अमेरिकी चुनाव से ठीक पहले भारत और अमेरिका के बीच एक “Mini trade deal” पर समझौता हो सकता है। देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिका के उप-विदेश सचिव स्टीफ़न बाईगुन ने इसकी ओर इशारा किया है। बीते सोमवार को US India Strategic and Partnership Forum यानि USISPF में बोलते हुए स्टीफ़न ने कहा “पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच बेहद अच्छी दोस्ती है, और ये दोनों व्यापार समझौते को पक्का करना चाहते हैं। इस साल चुनावों से पहले एक mini trade deal होने के पूरे-पूरे चांस हैं।’’ बता दें कि भारत और अमेरिका पहले ही रणनीतिक साझेदारी के तहत वैश्विक सप्लाई चेन को “दुरुस्त” करने और चीन पर आर्थिक हमला बोलने के लिए साथ मिलकर काम करने का ऐलान कर चुका हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब भविष्य में किसी भी देश के कूटनीतिक रिश्तों के आधार पर ही उसके आर्थिक रिश्तों की रूपरेखा तैयार होगी, और कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े देश आर्थिक रूप से भी पिछड़ जाएँगे।
20वीं सदी में दुनिया के जिन देशों ने पूंजीवाद को गले लगाया, आज वे देश समृद्ध नज़र आते हैं। जबकि जिन देशों ने कम्यूनिज़्म और Non-Alignment का रास्ता अपनाया, वे आज या तो गरीब हैं या फिर वे मिडिल-इनकम देश हैं। 90 के दशक में सोवियत के टूटने के बाद वैश्विक सप्लाई चेन में उथल-पुथल देखने को मिली और वैश्वीकरण का सबसे ज़्यादा फायदा ब्राज़ील, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को मिला। वैश्वीकरण का फायदा उठाकर अमेरिकी बाज़ार की सहायता से चीन आर्थिक सुपरपावर बन गया।
वर्ष 2010 के आपस दुनिया में वैश्वीकरण का विरोध होना शुरू हुआ। आज कोरोना के साथ यह विरोध और भी ज़्यादा मजबूत हो गया है। दोबारा दुनिया की सप्लाई चेन में उथल-पुथल देखने को मिल रही है, और पहले से कई गुना ज़्यादा आक्रामक चीन की वजह से दुनिया के सभी लोकतान्त्रिक राष्ट्र इस कम्युनिस्ट देश के खिलाफ साथ आने को मजबूर हो गए हैं।
चीन शांति के विचार को त्यागकर “wolf warrior diplomacy” अपना चुका है। इसके कारण अब दुनियाभर के देश अपनी सप्लाई चेन से चीन को बाहर करने का मन बना चुके हैं। बीजिंग अब किसी का “दोस्त” नहीं रहा है, और बढ़ती चीन की आक्रामकता ने यह साबित कर दिया है कि सप्लाई चेन में चीन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। drugs के मामले में कनाडा और wine और barley के मामले में ऑस्ट्रेलिया यह पहले ही देख चुका है।
आज के समय चीन विरोधी गुट का नेतृत्व कर रहा अमेरिका पहले ही अपने साथियों के साथ मिलकर चीन को सप्लाई चेन से बाहर करने पर काम कर रहा है। इसी वर्ष 30 अप्रैल को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एक बयान जारी करते हुए कहा था -“अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि सप्लाई चेन को दुरुस्त किया जा सके। हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द वैश्विक सप्लाई चेन दुरुस्त हो और हम सभी देश अपनी पूरी क्षमता पर काम कर सकें, ताकि किसी भी देश के सामने दोबारा कभी ऐसी स्थिति पेश न हो। इसका एक उदाहरण हमें भारत में देखने को मिला जब भारत ने कोविड के मरीजों के उपचार के संबंध में ज़रूरी दवाइयों के एक्सपोर्ट पर से बैन हटाकर उन्हें दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया।’’
अब जब वैश्विक सप्लाई चेन में तेजी से बदलाव किए जा रहे हैं, तो इसमें भारत को बड़ी भूमिका मिलना तय है। भारत एक युवा देश है, एक लोकतान्त्रिक देश है और सबसे बड़ी बात, भारत एक बड़ा मार्केट है। जिस प्रकार 90 के दशक के बाद चीन तेजी से अपना आर्थिक विकास करने में सक्षम हुआ था, उसी प्रकार अब भारत के लिए अवसर के दरवाजे खुलने वाले हैं। इस वर्ष 8 नवंबर को होने वाले अमेरिकी चुनावों से पहले-पहले होने वाली अमेरिका-भारत की mini trade deal इसी दिशा में एक अहम कदम साबित होगी।
चीन के साथ भिड़ंत के दौरान भारत में कई अमेरिकी कंपनियों ने निवेश किया है। कई अमेरिकी फैक्ट्रियाँ चीन से अमेरिका में विस्थापित होने का ऐलान कर चुकी हैं। जैसे ही अमेरिका-भारत के बीच कोई TRADE DEAL पक्की होती है, तो चीन से भारत में कंपनियों का पलायन और तेजी पकड़ सकता है। दुनियाभर में भारत के मजबूत होते रिश्तों की वजह से अब भारत वैश्विक सप्लाई चेन में भी बड़ी भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है।