आखिर वही हुआ, जिसका अंदेशा काफी दिनों से था। केन्द्रीय खाद्य उद्योग प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल के त्यागपत्र के कुछ दिनों बाद अपने 23 वर्ष के संबंधों पर पूर्णविराम लगाते हुए शिरोमणि अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानि NDA के साथ आधिकारिक रूप से अपने संबंध तोड़ लिएअकाली दल ने यह निर्णय वर्तमान कृषि विधेयकों पर भाजपा की ‘बेरुखी’ और ‘किसानों के हक’ को ध्यान में रखते हुए लिया है। लेकिन जिन्हें भी ये लगता है कि अकाली दल के एनडीए छोड़ने से भाजपा और एनडीए मुसीबत में है, वो इस समय बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं। .
नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, “अपने इस निर्णय से पहले सुखबीर सिंह बादल ने शुक्रवार को मोदी सरकार पर निशाना साधा था। सुखबीर सिंह बादल ने कहा था, “द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान को एक एटॉमिक बम (परमाणु बम) से हिला दिया था। अकाली दल के एक बम ने (हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिला दिया है। दो महीनों से कोई भी किसानों पर एक शब्द नहीं बोल रहा था लेकिन अब 5-5 मंत्री इस पर बोल रहे हैं”।
परंतु सुखबीर सिंह बादल इतने पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “जब ये अध्यादेश कैबिनेट में लाए गए थे, तब भी हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री के रूप में कई बार किसानों की भावनाओं के अनुसार बिलों को बदलने के लिए कहा था, लेकिन हमारी बात नहीं मानी गई”। बता दें कि किसानों की बात ‘अनसुनी’ किये जाने का हवाला देते हुए हरसिमरत कौर बादल ने कुछ दिनों पहले एनडीए को बतौर खाद्य उद्योग एवं प्रसंस्करण मंत्री अपना इस्तीफा सौंपा था।
अकाली दल के एनडीए छोड़ने से राजनीतिक गलियारों और मीडिया में काफी गहमागहमी मची हुई है। दरअसल कृषि विधेयक से दलाली और आढ़तियों के मायाजाल पर केंद्र सरकार जो प्रहार कर रही है, उससे अकाली दल को काफी खतरा महसूस होने लगा, और लाख कोशिश एवं विपक्ष के जरिये भारत बन्द करवाने का कार्यक्रम भी भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए को अपने इरादों से डिगा नहीं पाया। इसलिए अपनी बात न मनवा पाने की खुन्नस में शिरोमणि अकाली दल एनडीए छोड़ रही है, जो भाजपा के लिए एक तरह से अच्छी खबर ही है।
ऐसा कैसे? दरअसल, अकाली दल के साथ संबंध कायम रख भाजपा को असफलता के सिवा और कुछ नहीं मिला है। जैसे आंध्र प्रदेश में तेलुगू देसम पार्टी के साथ गठबंधन करना भाजपा के लिए अभिशाप से कम नहीं था, वैसे ही पंजाब में वही भूमिका शिरोमणि अकाली दल निभा रही थी। ऐसे में शिरोमणि अकाली दल के एनडीए छोड़ने से भाजपा को एक बोझ से ही मुक्त मिली है। वास्तव में शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए छोड़कर कोई एहसान नहीं किया है, बल्कि भाजपा को ही पंजाब में खुलकर खेलने का अवसर दिया है। यह बात कांग्रेस पार्टी भी भली भांति जानता है, तभी उसने आश्चर्यजनक रूप से शिरोमणि अकाली दल का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया है। जहां मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि अकाली दल ने एनडीए छोड़ कोई नैतिकता नहीं दिखाई है, तो वहीं कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा ने कहा, “ये तो वही बात हो गई कि उंगली कटवाकर कोई अपने आप को शहीद कहलवाने चला है”।
शिरोमणि अकाली दल वैसे भी कोई दूध की धुली नहीं है। यदि पंजाब की दुर्गति में कांग्रेस पार्टी ने एक अहम भूमिका निभाई है, तो शिरोमणि अकाली दल भी कोई पीछे नहीं रही है। हाल ही में ड्रग्स मामले में भी SAD का कनेक्शन सामने आया था, कई मामलों में ये पार्टी पंजाब की जनता की उम्मीदों पर विफल साबित हुई है। अकाली दल ने पंजाब की दुर्गति करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी जिस कारण भाजपा के लिए यहाँ अपनी पकड़ को मजबूत करना नामुमकिन सा हो गया था। चूँकि अकाली दल भाजपा की सहयोगी पार्टी थी उसे भी पंजाब की जनता का आक्रोश झेलना पड़ रहा था। यही कारण था कि 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में NDA को बुरी हार का सामना करना पड़ा रहा और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी NDA को केवल 4 सीटें ही जीत सकी थी।
लेकिन शिरोमणि अकाली दल के साथ छोड़ने से भाजपा ने बिना तीर चलाये ही निशाने भेद लिए हैं। एक तो अब वह पंजाब में अपनी अलग पहचान बना सकता है, और दूसरा, पंजाब में अब द्विपक्षीय नहीं, चतुष्कोणीय यानि चार मोर्चों का मुक़ाबला होगा, और तीन से अधिक पक्षों में जब चुनावी मुक़ाबला होता है, तो भारतीय जनता पार्टी को सबसे अधिक फायदा होता है। ऐसे में अब 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी को पंजाब में अपना आधार स्थापित करने के लिए एक बढ़िया अवसर मिला है, और इसे भारतीय जनता पार्टी को हाथ से बिलकुल नहीं जाने देना चाहिए।