वैश्विक शांति के लिए आज के समय में दो देश, चीन और तुर्की सबसे बड़े चुनौती बने हुए हैं। इन दोनों से निपटने के लिए सभी देश अपने-अपने तरीके से रणनीतिक चाल चल रहे हैं। लेकिन एक तरफ भारत ने चीन की नाक मे दम कर रखा हैं तो वहीं फ्रांस अपनी पूरी ताकत के साथ तुर्की को हर मोर्चे पर मात देने की रणनीति पर काम कर रहा है। लीबिया और भूमध्य सागर में ग्रीस के साथ मिल कर तुर्की को चुनौती देने के बाद अब फ्रांस ने तुर्की की एक और कमजोर नस को दबाया है। इससे खलीफा बनने के सपने देखने वाले एर्दोगन बिलबिला उठे हैं।
दरअसल, फ्रांस ने तुर्की द्वारा उत्तरी इराक के अंदर लगातार हवाई हमले किए जाने के बाद अब इराक और कुर्दों को अपने पाले में करने की बेहद सोची समझी चाल चली है। तुर्की के लगातार हमलों से इराक भी परेशान हो चुका है। उसने परेशान हो कर अरब देशों से मदद मांगी थी। इसी का फायदा उठाने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन इराक पहुंच गए थे। उस दौरान न सिर्फ उन्होंने इराक़ी पीएम से मुलाक़ात की बल्कि इराक़ कुर्दिस्तान क्षेत्र के राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात की थी।
गौरतलब है कि, तुर्की ने कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) के ठिकानों के खिलाफ जून के मध्य से उत्तरी इराक में एक ऑपरेशन शुरू किया था, जिससे इराक नाराज हो गया था। Operation Claw-Tiger नाम से यह ऑपरेशन सिर्फ इराक़ी बॉर्डर पर ही नहीं चलाया जा रहा था बल्कि इराक की संप्रभुता को भंग करते हुए तुर्की की सेना कई किलोमीटर भीतर तक हवाई और ड्रोन हमले कर रही थी। पिछले ही महीने, उत्तरी इराक में एक तुर्किश हवाई हमले में इराक के सीमा रक्षक और उनके चालक दल के दो सदस्यों की मौत हो गई थी। इसे इराक की सेना ने खुले तौर पर उकसावे वाला हमला कहा था। इसके बाद इराक के विदेश मंत्रालय ने तुर्की के रक्षा मंत्री की यात्रा रद्द कर दी और तुर्की के राजदूत को तलब किया था। हालांकि तब भी अंकारा का कहना था कि, ड्रोन हमले में इराकी सैन्य अधिकारियों के मारे जाने के बाद भी सीमा पार से हमला बंद नहीं होगा।
यही नहीं, इसके बाद इराक ने अपने अरब सहयोगियों से आग्रह किया है कि वे तुर्की को इराकी क्षेत्र से अपनी सेना वापस लेने के लिए राजी करने में मदद करें, जहां वे कुर्द आतंकवादी संगठन PKK पर ड्रोन से हमले कर रहा है।
तुर्की के ड्रोन हमले में उत्तरी इराक के स्वायत्त कुर्द क्षेत्र में दो इराकी सैन्य अधिकारियों की हत्या के बाद यह टिप्पणी आई। उस दौरान इराकी विदेश मंत्रालय ने तीसरी बार तुर्की के राजदूत को अपना विरोध जताने के लिए तलब किया था और इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया था। विदेश मंत्री फवाद हुसैन ने तब कहा था कि, उन्होंने राजनयिक समर्थन की तलाश के लिए मिस्र, जॉर्डन, सऊदी, और कुवैती समकक्षों के साथ अरब लीग से भी संपर्क किया।
तुर्की के लगातार हमलों से न तो इराक़ी सरकार खुश है और न ही उत्तरी इराक़ में रहने वाले कुर्द। लगातार लोगों और सैनिकों के जान माल को नुकसान हो रहा है। यही नहीं, उस इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र में सरकार बनाने वाली Kurdistan Regional Government के खिलाफ भी दबाव बढ़ रहा है।
इसी मौके का फायदा उठाते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने इसी महीने इराक का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने इराक़ी पीएम Mustafa al-Kadhimi के साथ-साथ Kurdistan Regional Government के राष्ट्रपति Nechirvan Barzani से भी मुलाक़ात की।
French president Emmanuel Macron has landed in Baghdad for meetings with top Iraq, KRG officials —state media https://t.co/fI1YUswjPh
— Rudaw English (@RudawEnglish) September 2, 2020
इस दौरान उन्होंने एक संप्रभु इराक का समर्थन किया और कहा कि, इसकी मुख्य चुनौतियां जैसे इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी और इराक में विदेशी हस्तक्षेप हैं। विदेशी हस्तक्षेप से उनका सीधा मतलब तुर्की से था। उन्होंने कहा, “हम इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे लेकिन यह एक समझौते और प्रोटोकॉल के संदर्भ में होना है जो इराक की संप्रभुता का सम्मान करता है।” बार-बार इराक की संप्रभुता की बात को सामने लाना ही उनके तुर्की के खिलाफ इराक़ी सरकार के समर्थन को दर्शा रहा था। इसके बाद मैक्रोन KRG के राष्ट्रपति Nechirvan Barzani से भी मिले।
बता दें कि, कुछ ही दिनों पहले कोरोना और युद्ध की स्थिति के कारण उत्पन्न हालात पर फ्रांस ने ईराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र को सहायता, चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करने का आह्वान किया था। फ्रांस को यह पता है कि, तुर्की इन क्षेत्रों पत्र लगातार हमले करता है। अब वहाँ के राष्ट्रपति से मिल कर उन्होंने तुर्की को यह संदेश भेजा था कि वे KRG के समर्थन में आ चुके हैं।
फ्रांस द्वारा इराक और वहाँ के कुर्दों को अपने पाले में करते देख तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने आनन-फानन में KRG के राष्ट्रपति Nechirvan Barzani को मिलने के लिए आमंत्रण भेज दिया। मुलाक़ात के दौरान तुर्की और KRG के साथ संबंधों पर चर्चा की, विशेष रूप से PKK के खिलाफ संयुक्त लड़ाई पर। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि, दुनिया भर जैसे सीरिया, तुर्की, और इराक में कुर्दों की हत्या करने वाले एर्दोगन इराक़ी कुर्दों को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहे हैं। तुर्की लगातार PKK समूह पर हमले की आड़ में KRG क्षेत्र के इराकी कुर्दों पर हमला कर रहा है जिससे कारण वे गुस्से में हैं। KRG के राष्ट्रपति बरज़ानी को हाल ही में अंकारा के साथ संबंध बढ़ाने के कारण PKK द्वारा धमकी भी दी गई थी।
बता दें कि PKK और KRG पर शासन करने वाली Kurdistan Democratic Party (KDP) और Patriotic Union of Kurdistan (PUK) – सभी कुर्द अधिकारों का समर्थन करने के लिए आंदोलनों से निकले हुए विभिन्न समूह हैं, लेकिन दशकों से अपनी लड़ाई की रणनीति और विचारधारा के कारण एक दूसरे के विरोधी रहे हैं।
अभी KRG के राष्ट्रपति के साथ फ्रांस के राष्ट्रपति की मुलाक़ात से तुर्की शांत भी नहीं हुआ था तभी फ्रांस ने अपने देश की पाठ्यपुस्तकों में कुर्दों पर पाठ शामिल करने का फैसला कर लिया। इस पर तुर्की और भड़क गया और फ्रांस के कदम का विरोध किया।
Statement of the Spokesperson of the Ministry of Foreign Affairs, Mr. Hami Aksoy, in Response to a Question Regarding the Inclusion of the Separatist Ideology of the PKK/YPG in a Senior High School History-Geography Textbook to be Taught in France https://t.co/sj8Y27LjY6
— Turkish MFA (@MFATurkiye) September 7, 2020
तुर्की आज भी कुर्दिश विद्रोह को महसूस करता है और उसे ऐसा लगता है कि, सभी कुर्द एक साथ मिल कर तुर्की के खिलाफ आ जाएंगे इसलिए Barzani को अपने पाले में कर लिया जाए। यह फिर से एक विडंबना ही है क्योंकि, जब KRG ने 2017 में स्वतंत्रता की मांग उठाई थी तब एर्दोगन ने इसका विरोध किया था। लेकिन अब वह KRG और PKK के बीच मतभेदों का इस्तेमाल कर फ्रांस के खिलाफ रणनीतिक बढ़त चाहते हैं। फ्रांस द्वारा इराक के साथ संबंध बढ़ाने के बाद तुर्की बुरी तरह से बिलबिलाया हुआ है।
तुर्की फ्रांस से लगातार मात खा रहा है। पहले सीरिया में और उसके बाद पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में तटीय गैस अधिकारों के लिए दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनी थी। फ्रांस को अन्य देशों का भी साथ मिल रहा है परंतु तुर्की अकेला पड़ चुका है। यही कारण है कि, अब फ्रांस द्वारा इराक और KRG को अपने पाले में करने से तुर्की की चिंता और बढ़ चुकी है और वह किसी भी तरह से KRG के साथ अपने रिश्तों को सुधारना चाहता है।