चीन के विदेश मंत्री वांग यी कुछ हफ्तों पहले जब यूरोप गए थे, तब उन्हें लग रहा था कि उनके स्वागत में पलक पावड़े बिछाए जाएंगे, जर्मनी जैसा देश उन्हें सर आँखों पर बिठाएंगे, पर हुआ ठीक उल्टा। उनका काम तो बना नहीं, और उल्टे अब यूरोपीय संघ ने भी उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।
अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच की दूरियाँ को बढ़ाने और चीन को यूरोप के और नजदीक लाने के लिए चीन ने 14 सितंबर को यूरोप के नेताओं के साथ एक विशेष सम्मिट का आयोजन कराने का निर्णय लिया, जो वुहान वायरस की महामारी के कारण ऑनलाइन होगी। इसके लिए चीन ने अपने विदेश मंत्री वांग यी को एक विशेष यूरोपीय दौरे पर भेजा, जहां वे यूरोप के प्रमुख देशों में शामिल इटली, फ्रांस, नॉर्वे, नीदरलैंड्स, जर्मनी देशों के नेताओं से अपने लिए समर्थन जुटाते।
परंतु चीन का ये दांव उसे बहुत महंगा पड़ा, क्योंकि किसी भी देश में वांग यी का गर्मजोशी से स्वागत तो बहुत दूर की बात, उनके साथ शिष्टता से भी पेश नहीं आया गया। जहां भी वे गए, वहां वहां उनपर चीन द्वारा तिब्बत, हाँग काँग और शिंजियांग में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जवाबदेही मांगी गई। जहां इटली और नीदरलैंड्स ने इस बात पर वांग यी को आड़े हाथों लिया, तो वहीं फ्रांस ने वांग की दलीलों को ऐसे इग्नोर किया, मानो वे वहाँ थे ही नहीं।
परंतु इसके लिए काफी हद तक वांग यी भी जिम्मेदार थे। जहां भी वे गए, वहाँ वे चीन का राग अलापते रहे, ठीक वैसे ही, जैसे हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापता रहता है। वांग के असली रंग नॉर्वे में सामने आए, जब ओस्लो में एक प्रेसवार्ता के दौरान कुछ पत्रकारों ने पूछ लिया कि यदि हांगकांग के नेताओं को नोबेल पुरस्कार दिया गया तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। वांग यी इस प्रश्न पर बुरी तरह तमतमा गए और उन्होंने नॉर्वे को धमकी दी कि, यदि हांगकांग के लोगों को नोबल शांति पुरस्कार दिया गया, तो अंजाम बहुत ही बुरा होगा।
परंतु बात यहीं पर नहीं रुकी। जब वांग यी जर्मनी आए, तो उन्होंने चेक गणराज्य के संसद के अध्यक्ष को ताइवान के दौरे के लिए आड़े हाथों लिया, और उन्हें अंजाम भुगतने की धमकी दी। वांग यी के शब्दों में ऐसा करके चेक गणराज्य ने अपने लिए चीन में डेढ़ अरब शत्रु खड़े कर लिए हैं। इसपर जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास बुरी तरह भड़क गए, और उन्होंने वहीं मंच पर वांग यी को उनकी औकात याद दिलाते हुए कहा कि यूरोप में सभी देश एक दूसरे के साथ सहयोग की नीति पर काम करते हैं, और यहाँ धमकियों से काम कतई नहीं चलेगा।
इतना ही नहीं, हीको मास ने चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाया, और साथ ही साथ परोक्ष रूप से चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी। विदेश मंत्री हीको मास ने चीन को तत्काल प्रभाव से हांगकांग पर थोपा गया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी हटाने को कहा। ब्लूमबर्ग ने जर्मनी के इसी स्वभाव को ध्यान में रखते हुए अपने एक लेख में लिखा है, “कूटनीतिक शैली में ये क्षण न केवल एक नए यूरोप का प्रतीक है, अपितु एक नई दिशा भी देता है। कई वर्षों तक यूरोपीय देश, विशेषकर जर्मनी आर्थिक कारणों से चीन के कुकृत्यों की अनदेखी करता रहा, लेकिन अब वो समय नहीं रहा। हीको मास ने स्पष्ट संकेत दिया है कि चीन और अमेरिका की लड़ाई में यूरोप उनका अखाड़ा नहीं बनेगा”।
इससे पहले यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने भी चेतावनी दी थी कि चीन अब सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद का प्रतीक है, और इसके साथ संबंध स्थापित करना खतरे से खाली नहीं होगा। ऐसे में ये स्पष्ट हो चुका है कि वांग यी का यूरोपीय दौरा चीन के लिए वरदान नहीं, बल्कि वो अभिशाप है जिससे वह अब शायद ही उबर पाएगी।