लगता है 2020 खत्म होते होते एक और पार्टी सत्ता से बेदखल होने वाली है। पहले से ही वुहान वायरस से निपटने में लापरवाही करने और सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु एवं पालघर हत्याकांड में सीबीआई जांच का विरोध करने के लिए बदनाम शिवसेना ने अपने नेतृत्व वाली बृहन्नमुंबई नगरपालिका यानि बीएमसी द्वारा अभिनेत्री कंगना रनौत के ऑफिस को ध्वस्त करने के लिए बुलडोज़र तक चलवा दिया। फिलहाल ऑफिस को ध्वस्त करने के निर्णय पर कंगना रनौत के अधिवक्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट से स्टे नोटिस ले लिया है, परंतु इस पूरे प्रकरण के साथ शिवसेना ने अपनी सरकार गिरवाने का पूरा प्रबंध कर लिया है।
दिलचस्प बात तो यह है कि इस पूरे प्रकरण पर शरद पवार या फिर एनसीपी के कद्दावर नेताओं में से बहुत कम लोगों ने इस विषय पर अपना मुंह खोला है। अब शरद पवार ने बीएमसी द्वारा बिना किसी ठोस प्रमाण के कंगना रनौत के ऑफिस के विध्वंस पर सवाल उठाया है। शरद पवार ने कहा, “ऐसे बहुत अवैध निर्माण हैं, जिनपर बीएमसी ध्यान नहीं देता। केवल कंगना पर ही कार्रवाई क्यों?” शरद पवार का ये सवाल राजनीति में उनकी परिपक्वता को दिखाता है जो सही मौका देखकर ही कंगना के पक्ष में सामने आये हैं। शरद पवार उद्धव ठाकरे की तरह संयोग से नेता नहीं बने हैं, बल्कि एक माँझे हुए राजनीतिज्ञ है। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में जब सीबीआई जांच की मांग का शिवसेना विरोध कर रही थी और सुशांत सिंह राजपूत के परिवार को अपमानित कर रही थी, तब भी शरद पवार और उनके सगे संबंधी इस मामले पर कुछ भी अनाप शनाप बोलने से दूर रहे।
एक तरफ शरद पवार ने मुंबई पुलिस की प्रतिबद्धता पर भरोसा जताया, तो दूसरी तरफ उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें सीबीआई की जांच से कोई समस्या नहीं है। रही सही कसर तो शरद पवार के पोते और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार ने पूरी कर दी, जिन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंपे जाने का पक्ष लिया।
परंतु बात यहीं पर नहीं रुकती। शिवसेना ने जिस प्रकार से कंगना रनौत का घेराव किया है, और बॉलीवुड के एलीट वर्ग को बचाने के लिए जिस प्रकार से बीएमसी ने बदले की भावना से कंगना के ऑफिस पर कार्रवाई की है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि शिवसेना कितनी बुरी तरह बौखलाई हुई है। इसी बौखलाहट में शिवसेना ने आत्मघाती कदम उठाया है, यहां तक कि कई राजनीतिक पार्टियां भी एस कृत्य के खिलाफ सामने आई हैं। अब यही कदम उद्धव सरकार की लोकप्रियता को कम करने में गहरा प्रभाव डालेगा। शिवसेना पहले ही सेक्युलर पार्टी बनने की वजह से महाराष्ट्र की जनता के निशाने पर थी, और अब बदले की राजनीति में उद्धव ठाकरे ने अपनी पावर का दुरूपयोग किया है जो उद्धव की सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं है।
इसके अलावा एक और बात है, जिसके कारण इस पूरे प्रकरण पर एनसीपी मौन साधे हुए थी। एनसीपी पिछड़े लोग, अल्पसंख्यकों और नारिवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टी मानी जाती है, और कंगना प्रकरण पर वह ऐसा कोई बयान देने से बच रही थी, जिससे ये सिद्ध हो कि वह भी शिवसेना जितनी नारी विरोधी है। जिस प्रकार से कंगना ने इस लड़ाई में अपना पक्ष रखा है, उससे स्पष्ट है कि शिवसेना की सरकार को भरभराकर गिरने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा, और ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार कंगना प्रकरण पर शिवसेना ने अपनी ही कब्र गाजे बाजे सहित खोदने का काम है।