अमेरिका को अब इस बात का एहसास होने लगा है कि उसका वास्तविक शत्रु रूस न होकर चीन है। कोरोनावायरस के फैलाव के बाद से अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध जैसा माहौल है तथा अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को किसी भी हाल में रोकना चाहता है।
यही कारण है कि अमेरिका को एहसास होने लगा है कि उसे रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करना चाहिए। अमेरिका में कई ऐसे उच्च अधिकारी हैं जो यह मानते हैं कि रूस के साथ शत्रुता समय की मांग नहीं है तथा अमेरिका को अपनी शीत युद्ध की मानसिकता को छोड़कर रूस के साथ सहयोग पर विचार करना चाहिए
अमेरिका की विदेश नीति से जुड़े 103 महत्वपूर्ण विशेषज्ञों ने भी ओपन लेटर के जरिए मांग उठाई है कि अमेरिका रूस संबंधों पर पुनर्विचार किया जाए। इसमें अमेरिका के पूर्व सेक्रेटरी ऑफ स्टेट George Shultz, मॉस्को में अमेरिका के राजदूत रहे Jon Huntsman, Security Council की यूरोप और रूस मामलों की पूर्व हेड Fiona Hill जैले महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं।
इन विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की रूस तथा चीन से एक साथ भिड़ने की नीति का फायदा उठाकर चीन दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है। अतः इन विशेषज्ञों ने अमेरिका की सरकार से अनुरोध किया है कि रूस के साथ किसी ऐसी नीति का संचालन किया जाए जो अमेरिकी हितों की रक्षा करें तथा रूस को चीन के पाले में जाने से भी रोके। अमेरिकी नीति के लिए छह व्यापक नुस्खे
इन विशेषज्ञों ने रूस के साथ अपने संबंध को सुधारने तथा अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए 6 नीतियों की बात की। जिसके अनुसार,
- अमेरिका को यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस उसके चुनाव में किसी प्रकार का हस्तक्षेप ना कर सके तथा अमेरिका की आंतरिक राजनीति को अस्थिर करने की उसकी सभी कोशिशों को नाकाम किया जाए।
- कूटनीतिक संबंध किसी देश के साथ संवाद स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाता है। अमेरिका की नीति रही है कि वह ऐसे देशों के साथ, जो अमेरिका द्वारा स्थापित वैश्विक व्यवस्था में अड़चन डालते हैं, कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लेता है। यह सरासर गलत नीति है क्योंकि कूटनीतिक संबंध सजा देने के लिए नहीं अपने शत्रु से संवाद करने के लिए होते हैं।
- अमेरिका को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही यह तय करना होगा कि वह रूस के साथ संवाद बनाए।
- अमेरिका की चीन नीति इस बात से काफी प्रभावित होगी कि अमेरिका और रूस के संबंध कैसे हैं। अतः हमें रूस को अपनी नीतियों के कारण चीन के धड़े में जाने से रोकना होगा।
- यूक्रेन और सीरिया जैसे हालात में, जहाँ रूस का विरोध नैतिक जिम्मेदारी है, अमेरिका अपने सिद्धांतों से समझौता न करे। अमेरिका को अपने उन मूल्यों की रक्षा करनी ही होगी जिनके साथ वह अन्य साथियों से सहयोग करता है लेकिन संघर्ष का समाधान न्यायपूर्ण होना चाहिए।
- प्रतिबंधों के अत्यधिक इस्तेमाल ने उसकी प्रासंगिकता को खत्म कर दिया है। लगातार लगने वाले प्रतिबंधों के कारण रूस के लिए वे महत्वहीन हो गए हैं। यूक्रेन के प्रतिबंध के बाद भी रूस ने अमेरिका के चुनाव में हस्तक्षेप की कोशिश की थी। अतः प्रतिबंध का बुद्धिमत्तापूर्ण इस्तेमाल होना चाहिए एवं उसका उपयोग negotiation में होना चाहिए न कि सजा देने के लिए
गौरतलब है कि शीत युद्ध के विपरीत आज रूस और अमेरिका के बीच सहयोग के लिए कई मौके हैं। रूस और चीन के संबंधों में लगातार टकराव बढ़ रहा है। भारत से तनाव के बीच रूस ने चीन को यह जाहिर कर दिया है कि वह भारत के सहयोग में खड़ा है।
ऐसा इसलिए क्योंकि रूस के चीन के साथ वैसे ही सीमा विवाद हैं जैसे भारत के चीन के साथ है। साथ ही भारत रूस को अमेरिकी धड़े से अच्छे संबंध बनाने में सहयोग भी कर सकता है जो रूस के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी होगा। आज अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है और चीन से सहयोग इसमें सुधार के बजाए नुकसान ही पहुंचाएगा।
वहीं चीन रूस के सैन्य तकनीक की चोरी भी करता है। चोरी की हुई रूसी तकनीक के दम पर ही चीन ने रूस को हथियारों के बाजार में टक्कर देना शुरू कर दिया है।
इसके अतिरिक्त अब पूर्वी एशिया में बेलारूस एवं सर्बिया के उदाहरण बताते हैं कि रूस और अमेरिका के हित यूरोपीय राजनीति में एक दूसरे से जुड़ने लगे हैं।
इतना ही नहीं मध्य एशिया में भी अमेरिका और रूस एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं। जहाँ अमेरिका तुर्की के खिलाफ UAE और इजरायल के साथ खड़ा है वहीं रूस के भी संबंध तुर्की से तनावपूर्ण रहे हैं।