“चिराग पासवान नीतीश कुमार के खिलाफ मैदान में”, ये भी अमित शाह की रणनीति का हिस्सा है

अमित शाह को यूं ही नहीं चाणक्य कहा जाता है

नीतीश

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां ज़ोरों-शोरों से चल रही हैं। सभी पार्टियां चुनावों के मद्देनजर अपनी अपनी रणनीति सेट करने में लगी हुई हैं। लेकिन आजकल NDA में एक अलग विरोधाभासी माहौल देखने को मिल रहा है। एक तरफ लोजपा के नेता चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं, तो वहीं नीतीश कुमार भी लोजपा की काट के लिए जीतन राम मांझी को अपने पाले में कर चुके हैं। लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार नीतीश के खिलाफ मुखर होते जा रहे हैं। वहीं, अब केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय को भाजपा की चुनाव संचालन समिति का प्रमुख भी बना दिया गया है। इन सभी घटनाओं को जोड़ कर देखा जाए तो यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि, इन सब के पीछे किसी और का नहीं बल्कि भारत की वर्तमान राजनीति के चाणक्य अमित शाह का दिमाग है।

दरअसल, NDA के घटक दल लोजपा और जेडीयू के बीच विवाद लगातार गहराता जा रहा है। दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ न सिर्फ बयान दे रही हैं बल्कि अब एक दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ने को आतुर दिख रही हैं। लोजपा की संसदीय बोर्ड ने बिहार विधान सभा की 243 सीटों में से 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया है। हालांकि अभी इस फैसले पर आखिरी निर्णय लोजपा की केन्द्रीय कमेटी और पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान लेंगे। लेकिन लोजपा के रुख से एक बात तो स्पष्ट है कि, पार्टी नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के लिए तैयार है। यानि चुनाव में भाजपा के लिए सौ सीटें छोड़कर शेष सभी सीटों पर लोजपा अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला कर सकती है।

पार्टी की इस बैठक में चिराग पासवान भी मौजूद थे और उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि, उनकी पार्टी जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी। इस वर्ष की शुरुआत से ही चिराग पासवान नीतीश सरकार पर हमलावर रहे हैं। कोरोना की टेस्टिंग से ले कर लॉकडाउन द्वारा उत्पन्न प्रवासी संकट से निपटने के लिए नीतीश कुमार की नीतियों  और राज्य की कानून-व्यवस्था को चिराग ने आड़े हाथों लिया है। पासवान ने जेडीयू नीतीश कुमार पर फिर निशाना साधते हुए कहा था कि, मारे गए अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने का उनका फैसला और कुछ नहीं, बल्कि “एक चुनावी घोषणा” है। चिराग पासवान ने तो यह तक बयान दे दिया है कि, वे भी एक दिन मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उनके इस बयान के कारण JDU संगठन में एक भूचाल आया हुआ है।

चिराग पासवान के नेतृत्व से पहले LJP बिहार में सिर्फ दलितों की पार्टी मानी जाती थी। लेकिन चिराग के नेतृत्व में LJP का स्वरूप बदल रहा है। चिराग पासवान राज्य तथा देश के विभिन्न मुद्दों पर खुलकर अपना विचार रखते रहे हैं और उनकी छवि एक तेज तर्रार युवा नेता के रूप में उभरी है। चिराग के नीतीश पर लगातार हमले पर बीजेपी ने भी अभी तक कोई बड़ा बयान नहीं दिया है। कुछ दिनों पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें सलाह दी थी कि वे “मौखिक हमलों में संयम रखें” और अपनी ताकत का आंकलन कर यथार्थवादी बनें।

अगर चिराग के JDU और नीतीश कुमार पर लगातार हमलों को देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह एक कुशल रणनीति के तहत किया जा रहा है। यह सभी को पता है कि, बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सके हैं। एक सच्चाई यह भी है कि राज्य में अभी कोई नेता इस स्तर तक नहीं पहुंचा है जो उन्हें प्रत्यक्ष चुनौती दे सके। लेकिन दुर्भाग्य से नीतीश कुमार अब बिहार की जनता के बीच खासे अलोकप्रिय हो चुके हैं। इस कारण ऐसा लगता है कि, BJP ने चिराग को नीतीश कुमार पर हमले करने के लिए खुली छुट दे रखी है। जिसका उद्देश्य संभवतः यही है कि, इससे नीतीश कुमार पर दबाव बनाया जा सके और सीट बँटवारे के दौरान JDU को कम सीटों पर निपटा कर नीतीश कुमार के वर्चस्व को समाप्त किया जा सके। 

यह स्क्रिप्ट किसी और की नहीं बल्कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दिमाग की  है। ऐसा लगता है कि, इस रणनीति को अमित ने 2019 के लोसभा चुनावों के दौरान ही लिख दिया था। अब इस रणनीति पर योजनाबद्ध तरीके से अमल किया जा रहा है। सिर्फ चिराग पासवान को छूट देना ही नहीं बल्कि बिहार बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानन्द राय की साख को बढ़ाना भी इस रणनीति को सपष्ट करता है। अमित शाह की सहमति के बाद बिहार बीजेपी ने राज्य चुनाव संचालन समिति की घोषणा की जिसमें नित्यानंद राय को चुनाव संचालन समिति का प्रमुख बनाया गया है।

लोकसभा चुनावों के बाद मंत्रिमंडल गठन के समय जब नित्यानन्द राय को गृह राज्यमंत्री बनाया तभी यह इशारा मिल गया था कि अब बिहार में एक नया चेहरा उभर रहा है जिसे बाद में और बड़ी ज़िम्मेदारी भी दी जा सकती है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय को CAA, UAPA जैसे क़ानूनों में बदलाव के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्व देना उनकी छवि और बड़ा करने की ही एक रणनीति थी। अब उन्हें चुनाव संचालन समिति का प्रमुख बना कर बिहार के ओबीसी खासकर यादव वोटरों को पार्टी ने अपने साथ लेने की कोशिश की है। इन सभी कड़ियों को अगर जोड़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि, अमित शाह ने बड़ी बारीकी से चिराग पासवान को नीतीश कुमार पर निशाना साधने के लिए आगे किया है ताकि सीट बंटवारे में JDU को कम और लोजपा को बड़ा हिस्सा मिले।

JDU को कम सीटों पर उम्मीदवारी मिलने से नीतीश सीएम की दौड़ से बाहर भी हो सकते हैं। फ़िलहाल बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है और यह निश्चित रूप से उसे सीट बँटवारे में बड़ा हिस्से मिलेगा और नीतीश कुमार को अपनी सत्ता बचाने के लिए इस पर सहमत होना पड़ेगा। सीएम की कुर्सी पर दावा करने के लिए नीतीश कुमार के पास कोई नैतिक या गणितीय अधिकार नहीं होगा। ऐसे में नीतीश कुमार ऐसी सरकार नहीं चलाना चाहेंगे जहां पर उनकी पकड़ न हो। तब सीएम की कुर्सी के लिए बीजेपी द्वारा नित्यानन्द राय को आगे करने का बड़ा मौका होगा।

हालांकि यह रणनीति कितनी सफल होती है यह तो समय बताएगा लेकिन अगर यह सफल हो जाती है तो यह बिहार की जनता के लिए सोने पर सुहागा होगा।

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