सीरिया और भारत की गहराती दोस्ती तुर्की के लिए बना बुरा सपना, पश्चिम एशिया में तुर्की को लगातार मिल रहे हैं झटके

तुर्की- "ये दर्द काहे खत्म नहीं होता..."

सीरिया

कोरोना के बाद से भारत की विदेश नीति में व्यापक बदलाव आया है, चाहे वो चीन के खिलाफ हो या अमेरिका के साथ या फिर ASEAN देशों के साथ। अब भारत ने युद्ध ग्रस्त पश्चिमी एशिया में अपनी भागीदारी को मजबूत करने और तुर्की को बड़ा झटका देने के लिए सीरिया के भीतर पुनर्निर्माण में सहयोग की बात की है। भारत का यह फैसला न सिर्फ तुर्की को झटका देगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत का कद भी बढ़ेगा।

दरअसल, विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने गुरुवार को भारत-सीरिया के बीच मंत्रिस्तरीय बैठक की। इसमें उन्होंने सीरिया के उप विदेश मंत्री फ़ेसल मेकदाद के साथ चर्चा की। बैठक के दौरान, मुरलीधरन ने सीरिया के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण प्रयासों के लिए भारत के समर्थन की बात कही।

इस दौरान सीरिया के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के प्रयासों और द्विपक्षीय विकास परियोजनाओं में तेजी लाने की बात की गई। दोनों देशों के बीच निर्माण में सहयोग बढ़ाने के उपायों पर भी चर्चा हुई। मुरलीधरन ने बातचीत के दौरान कहा कि, सीरियाई संघर्ष का हल देश की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और एकता बनाए रखते हुए लोगों की वैध आकांक्षाओं के अनुरूप होगा।

भारत का रुख यह संकेत देता है कि, वह राष्ट्रपति बशर अल-असद के सत्ता में बने रहने की उम्मीद करता है। माना जाता है कि, सीरियाई राष्ट्रपति असद ने ही भारत को पुनर्निर्माण के प्रयासों में भूमिका निभाने के लिए कहा था। इस प्रयास में सीरिया को कई परियोजनाओं के लिए 265 मिलियन अमरीकी डालर का ऋण दिया गया है। वर्ष 2011 से लेकर अब तक भारत सीरिया में मानवीय सहायता ले लिए लगभग 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान कर चुका है।

इसके अलावा स्टील और ऊर्जा सेक्टरों के प्रोजेक्ट के लिए लाइन ऑफ क्रेडिट के तौर पर 1938।15 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। संघर्ष के बावजूद, भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने सीरिया में अभी भी अपना राजनायिक केंद्र जारी रखा है।

भारत और सीरिया ने युद्ध के वर्षों के दौरान भी अच्छे संबंध बनाए रखे थे। कई बार दोनों देशों से कई टीमें एक दूसरे का दौरा भी कर चुकी हैं। अगस्त 2016 में, भारत के विदेश राज्य मंत्री, एम जे अकबर सीरिया के राष्ट्रपति असद के साथ वार्ता करने के लिए दमिश्क गए थे। उसी दौरान परामर्शों के समय असद शासन ने नई दिल्ली को युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण प्रयासों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था।

सीरिया के साथ भारत के मजबूत होते सम्बन्ध काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सीरिया और तुर्की के बीच सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं हैं। सीरिया के गृहयुद्ध में तुर्की की भूमिका सबसे अधिक रही है। सऊदी अरब, कतर और तुर्की- ने कथित रूप से असद के खिलाफ उग्रवादियों का समर्थन किया था जिसमें अल-क़ायदा-समर्थित समूह जाबात अल-नुसरा, जैश अल-इस्लाम और अहरार अल-शाम शामिल हैं। तुर्की शुरुआती दिनों से ही सीरियाई युद्ध में शामिल रहा है। पिछले 9 वर्षों में, इसकी भूमिका राजनायिक और सैन्य दोनों रही है। तुर्की की राष्ट्रीय खुफिया संगठन MIT ने अपने क्षेत्र में सीरियाई सेना के बागियों को प्रशिक्षित किया और उन्हें हथियार प्रदान किए। वर्ष 2016 में, तुर्की के सशस्त्र बलों ने सीरिया में प्रवेश कर लोगों की सुरक्षा इकाइयों को निशाना बनाया।

वहीं साल 2018 में, तुर्की ने रूस के साथ सोची समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें वह डी-एस्केलेशन ज़ोन स्थापित करने पर सहमत हुआ। आज, तुर्की ने सीरिया के इदलिब शहर में 12 चौकियों पर अपनी सेना जुटा रखी है। तुर्की लगातार असद सरकार पर दबाव बनाता रहा है और इदलिब पर ऑपरेशन शुरू करने की धमकी देता रहा है। ऑपरेशन स्प्रिंग शील्ड के जरिये तुर्की ने पहले ही दो सीरियाई युद्धक विमानों को मार गिराया है और 2,000 से अधिक सीरियाई सैनिकों को मार डाला है। हालांकि अब सीरिया को रूस सीधे तौर पर मदद कर रहा है और उसने तुर्की के खिलाफ S 300 डिफेंस सिस्टम भी तैनात कर दिया है। इससे अब तुर्की की आक्रामकता को नियंत्रित किया गया है।

रूस पहले से ही सीरिया में अपनी मदद भेज रहा है, अब भारत के पुनर्निर्माण में शामिल होने से तुर्की को डबल झटका लगा है। सीरिया स्थिरता और शान्ति चाहता है लेकिन तुर्की इसमें सबसे बड़ा कांटा है। अब भारत की भूमिका सीरिया के लिए शुभ संकेत है।

भारत ने अपनी विदेश नीति में बदलाव किया है और दुश्मन को जवाब देने के लिए कूटनीतिक रास्ते को ज्यादा अहमियत दी है। चीन की गुंडई को भारत ने पहले ही सबक देना शुरू कर दिया था और अब तुर्की की बारी है।

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