भारत ने जापान के साथ मिलकर रूस के Far East में निवेश को विस्तार देने की बात कही है जो कि रूस के लिए बेहद फायदेमंद होगा। रूस लगातार इस निवेश के लिए भारत को सुझाव देता रहा है। भारत और जापान का यह कदम चीन के लिए एक झटका होगा क्योंकि चीन रूस के व्लादिवोस्टॉक पर दावा ठोककर फार ईस्ट और आर्कटिक महासागर में रूस के लिए मुसीबत खड़ी करना चाहता है जिसके चलते भारत और जापान साथ मिलकर रूस के इस मिशन में उसके सामने खड़े हो गए हैं।
दरअसल फिक्की के एक वर्चुअल इवेंट को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, ‘रूस के Far East में आर्थिक निवेश की बेहतरीन संभावनाएं हैं। भारत पहले भी उस क्षेत्र में निवेश के संबंध में अपनी दिलचस्पी दिखाता रहा है और उस क्षेत्र में हमने अपनी साझेदारी और राजनीतिक कदम काफी मजबूती से आगे बढ़ाएं है।’एस जयशंकर का ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब चीन द्वारा व्लादिवोस्टॉक में दावा ठोकने के बाद मास्को ने Far East में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा दी है।
चीन का इलाके में सबसे ज्यादा निवेश
दरअसल, कम्युनिस्ट विचारधारा होने के बावजूद चीन और रूस एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। रूस हमेशा से ही अपने यहां ज्यादा से ज्यादा निवेश की नीति पर चलता रहा है। ऐसे में चीन ने रूस के Far East के उन इलाकों में सबसे ज्यादा निवेश किया है जहां पर प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। चीन इस इलाके में लगातार इन्वेस्टमेंट कर रहा है जिसके चलते वहां पर उसका प्रभाव काफी बढ़ गया है।
TFI POST की ही एक खबर के अनुसार चीन अब अपनी आक्रमक नीति के चलते रूस के ही व्लादिवोस्टॉक पर अपना दावा भी ठोक चुका है। इस क्षेत्र में जिस तरह से लगातार चीनियों की तादाद बढ़ रही है उसने रूस को अधिक परेशान कर रखा है जिसके चलते ही रूस ने वहां रूसी नागरिकों को नौकरियां देना अनिवार्य कर दिया था।
रूस को सता रहा डर
शक्तिशाली मुल्क होने के बावजूद जिस तरह से चीन का रूस के इन इलाकों में प्रभाव बढ़ रहा है ये रूस के लिए बेहद चिंताजनक है। इस इलाके में बड़ी मात्रा में कच्चा, तेल, सोना और हीरे के संसाधन है। रूस इसे किसी भी कीमत पर रोकना चाहता है जिसके चलते वो भारत को इस इलाके में लगातार इन्वेस्टमेंट के लिए प्रस्ताव देता रहा है। रूस भारत के इन्वेस्टमेंट के जरिए चीन को क्षेत्र में सीमित करना चाहता है। रूस भारत से निवेश के अलावा उस क्षेत्र में भारतीय मजदूरों की बड़ी तादाद भी लाना चाहता हूं जिससे चीनियों की मौजूदगी के कारण बदल चुके जनसंख्या समीकरण चुनौती दी जा सके।
भारत पहले ही कर चुका है बड़ा निवेश
वहीं कुछ ऐसे ही रूस ने जापान को भी निवेश के लिए लुभाने केप्रयत्न किए हैं। ऐसे में भारत, जापान और रूस इस क्षेत्र में निवेश को संतुलित करने के लिए एक साथ आ गए हैं जिससे फार ईस्ट के इलाके में बढ़ते चीन के प्रभाव पर लगाम लगाई जा सके। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्लादिवोस्टॉक में भारत-चीन द्विपक्षीय सम्मेलन के दौरान इंडिया एक्ट फार ईस्ट नीति के तहतफार ईस्ट में डेवेलपमेन्ट प्रोजेक्ट्स के लिए करीब 1 बिलियन के साथ तेल के लिए 50 हजार करोड़ और गैस के लिए 35 हजार करोड़ के 50 बड़े समझौतों का ऐलान किया था। जापान और भारत ने अभी अधिकारिक रूप से तो कोई बात नहीं कही है लेकिन दोनों देशों का ये प्रस्ताव रूसी राष्ट्रपति को बेहद पसंद आने वाला है।
चौतरफा घिरेगा चीन
अब भारत जापान के साथ मिलकर इस क्षेत्र में रूस को मजबूती प्रदान करने के साथ ही चीन को कमजोर करने का मास्टरस्ट्रोक खेलेगा। एक तरफ नई दिल्ली मास्को और जापान के साथ मिलकर Far East चीन को सबक सिखाने की नीति पर खुलकर सामने आए हैं तो दूसरी ओर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रूसी सेना की बढ़ती मौजूदगी भारत को चीन के खिलाफ समर्थन और मजबूती दे रही है। वहीं साउथ चाइना क्षेत्र में पहले ही जापान, भारत, चीन की मुसीबतें बढ़ा रहे हैं और जिससे कूटनीति के खेल में चीन चारों तरफ से घिर चुका है।