चीनी प्रशासन तब फूली नहीं समा रही थी जब जापानी पीएम शिंजों आबे ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया। हालांकि, उनकी यह क्षणिक प्रसन्नता जल्द ही छूमंतर हो गई, जब आबे के उत्तराधिकारी योशिहीदे सूगा ने स्पष्ट कर दिया कि वह चीन के मित्र बिलकुल नहीं है। सच तो यह है कि सूगा अब दो कदम आगे बढ़कर दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंध सुधारना चाहते हैं, जो चीन के वर्तमान प्रशासन के लिए बिलकुल भी शुभ संकेत नहीं है।
चीन से बराबर खतरा होने के बावजूद जापान और कोरिया कई कारणों से एक नहीं हो पा रहे थे। पहला तो, शिंजों आबे को एक दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी के तौर पर माना जा रहा था, और दूसरा कोरिया पर विश्व युद्ध के दौरान जापान ने जो अत्याचार किए थे, उसके कारण जापान और कोरिया के सम्बन्धों में अभी भी दरार पड़ी हुई थी।
परंतु अब और नहीं। अब योशिहीदे सूगा ने कमान अपने हाथों में लेते हुए कोरिया और जापान के सम्बन्धों को सुधारने का जिम्मा ले लिया है। उन्होने कहा, “मैंने राष्ट्रपति मून [Moon Jae In] से कहा कि हम अपने सम्बन्धों को जैसे हैं, वैसे नहीं रख सकते। जापान और दक्षिण कोरिया, विशेषकर जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच समन्वय बेहद आवश्यक है, ताकि उत्तरी कोरिया समेत अन्य अहम मुद्दों से निपटा जा सके”। स्पष्ट है, जापानी पीएम सूगा चाहते हैं कि जापान और दक्षिण कोरिया के सम्बन्धों में जो कड़वाहट थी, उसे दूर कर आगे की सुध ली जाये।
अब चूंकि आबे सत्ता से बाहर हैं, इसलिए दक्षिण कोरिया की जापान के प्रति शंकायें काफी कम हुई है। परंतु ऐसा क्यों है? दरअसल, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच 7वीं सदी से लड़ाई चल रही है। लेकिन 1910 से 1945 के बीच कोरियाई भूमि पर जापान का कब्जा जापान और कोरिया के बीच के सम्बन्धों में खटास के पीछे एक प्रमुख कारण है। 1945 तक कोरियाई मजदूरों को जापानी कंपनियों के लिए ज़बरदस्ती काम करना पड़ता था। इतना ही नहीं, कई कोरियाई लड़कियों को यौन शोषण का भी सामना करना पड़ता था। इस एवज में एक दक्षिण कोरियाई कोर्ट ने 2018 में जापानी कंपनियों को कोरिया के मजदूरों को हरजाना देने का आदेश सुनाया, जो जापानियों को बहुत नागवार गुज़रा।
ऐसे में योशिहीदे सूगा ने ऐसे समय पर जापान की कमान संभाली है, जब जापान और दक्षिण कोरिया के बीच के संबंध बहुत बुरी तरह बिगड़ने के कगार पर थे। पर अब दोनों ही देश समझ गए हैं कि इस समय उनके सामने उनके ऐतिहासिक मुद्दों से भी बड़ी चुनौतियाँ है। यदि वे आपस में ही लड़ते रहे, तो चीन को दक्षिण चीनी सागर में पैठ जमाकर दोनों देशों के अस्तित्व को खतरे में डालने में तनिक भी समय नहीं लगेगा।
दोनों ही देशों को चीन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दोनों ही इस समय अमेरिका के परम मित्र है, और दोनों को ही उत्तरी कोरिया की अतिरिक्त चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। जापान और दक्षिण कोरिया को ऐसे में अपने सभी गिले शिकवे भुलाकर चीन की चुनौती से निपटने हेतु एकजुट होना चाहिए, और जापानी पीएम सूगा इसी दिशा में एक बेहतरीन प्रयास कर रहे हैं, जो चीन के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं होगी।