आज के दिन विश्वकर्मा पूजा के अलावा हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिवस है, और उनकी आयु अब 70 वर्ष हो चुकी है। दिलचस्प बात तो यह है कि आज ही के दिन सरदार पटेल के नेतृत्व में भारतीय सेना ने कासिम रिजवी और उसके रजाकारों सहित हैदराबाद की सेना को धूल चटाते हुए ओपेरेशन पोलो के अंतर्गत हैदराबाद को निज़ाम शाही के अत्याचारी शासन से मुक्त कराया और हैदराबाद प्रांत का सफलतापूर्वक भारत में विलय भी हुआ। इसके अलावा भी कई समानताएँ, जो यह सिद्ध करती हैं कि सरदार पटेल के राजनीतिक सूझबूझ के यदि कोई नेता वास्तव में उत्तराधिकारी बनने योग्य है, तो वे है नरेंद्र मोदी।
पीएम मोदी और सरदार पटेल में गुजराती होने के अलावा एक और समानता है – राष्ट्र के लिए अटूट समर्पण। जब देश स्वतंत्र हुआ, तो वह सिर्फ नाम के लिए स्वतंत्र हुआ, क्योंकि न केवल अखंड भारत का विभाजन हुआ था, अपितु नए भारत में ही 565 रियासतें एक स्वतंत्र देश बनने को तैयार थीं। ऐसे में सरदार पटेल, जिन्हें गृह मंत्रालय का पदभार सौंपा गया थे, नए भारत को एक करने और उसे शत्रुओं से बचाने के लिए आगे आए। उन्हें साथ मिला वीपी मेनन जैसे विश्वसनीय प्रशासनिक अफसर का, और दोनों ने मिलकर नवंबर 1947 तक ही देश के लगभग 500 से अधिक रियासतों को Instrument of Accession यानि विलिनीकरण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए मना लिया।
इसी भांति जब पीएम मोदी ने देश की सत्ता मिली, तो भारत की छवि काफी रसातल में थी। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण अपने चरम पर था, अर्थव्यवस्था लगभग रामभरोसे थी, और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को कोई विशेष स्थान भी नहीं था। परंतु नरेंद्र मोदी को यह स्वीकार नहीं था, और 3 वर्षों में उन्होंने विदेश नीति का ऐसा कायाकल्प किया, कि आज जब 2020 में चीन भारत पर हमला करने की फिराक में है, तो भारत के साथ लगभग पूरा विश्व खड़ा है। जो अमेरिका और रूस एक समय एक दूसरे से आँख भी नहीं मिलाते थे, वे भी आज भारत के समर्थन में खड़े हैं।
जब शिवराज सिंह चौहान ने 2013 में कहा था कि पीएम मोदी के कार्यशैली की तुलना सरदार पटेल से की थी, तो कई लोगों ने उनका उपहास उड़ाने का प्रयास किया था। लेकिन आज उनकी कही बातें पूर्णतया सत्य सिद्ध हुई है।
पीएम मोदी और सरदार पटेल में एक और समानता यह भी है कि दोनों ने कभी भी अपने संस्कृति से कोई समझौता नहीं किया। जब जूनागढ़ को स्वतंत्र कर सफलतापूर्वक भारत में विलय कराया गया, तो सरदार पटेल ने जूनागढ़ प्रांत में स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की इच्छा जताई। भले ही वे सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्मित स्वरूप को देखने के लिए जीवित नहीं रहे, परंतु उन्होंने ही इसके पुनर्निर्माण की नींव किया। इस निर्णय का जवाहरलाल नेहरू ने बहुत विरोध किया, और जैसे ओपेरेशन पोलो के जरिये हैदराबाद को मुक्त कराने में उन्होने बाधा डाली थी, वैसे ही वे सोमनाथ मंदिर के निर्माण में भी बाधाएँ डाल रहे थे।
इसी भांति जबसे नरेंद्र मोदी सत्ता में आये, तब उन्होंने राम मंदिर के निर्माण की स्वीकृति के लिए वैधानिक मार्ग को बढ़ावा देने में एक छोटा सा, पर अहम योगदान दिया। परंतु जैसे नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार में बाधाएँ डाली, वैसे ही काँग्रेस ने कदम कदम पर श्री रामजन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण में पर बाधाएँ डालने का प्रयास किया। काँग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने तो राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट को अनिश्चितकाल तक रोकने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर भी लगाया, अब ये और बात है कि वे इसमें बुरी तरह असफल हुए।
फाइनेंशियल एक्स्प्रेस में सरदार पटेल के ऊपर लिखे लेख में सीमा चिश्ती ने सरदार पटेल के हिन्दू आस्था पर टिप्पणी करते हुए ये भी लिखा था कि सरदार पटेल उद्योगपतियों के काफी हितैषी थे। वे गलत भी नहीं है क्योंकि सरदार पटेल नेहरू के ठीक उलट उद्योगपतियों और श्रमिकों के बीच समन्वय बनाना चाहते थे। इसी तरह नरेंद्र मोदी नेहरुवादी समाजवाद की बेड़ियों से भारत के उद्योगों को मुक्त कराना चाहते हैं। ऐसे में अगर राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से यदि नरेंद्र मोदी को सरदार पटेल का उत्तराधिकारी कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।