दुनियाभर में कोरोना फैलाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर्स का चूना लगाने वाला चीन इस स्थिति का फायदा उठाकर अब अपने व्यापार को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। चीन ने पहले Testing kits के नाम पर देशों को ठगा, फिर उसने कोरोना के कारण भारी कर्ज़ में दबी कंपनियों की जबरन खरीद की कोशिश की। अब वह Vaccine के नाम पर दुनिया के कई देशों को ठगने का प्लान बना रहा है। दरअसल, चीन अब आर्थिक तौर पर कमजोर देशों में अपनी बनाई वैक्सीन के ट्रायल करने की योजना बना रहा है, और दूसरे देशों के लोगों को अपने subjects के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है।
चीन के वुहान से फैलने वाली इस महामारी से निपटने के लिए पश्चिमी और आर्थिक तौर पर सम्पन्न देशों के पास तो संसाधन भी है, लेकिन गरीब देश इस वायरस के सामने मजबूर दिखाई दे रहे हैं। ना तो उनके पास इतना बेहतर हैल्थ इनफ्रास्ट्रक्चर है और ना ही वे वायरस के फैलाव को रोकने के लिए Lockdown का सहारा ले सकते हैं क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था इसकी इजाज़त नहीं देती।
आज के समय जहां अमेरिका, UK और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश दुनियाभर की बड़ी से बड़ी फार्मा कंपनियों के साथ करार कर वैक्सीन के विकास के लिए कोशिशें कर रहे हैं, तो वहीं दुनिया के गरीब देशों के लिए चीन की “Vaccine ” डिप्लोमेसी ही एकमात्र आशा की किरण दिखाई देती है। ऐसे में चीन इस स्थिति का फायदा उठाकर ट्रायल के स्टेज में ही वैक्सीन को दूसरे देशों के लोगों पर थोप रहा है। अपनी “वैक्सीन” डिप्लोमेसी के तहत चीन ने मेकोंग पड़ोसियों जैसे कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाइलैंड और वियतनाम जैसे देशों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन मुहैया कराने का निश्चय किया है। Economic Times के मुताबिक चीन ने दक्षिण अमेरिका, पश्चिमी एशिया, उत्तर अमेरिका और पूर्वी यूरोप के देशों को भी Vaccine डिप्लोमेसी के तहत निशाना बनाने की नीति अपनाई है।
अगस्त में जब बांग्लादेश में चीन द्वारा बनाई गयी वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा था, तो देश के अंदर ही इसका काफी विरोध किया गया था। इस Vaccine को करीब 40 हज़ार लोगों पर टेस्ट किया जाना है, और बांग्लादेश के मेडिकल एक्सपर्ट्स ने अभी से खतरे की घंटी बजा दी है। एक्स्पर्ट्स के मुताबिक बांग्लादेश के लोगों को चीनी एक्सपेरिमेंट के लिए subjects के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि चीन अपने शिंजियांग मॉडल को अब देश से बाहर इन गरीब देशों में लागू करना चाहता है। हिटलर द्वारा यहूदियों पर अत्याचार के बाद वह चीन का जिनपिंग प्रशासन ही है जिसने इतने बड़े पैमाने पर किसी विशेष समुदाय (उइगर) को निशाना बनाया है।
कई सारी रिपोर्ट्स इस बात का दावा करती हैं कि चीनी सरकार अपनी Vaccine को उइगर मुसलमानों पर टेस्ट कर रही है। साथ ही साथ उइगर मुसलमानों को जबरन PPE किट्स बनाने के लिए भी बाध्य किया जा रहा है, साथ ही उन्हें विदेशी निवेशकों की factories में काम करने के लिए भी मजबूर किया जाता है। दुनिया को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि चीन का वैक्सीन प्रोग्राम दुनिया की भलाई के लिए है, बल्कि भविष्य में अपनी बनाई वैक्सीन को चीन भू-राजनीतिक फ़ायदों के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है। कोरोना के दौरान जिस प्रकार BRI का समर्थन करने वाले देशों को प्राथमिकता से आर्थिक सहायता प्रदान की गयी, उसने दुनिया को साफ संदेश भेजा कि चीन इस महामारी से भी भरपूर आर्थिक और राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है।
जिस प्रकार गरीब देशों के लिए BRI एक आकर्षक कर्ज जाल की तरह काम करता है, ठीक वैसे ही कोरोना के समय में चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी गरीब देशों के लिए बड़ी उम्मीदें लेकर आई है। हालांकि, किसी देश को चीन से निस्वार्थ सहायता की कामना बिलकुल नहीं करनी चाहिए। चीनी वैक्सीन पर आस लगाए बैठे देशों को लाओस और पाकिस्तान की तरह ही आर्थिक दिवालियेपन की भी तैयारी कर लेनी चाहिए।
हाल ही में चीन को पैसिफिक देश Papua New Guinea में एक नई महामारी को जन्म देने की कोशिश करते रंगे हाथों पकड़ा गया था। वहाँ एक चीनी mining कंपनी ने अपने 48 कर्मचारियों को भेजा और PNG सरकार को कहा कि ये सभी कर्मचारी इसलिए Covid Positive मिलेंगे क्योंकि इन सब को कोरोना के लिए Vaccine दी गयी थी। उसके बाद पीएनजी सरकार तुरंत हरकत में आई और चीन से आने वाले सभी लोगों पर पाबंदी लगा दी। यह माना गया कि चीनी सरकार PNG में अपनी वैक्सीन का ट्रायल करना चाहती है, और वो भी चोरी-छिपे, PNG के लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करके!
चीन दुनिया के लिए सबसे पहले वैक्सीन विकसित कर दुनिया का मसीहा बनना चाहता है, और कोरोना के जरिये किए अपने पापों पर पर्दा डालना चाहता है। इसके लिए वह अब दोबारा गरीब देशों का शोषण करना शुरू कर चुका है। चीन BRI के माध्यम से तो पहले ही देशों को अपने कर्ज़ जाल में फँसाता आया है, अब वह इन्हीं गरीब देशों को कोरोना जाल में फँसाने के लिए कमर कस चुका है। Vaccine को लेकर चीन के साथ सहयोग कर रहे दुनिया के सभी देशों को सावधान रहने की ज़रूरत है।