से ना सिर्फ कई मासूमों की जान चली गयी, बल्कि कई महिलाओं का यौन शोषण भी किया गया। यही चीनी सेना की सच्चाई है, जो अब दुनिया के सामने एक्सपोज हो चुकी है। इसलिए चीनी सेना को ज़मीन पर रहकर अपनी औकात के अनुसार ही बात करनी चाहिए। यही कारण था कि डोकलाम में चीनी सेना को मुंह की खानी पड़ी थी, और अब लद्दाख में भी चीनी सेना का यही हाल होना तय है।’’

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि पैंगोंग त्सो के दक्षिणी छोर पर चीन ने जो असफल हमला किया था, उससे एक बार फिर चीन के राजदुलारे पीएलए फ़ौजियों की पोल खुल चुकी है। चीनी सेना बाहर से जितना मजबूत दिखाई देती है, उतनी मजबूत असल में वह है नहीं, क्योंकि कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स और शोध इस बात का दावा करते हैं कि चीनी सेना “one child policy” के तहत जन्में इकलौते बच्चों से भरी पड़ी है, जिन्हें बड़े ही लाड़-प्यार से पाला गया होता है, और उनमें लड़ने का ज़रा भी हौसला नहीं होता।

Tags: PLASFF
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बांग्लादेश बन सकता है भारत के लिए नया संकट
भारत

ISI और ARASA बांग्लादेश में कैसे रच रहे हैं क्षेत्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करने की साजिश?

12 November 2025

पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) अब बांग्लादेश में सक्रिय अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA) और अन्य रोहिंग्या संगठनों के साथ अपना गठजोड़ और मजबूत कर...

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