पूर्वी यूरोप से एक अच्छी खबर आई है जो ना सिर्फ वहां की राजनीति में स्थिरता के लिए अच्छे संकेत देती है, बल्कि भारत के परम मित्र इज़रायल के लिए भी अच्छा समाचार है। पूर्वी यूरोप का एक देश है सर्बिया। सर्बिया का एक क्षेत्र है कोसोवो जिसने साल 2008 में सर्बिया से स्वतंत्रता हासिल कर ली थी। हालांकि भारत, रूस, चीन सहित दुनिया के कई देश आज भी कोसोवो को अलग देश नहीं मानते हैं। लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों ने कोसोवो को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता भी दी है और कोसोवो IMF सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सदस्य भी है।
दोनों देश धार्मिक रूप से तो अलग हैं ही साथ ही कोसोवो के लोग नृजातीय रूप से भी सर्बिया से अलग हैं। इन्हीं अलगावों के कारण कोसोवो और सर्बिया के बीच 1998-99 के दौरान युद्ध भी हुआ था। यह मुद्दा रूस और अमेरिका के सहयोगियों विशेष रूप से EU के लिए, लंबे समय तक प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहा था। इस कारण दोनों पक्ष कभी किसी समझौते पर राजी नहीं हुए।
किंतु राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता के कारण कोसोवो एवं सर्बिया ने अपने वर्षों पुराने झगड़े को भुलाकर रिश्तों को सामान्य करने पर समझौता किया है। हालांकि सर्बिया ने अब भी कोसोवो को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। लेकिन उसने कोसोवो के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करने पर समझौता कर लिया है। वैश्विक राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि, सर्बिया का यह निर्णय रूस की सहमति के बाद ही हुआ है। रूस और सर्बिया पारंपरिक रूप से मित्र रहे हैं और कोसोवो के मुद्दे पर रूस ने वैश्विक मंच पर हमेशा सर्बिया का साथ दिया है। बड़े परिदृश्य में देखने पर यह बात समझ में आती है कि अमेरिका रूस को अपने पक्ष में करने की नीति पर तेजी से काम कर रहा है जिसमें वह सफल भी हो रहा है। सर्बिया और कोसोवो का यह समझौता राष्ट्रपति ट्रंप की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
वहीं इजरायल की बात करें तो कोसोवो ने इजरायल को देश के रूप में मान्यता दे दी है। बदले में इजरायल भी उसे स्वतंत्र मुल्क की मान्यता देगा। कोसोवो एक मुस्लिम बहुल देश है इसलिए इसराइल को पूर्ण मान्यता देखकर उसने मुस्लिम जगत में इसराइल की स्वीकृति बढ़ाने में योगदान दिया है। हालांकि इजरायल द्वारा कोसोवो को मान्यता देना सर्बिया को स्वीकार नहीं होना चाहिए था। पर आश्चर्यजनक रूप से सर्बिया ने इस पर अपनी आपत्ति नहीं जताई। इसके बदले सर्बिया ने यह फैसला किया है कि, वह अपने इजराइली दूतावास को तेल अवीव से हटाकर जेरूसलम में स्थानांतरित करेगा।
भारत और यूरोप सहित दुनिया के तमाम देश तेल अवीव को ही इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देते हैं। इजरायल के अनुरोध के बाद भी जेरूसलम को उसकी राजधानी के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। इसका कारण यह है कि जेरूसलम मुस्लिम जगत के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है और इस पर कब्ज़ा करने के लिए अरब देशों और इजरायल में युद्ध भी हुए हैं। यहां तक कि इजरायल का सबसे विश्वसनीय सहयोगी होने के बाद भी अमेरिका तेल अवीव को ही इजरायल की राजधानी के रूप में स्वीकार करता था।
पर ट्रंप के आने के बाद अमेरिका ने अपनी नीति में बदलाव करते हुए अपने दूतावास को तेल अवीव से जेरूसलम में स्थानांतरित कर दिया था। अब सर्बिया द्वारा भी जेरुसलम में दूतावास का स्थानांतरण करना इजरायल के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सर्बिया ऐसा करने वाला प्रथम यूरोपीय देश है। इस कारण से अब अन्य यूरोपीय देशों पर भी यह कदम उठाने का दबाव बढ़ेगा।
ये सभी घटनाक्रम बताते हैं कि, सर्बिया और कोसोवो की विदेश नीति एक समान होती जा रही है और आर्थिक रिश्तों की मजबूती के बाद दोनों देशों के रिश्ते सामान्य होने की संभावना बढ़ गई है। ये सभी घटनाक्रम कोसोवो, सर्बिया, अमेरिका और इजरायल के लिए एक win-win situation है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप मध्य यूरोप से लेकर पूर्वी यूरोप तक अपनी नीति को सफलतापूर्वक लागू कर रहे हैं और वैश्विक शांति की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। यही कारण था कि, सर्बिया के राष्ट्रपति Aleksander Vucic ने न सिर्फ ट्रंप की तारीफ की बल्कि उन्हें सर्बिया आने का निमंत्रण भी दिया।
इन सब देशों के अतिरिक्त यह रूस के लिए भी अच्छा संकेत है। यह बताता है कि, अमेरिका रूस के सहयोगियों के साथ शांति स्थापना हेतु प्रतिबद्ध हो चुका है। अतः इस बात की संभावना बढ़ गई है कि, आने वाले समय में अमेरिका और रूस के रिश्ते भी सामान्य होंगे। रूस लंबे समय तक इस क्षेत्र में सबसे प्रभावी शक्ति था। लेकिन रूस की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाकर चीन मध्य यूरोप तथा पूर्वी यूरोप में लगातार प्रभावी होता जा रहा है जो रूस के लिए चिंता का विषय है। चीन और रूस का टकराव हाल ही में बेलारूस में सामने आया था।
ऐसे में यदि अमेरिका की हस्तक्षेप से इस क्षेत्र की अस्थिरता कम होती है और चीन के हस्तक्षेप के अवसर सीमित होते हैं तो यह रूस को फायदा पहुंचाएगा। इन समझौतों के बाद ऐसा लगता है कि, आने वाले सालों में सर्बिया और कोसोवो अपने विवादों का समाधान कर लेंगे। यह सभी बदलाव वैश्विक शांति के लिए अच्छे संकेत हैं।